भक्ति ज्ञान की माता है || आचार्य प्रशांत (2014)

Acharya Prashant

3 min
198 reads
भक्ति ज्ञान की माता है || आचार्य प्रशांत (2014)

प्रश्न: सर, इस लेख में लिखा है, ‘भक्ति ज्ञान की माता है’। इसका क्या अर्थ है?

वक्ता: यहाँ पर ज्ञान से इनका मतलब है, ‘अंतिम अनुभूति’, और वो भक्ति के बिना नहीं हो सकता।

श्रोता १: क्या भक्ति, मुक्ति से भिन्न नहीं है?

वक्ता: आप जो पकड़ कर बैठे हो, उसको ही आप भक्ति में छोड़ते हो। जो आपने पकड़ रखा था, भक्ति में उससे ही मुक्ति मिल जाती है। वो इसलिए कह रहे हैं कि- भक्ति, मुक्ति से अलग नहीं है- क्योंकि आमतौर जो ‘मुक्ति’ शब्द है, वो ज्ञान के सन्दर्भ में प्रयोग होता है। जब भी कोई मुक्ति की बात करता है, तो ऐसा लगता है कि ज्ञानी आदमी है, समझ गया है, मुक्त हो गया है।

लेकिन जैसे कबीर कहते हैं कि मुक्ति चाहिए ही नहीं, “प्रेम दर्शन पाय के, मुक्ति कहा को रोये”। अब मैं मुक्ति को रोता ही नहीं हूँ। मुक्ति किसको चाहिए?

ज्ञान में तुम कहते हो कि मुझे ‘इससे’ मुक्त होना है। ज्ञान में तुम्हारी जो स्थिति है वो यह है कि ‘ये’ मुझे पकड़ कर बैठा है और मुझे ‘इससे’ मुक्त हो जाना है। ज्ञान में तुम यह कह रहे हो कि दुनिया मुझे व्यथित किये जा रही है, और मुझे मुक्ति चाहिए। ज्ञान में तुम कह रहे हो कि तुम्हें बंधक बनाया जा रहा है, इसलिए तुम्हें मुक्ति चाहिए। ठीक है? तो दोष किसका है?

सभी श्रोतागण(एक स्वर में): दुनिया का।

वक्ता: दुनिया का। और तुम कहते हो, ‘मुझे दुनिया से मुक्ति चाहिए’| यही कहते हो ना? भक्ति में एक कदम आगे की बात हो जाती है। भक्ति कहती है,’ दुनिया कहाँ मुझे व्यथित किये जा रही है, मैं ही दुनिया को पकड़ कर बैठा था, और अब मैं उसका समपर्ण किये देता हूँ’। ज्ञान कहता है, ‘दुनिया मुझ पर हावी हो रही है| मुझे मुक्ति चाहिए’।

जब तुम चिल्लाते हो ज़ोर से कि ‘मुझे मुक्ति चाहिए’, तो तुम्हारा भाव यह होता है कि कोई तुम्हे बंधक बना रहा है और तुम उससे मुक्त होना चाहते हो। तो तुम तो अच्छे हो गए कि तुम मुक्त होना चाहते हो, और दुनिया ख़राब हो गयी, क्योंकि दुनिया तुम्हें?

सभी श्रोतागण(एक स्वर में): बंधक बना रही है।

वक्ता: बंधक बना रही है| भक्त कहता है, ‘ऐसा है ही नहीं, दुनिया बंधक बना ही नहीं रही है। मैं बंधन को पकड़ कर बैठा था और अब मैं उसका समर्पण कर रहा हूँ। मैं फालतू ही बंधन पकड़ कर बैठा हुआ था, मैं उसको समर्पण कर देता हूँ। मुझे नहीं चाहिए बंधन’। अंतर समझ रहे हैं ना?

इसीलिए जो भक्त होता है, वो प्रेममार्गी होता है, वो मुक्ति की बात करता ही नहीं।

उसकी दूसरी वजह भी है। जो लगातार सब में उसी को देख रहा है, उस ‘एक’ को ही देख रहा है, अंदर भी, बाहर भी, वो मुक्त होगा किस से? जिसने ‘प्रेम’ कहा है, उसे तो प्रेम है। प्रेम में तुम मुक्ति नहीं मांगते हो। प्रेम में तो तुम मिलन मांगते हो। आ रही है बात समझ में? तो मुक्ति की बात छोटी हो जाती है, भक्ति में।

-‘ज्ञान सत्र’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

YouTube Link: https://youtu.be/8R7SKM_AEL4

GET UPDATES
Receive handpicked articles, quotes and videos of Acharya Prashant regularly.
OR
Subscribe
View All Articles