भारत का सबसे बड़ा दुश्मन कौन? || आचार्य प्रशांत, बातचीत (2020)

Acharya Prashant

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भारत का सबसे बड़ा दुश्मन कौन? || आचार्य प्रशांत, बातचीत (2020)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी कल हमने एक वीडियो पब्लिश किया था भगत सिंह के ऊपर, कल जन्मदिन भी था उनका, तो थोड़ा फिर मैंने रिसर्च ( शोध) किया इंटरनेट पर उनके बारे में; फिर आपने एक आर्टिकल (लेख) भी फॉरवर्ड किया थाl तो कल मेरे को पहली बार पता लगा कि जब उनको फांसी दी गई, उसके बाद उनका जो शरीर था, उसको बहुत छोटे-छोटे पीसिज़ (टुकड़ों) में काटा गया, फिर बोरों में भरा गया, और फिर वहाँ से चुपचाप ले जाया गया ट्रक में भरकेl और फिर उसको पूरा जलाया भी नहीं गया और अधजली स्टेज (स्तिथि) में ही सतलज नदी में फेंक दिया गयाl क्योंकि लोग आ रहे थे, डर के मारे वो भाग गए वहाँ से, वो जो लेके गए थे उनकोl तो सुनके मतलब मन बहुत ख़राबराब हो रहा है कि ये, ये मतलब करने वाले इंडियंस ही थे न, जिन्होंने शरीर को काटा था छोटे-छोटे पीसिज़ मेंl

आचार्य प्रशांत: आपने ख़ुद ही इसमें जवाब तो दे ही दिया हैl हम बार-बार इसी तरह सोचते हैं कि भगत सिंह की लड़ाई अंग्रेज़ों से थी और पॉपुलर कल्चर में उसको दिखाते भी ऐसे ही हैंl ‘भगत सिंह बनाम अंग्रेज़ सरकार’l कि अंग्रेज़ों की असेम्ब्ली में बम फोड़ा, अंग्रेज़ों पर गोली चलाई, अंग्रेज़ जज ने मौत की सज़ा सुनाई, वगैरहl

लेकिन लड़ाई, किसी भी असली क्रांतिकारी की गुलामी के ख़िलाफ़ होती है, किसी इंसान के ख़िलाफ़ नहीं होतीl इंसान के ख़िलाफ़ अगर कोई क्रांतिकारी लड़ता हुआ नज़र आयेगा, तो वो सिर्फ इसलिए कि वो इंसान गुलामी का समर्थक होगा या गुलामी फैला रहा होगा; नहीं तो लड़ाई तो गुलामी के ख़िलाफ़ होती हैl तो जब लड़ाई गुलामी के ख़िलाफ़ है, तो आप पर आघात भी वो जो गुलाम लोग हैं वो ख़ुद ही करेंगेl क्योंकि गुलामी को उन्होंने ही तो पकड़ कर रखा हुआ हैl गुलामी के ख़िलाफ़ आपकी लड़ाई है तो आप पर गुलाम लोग ही ज़्यादा आघात करेंगेl

गुलामी हम सोचते हैं जैसे गुलाम पर ज़बरदस्ती लादी गई है, लेकिन गुलाम, गुलाम होता ही इसीलिए है, गुलाम गुलामी को स्वीकार ही इसीलिए करता है क्योंकि उसका गुलामी में कुछ स्वार्थ होता हैl जब आप गुलाम से उसकी गुलामी हटाते हो, छीनते हो, तो गुलाम के स्वार्थ पर भी चोट पड़ती हैl

आप करो न कल्पना कि भगत सिंह को वहीं शाम को ही फांसी दे दी गई लाहौर सेंट्रल जेल में, सुबह दी जाती है; फांसी किसी को भी दी जाये यही निर्धारित होता है कि सुबह-सुबह दी जायेl तो सब नियम-कानून तोड़कर, बदलकर शाम को, रात को ही फांसी दे दी गईl फिर इन लोगों के शवों को छोटे, छोटे, छोटे, टुकड़ों में काटा गया, बोरों में भरा गया और एक पीछे के दरवाज़े से निकाल कर ले गए और सतलज किनारे आधा-अधूरा जलाया और उनको वहीं नदी में फेंक दियाl तब तक लोगों को ख़बर हो गईl तो लोग आए, तो वो जो सब शवों के अधजले टुकड़े सतलज में फेंक दिए गए थे उनको बाहर निकालाl

तो उसमें सोचिये न कि कौन होगा, तो इसमें सोचिये न कि कौन होगा वो जो इन शवों को, इन क्रांतिकारियों के शवों को काट रहा होगाl वो तो कोई हिंदुस्तानी ही है, वो हिंदुस्तानी ही हैl थोड़ा एक बार अच्छे से कल्पना कीजिए, विज़ुएलाइज़ (दृश्य का विचार) कीजिए; एक हिंदुस्तानी है या कई हिंदुस्तानी हैं, हिंदुस्तानी हाथ ही है, जो पहले सूली पे लटका रहा है, पहले सूली पे लटका रहा है वो हिंदुस्तानी हाथ है, हिंदुस्तानी आदमी ही है जो उनको फिर नीचे उतार रहा है, हिंदुस्तानी ही है जो उनके मृत शरीर को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट रहा हैl ये सब काम हिंदुस्तानी कर रहे हैं, अंग्रेज़ नहीं कर रहेl ये बात बिलकुल ज़रा भीतर उतरने दीजियेl

भगत सिंह के शरीर को फांसी पर लटकाने वाला हिंदुस्तानी का हाथ हैl भगत सिंह के शव को छोटे-छोटे, छोटे-छोटे, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, सभी थे, सबके छोटे-छोटे टुकड़ों में काटना वाला भी यही हैl उनको फांसी से उतारा गया है, मृत देह को, उनके छोटे-छोटे टुकड़े किए गए हैं, ये काम करने वाला हिंदुस्तानी हाथ हैl उसके बाद वो सब टुकड़े बोरे में भरे जा रहे हैं, ये हिंदुस्तानी हाथ है, अंग्रेज़ नहीं कर रहे हैंl और फिर उन टुकड़ों को ले जाकर के जलाया जा रहा हैl उनको ऐसे ही तेल-वेल डाल कर के, ये काम भी हिंदुस्तानी ही कर रहा है, अंग्रेज़ नहीं कर रहे हैंl और फिर लोगों ने देख लिया तो जल्दी से नदी में डाल कर के भाग आये, ये काम भी हिंदुस्तानी ही कर रहा है, अंग्रेज़ नहीं कर रहेl

तो यही तो बात है न असली कि हम समझते ही नहीं हैं कि हम किसकी गुलामी कर रहे हैं? हम अंग्रेज़ों की नहीं गुलामी कर रहे थे भई, हम तो स्वार्थों की गुलामी कर रहे थेl उस आदमी से बात कीजिए न जो क्रांतिकारियों के शरीरों को छोटे टुकड़ों में काट रहा था उस आदमी से बात कीजिए, उससे पूछिए तूने ऐसा क्यूँ किया?

प्र: वो बोलेगा मैं अपना जॉब कर रहा थाl

आचार्य: वो बोलेगा मैं अपना जॉब कर रहा था, तो तू ये जॉब क्यूँ कर रहा है?

प्र: शायद बोलेगा घर चलाना है, मेरे बीवी है, बच्चे हैंl

आचार्य: उसे घर चलाना है, बस यही बात हैं न l मैं मज़बूर हूँ मेरी बीवी है, मेरे बच्चे हैंl तुम उस परिवार के ख़ातिर, उस बीवी की ख़ातिर, उस बच्चे की ख़ातिर भगत सिंह के ख़िलाफ़ गवाही भी देने को तैयार हो गएl उनको फांसी चढ़ाने को भी तैयार हो गएl उनके शरीर के छोटे-छोटे टुकड़े करने को भी तैयार हो गएl ये सबकुछ तुम क्या बता के कर रहे हो – मैं क्या करूँगा, मैं तो मज़बूर हूँ, मैं तो मज़बूर हूँl मज़बूर क्या हो? मज़बूर क्या हो? वो जो तेईस साल का नौजवान फांसी चढ़ गया, वो क्यूँ नहीं मज़बूर था? वो किसी और लोक से आया था? उसको क्यूँ नहीं मज़बूरी थी? तुमको क्योंमज़बूरी है? सीधे बोलो, 'तुम्हारे स्वार्थ हैं'l

और ये जो मज़बूरी का बहाना है न, ये दुनिया के सब पापों की जड़ हैl मैं मज़बूर हूँl लोग मज़बूरी के नाम पर बड़े से बड़ा पाप कर लेते हैं, और उस पाप को ज़स्टिफाई (उचित सिद्ध करना) करने के लिए, उस पाप को जायज़ ठहराने के लिए इसी शब्द का इस्तेमाल करते हैं ‘मज़बूरी’l ‘मैं तो मज़बूर हूँ’ तो मुझे ये करना पड़ाl मैं तो मज़बूर हूँl कोई ये थोड़े ही बोलता है कि मैंने जानते-बूझते अपने स्वार्थ के, अपने मतलब की ख़ातिर ये सब गंदगी करी है, पाप करा है, घटिया से घटिया काम करा हैl वो तो यही कहेगा न – नहीं नहीं मैं तो मज़बूर थाl

तो ये समझना बहुत ज़रूरी है कि आदमी को क्या चीज़ वास्तव में बंधक बना लेती हैl वो कोई बाहर खड़ा शासक या रूलर नहीं होताl ऐसा नहीं है कि हमको वो जो मुट्ठी भर अंग्रेज़ थे, उन्होंने दबा रखा थाl ‘आप बिलकुल सही बोल रहे हो, कुल सत्तर हज़ार तो अंग्रेज़ थे, जो कि पूरे हिंदुस्तान में थे और शासन कर रहे थे l किसी ने तो कहा था कि सब हिंदुस्तानी मिलकर अगर एक जगह थूकें भी, तो उससे इतना बड़ा तालाब बन जाएगा कि उसमें सब अंग्रेज़ डूब मरेंl

मुझे अंग्रेज़ों से किसी तरह की कोई नफ़रत वगैरह नहीं है, बस एक बात समझाने के लिए मैं ये जो कथन है उसको उद्धरत कर रहा हूँ कि उस समय भी भारत की आबादी चालीस करोड़ क़रीब थीl आज एक-सौ-चालीस करोड़ है तब चालीस करोड़ थीl कैसे हो गया कि पचास हज़ार अंग्रेज़ या एक लाख अंग्रेज़ एक-सौ-चालीस करोड़ हिन्दुस्तानियों पर राज करते रहेl आप और पीछे चले जाओ न, आप सत्रह सौ सत्तावन चले जाओ, ‘पलासी की लड़ाई’ चले जाओl

प्र: उस समय फ़ौज का भी अनुपात काफ़ीl

आचार्य: सत्रह और एक का अनुपात थाl बंगाल में लड़ाई जब हुई है पलासी की, और बड़ी निर्णायक लड़ाई थी वो, तो सत्रह हिंदुस्तानी, एक अंग्रेज़l अठारह सौ सत्तावन में आप देख लो, अठारह सौ सत्तावन में जो ग़दर हुआ था, क्रांति हुई थी, वो क्या अंग्रेज़ों ने दबा दी? न l हिंदुस्तानी सिपाहियों के ख़िलाफ़ कौन लड़ रहा था?

प्र: हिंदुस्तानी सिपाहीl

आचार्य: हिंदुस्तानी सिपाही ही तो लड़ रहे थेl और जो हिंदुस्तानी सिपाही हिंदुस्तानी सिपाहियों को ही मार रहा है, दबा रहा है, उससे पूछो क्यों कर रहे हो? कहेगा – मेरे बच्चे हैं, मेरी बीवी है, मुझे घर चलाना हैl तो आप समझ लो कि दुनिया की सबसे बड़ी मज़बूरी क्या है जो आपसे बड़े से बड़ा पाप कराएगी– मैं क्या करूँ? मैं मज़बूर हूँl

दो सौ,ढाई सौ साल हिंदुस्तान गुलाम रहा और ये गुलामी का पूरा कार्यक्रम अंग्रेज़ नहीं चला रहे थे, हिंदुस्तानी ही चला रहे थे, ये बोलकर के कि मेरा तो परिवार है, मेरी तो बीवी है, मेरे तो बच्चे हैं, मैं क्या करूँ? तो आप ये समझिए कि असली गुलामी क्या है अंग्रेज़ों की या आपके स्वार्थों की? और इससे आपको ये भी समझना चाहिए कि अगर आपको आज़ाद ज़िन्दगी जीनी है तो आपको ज़िन्दगी में कौनसे निर्णय किस तरह से लेने हैं? कौन से निर्णय नहीं लेने हैं ये भी बिलकुल स्पष्ट होना चाहिये l मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि परिवार नहीं हैं उनकेl परिवार तो भगत सिंह के भी था नl

प्र: पर वो मज़बूर नहीं थेl

आचार्य: पर वो मज़बूर तो नहीं हुए परिवार के आगे नl माँ आई, बोलीं– शादी करलो; बोले– शादी हो गई मेरी, मेरी दुल्हन तो क्रांति है, आज़ादी हैl पिता ने माफ़ी के लिए, कि मेरे बेटे को माफ़ी देदो, अंग्रेज़ों से आवेदन कर लियाl उन्होंने अंग्रेज़ों से दरख़्वास्त करली कि बेटा जेल में है उसको छोड़ो l तो उन्होंने पिता को बहुत कड़े शब्दों में लिखा, कुछ ऐसा लिखा था कि– ‘अगर यही काम किसी और ने किया होता तो मैं उसको द्रोही समझता’, ट्रेचेरी शब्द का इस्तेमाल किया था उन्होंने कि मैं इसको देशद्रोह, राष्ट्रद्रोह या धर्मद्रोह जो भी है, धर्म शब्द का वो नहीं इस्तेमाल करेंगेl तो ऐसा उन्होंने अपने पिता को ही बोल दियाl

तो उनकी भी माता थीं, उनके भी पिता थे लेकिन वो तो नहीं मज़बूर हो गएl ये दुनिया वाले कैसे मज़बूर हो जाते हैं, बीवी का, बच्चों का या पति का या माँ-बाप का नाम लेकर केl और भगत सिंह ने अपने माँ-बाप से कोई रिश्ता भी नहीं तोड़ दिया थाl जिस समय उनको फांसी दी जा रही थी, उनके पिताजी जेल के बग़ल में ही एक सभा में मौजूद थे, और शाम को सात बजे उनको फांसी दे दी गई,भगत सिंह को तो जेल से नारे लगने लगे,' इंकलाब ज़िंदाबाद'l लोग समझ गए कि गड़बड़ हो गई हैl तो जो भीड़ थी वो हिंसक, उग्र होने लग गईl तो सरदार भगत सिंह के पिताजी ही थे, नाम नहीं याद आ रहा उनका, उन्होंने ही फिर उस भीड़ को शांत किया कि हिंसक नहीं होना हैl

तो परिवार है, सुन्दर परिवार है, जहां माँ को, बाप को बेटे से प्यार भी है, बेटे पर नाज़ भी हैl लेकिन उस परिवार में मतलब के, और स्वार्थ के रिश्ते तो नहीं है न, वहाँ ये सब तो नहीं हो रहा न कि मैं क्रांति कैसे करूँ? मैं तो मज़बूर हूँl मेरी माँ ने कहा है, 'तू ब्याह करले'l मैं क्रांति कैसे करूँ? मैं तो मज़बूर हूँl माँ का दिल थोड़े ही तोड़ सकता हूँ मैं? माँ को समझा दिया, और माँ समझ भी गयीl

ऐसा भी तो इंसान हो सकता है न, ऐसी भी तो चेतना हो सकती है नl और चेतना कोई प्राकृतिक रूप से ऐसी नहीं होतीl प्राकृतिक रूप से तो हम सब जानवर ही हैंl चेतना को ऐसा बनाना पड़ता हैl कड़े निर्णय लेने पड़ते हैंl कड़े निर्णय आप न लें और उसका ज़िम्मेदार आप हालात को ठहराएं ये बात तो कहीं से ठीक नहीं है नl

ये बात अच्छे से समझें सब, कोई बाहर वाला आकर गुलाम नहीं बनाता, न तब बनाता था, न आज बनाता है, न इतिहास में कभी बनाया, न भविष्य में कभी बनाएगाl कोई भी आदमी आप कभी गुलाम देखें, मज़बूर देखें, कहीं न कहीं उसका स्वार्थ होगा उसमेंl नहीं तो आप सीधे कहोगे कि मरना मंज़ूर है, और मरे हुए आदमी को कौन गुलाम बना सकता है?

भाई, ये भी एक तरह का स्वार्थ ही है कि मैं कोई भी क़ीमत अदा करके बस जीना चाहता हूँl क्यूँ जीना चाहते हो? अगर हालत ये आ गयी है कि या तो मौत या गुलामी तो भईया मौत चुन लो नl बताओ अब तुम्हें कौन गुलाम बना पायेगा? तो आप गुलाम हैं, और आप लम्बे समय से गुलाम हैं इसका मतलब ये है कि आप स्वेच्छा से गुलाम हैंl जिसको आप मज़बूरी बोलते हो उसको मैं स्वार्थ बोलता हूँl मैं मज़बूरी शब्द तो रखता ही नहीं अपने शब्दकोष में, मज़बूरी शब्द तो मैं अपने रखता ही नहीं हूँl

एक फ़िल्म देखी थी, पता नहीं, नाम नहीं याद आ रहाl उसमें एक आदमी होता है, वो गहरे गड्ढे में फंस जाता है, एक दरार होती है चट्टानों के बीच मेंl और वो किसी को बता कर नहीं आया होता है कि वहाँ घूमने जा रहा हूँl कोई पहाड़ी जैसा इलाक़ा होता हैl पांच-दस साल पहले देखी थी, अंग्रेजी फ़िल्म थीl

तो वो ऐसे हैं, दो ऊंची जगह हैं और उनके बीच में एक दरार है, गहरी दरार है और वो वहाँ पर गिर जाता है, फंस जाता हैl फंस जाता है, और वो किसी को बताकर नहीं आया हैl और वो जगह बिलकुल सुनसान है, शायद सैंकड़ों किलोमीटर तकl तो कोई अपनेआप जान ही नहीं पायेगा कि वो वहाँ फंसा हुआ हैl वो वहाँ नीचे फंसा हुआ है, कोई जा भी नहीं सकताl अब उसको दिख रहा है, 'यहाँ मर रहा हूँ, मर रहा हूँ, मर रहा हूँ' हुआ क्या वो नीचेगिर गया और उसका हाथ एक चट्टान के नीचे दब गया हैl उसका जो हाथ है, वो चट्टान के नीचे दब गया हैl अब वो या तो वो मौत स्वीकार कर ले, ये बोलकर कि बाहर कैसे आऊँ? मैं तो मज़बूर हूँ, मेरा हाथ चट्टान के नीचे दबा हुआ हैl वो क्या करता है– धीरे-धीरे अपना हाथ ही काट देता हैl अपना हाथ काटकर बाहर आ जाता हैl

कौन आपको गुलाम बना सकता है?

अगर आप कहो कि आज़ादी से प्यारा तो मुझे अपना हाथ भी नहीं हैl अगर अपने हाथ की वज़ह से गुलामी झेलनी पड़ेगी तो हाथ को काट दूँगाl हम अंग्रेज़ों को गाली देते रहते हैं हमने कभी उस आदमी का नाम ही नहीं लिया, उस आदमी की कभी चर्चा ही नहीं की और वो एक हिंदुस्तानी थाl एक नहीं हो सकता है वो दर्जनों हिंदुस्तानी हों, जिन्होंने भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु इनके शवों को काटा है, काटा हैl

प्र: सुनने में ही! देखने में ही!

आचार्य: ये बात सुनने में ही कितनी ख़ौफ़नाक, कितनी वीभत्स है न? हिन्दुस्तानियों ने ही ये काम किया है कि उन्होंने अभी-अभी शहीद हुए क्रांतिकारियों के शरीरों को गंडासों से, कुल्हाड़ी से, न जाने किस चीज़ से, आप देखिये, आप कल्पना करिए वो लिटाकर काट रहे हैंl काट रहे हैं और हिंदुस्तानी ही उनके शवों के छोटे-छोटे टुकड़ों को बोरे में भर रहे हैंl और फिर ले जाकर के जल्दबाज़ी में जला रहे हैं और फिर नदी में फेंक रहे हैंl ये काम हिंदुस्तानी कर रहे हैंl हम उनकी बात क्यूँ नहीं करते हैं?

अंग्रेज़ों को क्या दोष दे रहे हैं हम? हिंदुस्तानी आदमी अगर गुलाम बनने से इन्कार कर देता, अगर कोपरेट (सहयोग) करने से इन्कार कर देता तो अंग्रेज़ कैसे राज कर लेते? लेकिन हम ये देखते ही नहीं कि हमारे भीतर गुलामी कि कितनी ज़बरदस्त वृत्ति हैl हम कितनी जल्दी अपनेआप को बेचने के लिये तैयार हो जाते हैंl हम कहाँ देखते हैं? दोष तुरंत दूसरे को दे देते हैं, वो आसान हैl

YouTube Link: https://youtu.be/ezhgrlNq-T4

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