भगवान माने क्या! (God, what exactly!)

Acharya Prashant

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भगवान माने क्या! (God, what exactly!)

प्रश्न : ‘भगवान’ क्या हैं?

वक्ता : इसका जवाब देना बहुत आसान हो जाता अगर तुमको वाकई पता ही ना होता, अगर पहले ये शब्द कभी सुन ही न रखा होता। अगर कोई बिल्कुल साफ़ स्लेट के साथ ये सवाल पूछे, ‘भगवान का क्या मतलब है?’ तो इसका जवाब देना मुश्किल नहीं होता। एकदम आसान है| पर जितने भी लोग यहाँ बैठे हैं उसमें से कोई नहीं है जिसने ‘भगवान’ शब्द सुन नहीं रखा? हम सबके मन भगवान शब्द की छवियों से, कहानियों से अतिभारित हैं| तो इसलिए भगवान क्या है यह कहना तो दूर की बात है, पहले तो यह देखना ज़रूरी है कि भगवान क्या नहीं है। एक कमरे में बहुत सारी गन्दगी भरी हो और तुम्हें कुछ और रखना है, तो पहले क्या करना पड़ेगा?

सभी श्रोतागण ( एक स्वर में ): सफाई।

वक्ता : पहले साफ़ करोगे, या ये करोगे कि दरवाज़ा खोलोगे और जो सामान है उसे अन्दर ले आओगे? भगवान को लेकर के हमने इतनी सारी छवियाँ बना रखी हैं न कि कहानियां चलती रहती हैं| क्या कहानियां हैं भगवान को लेकर के बताओ?

श्रोता : कुछ मूर्ति में देखते हैं, कुछ इंसानों में देखते हैं, मंदिर में रहता है, धार्मिक ग्रंथो में, बड़ा ताकतवर है, स्वर्ग-नर्क का खेल रचाता है, जो पापी होते हैं उनको दंड मिलता है, बढ़िया वालों को स्वर्ग में मिठाइयाँ बटती हैं, प्रेमपूर्ण है, जब गुस्सा करता है तो दंड देता है।

वक्ता : तो ये सब छवियाँ हैं भगवान की। अभी तो हमने एक ही मिनट बात की है और अगर थोड़ा गहराई से जाएं तो पता लगेगा कि इतनी छवियाँ हैं भगवान की, कि पहले तो छवियों को नष्ट करना ज़रूरी होगा। वह सारी छवियाँ हमारी कंडीशनिंग हैं| किसी ने कुछ कह दिया, और जो छोटा सा बच्चा होता है उसके मन में बात बैठ गयी|

‘भगवान् जी को नमस्ते करो’।

तुमने भी किया होगा| तुम ज़रा से रहे होंगे| तब तुम्हें क्या पता क्या भगवान् जी हैं| और नमस्ते कर रहे हो भगवान् जी को| उसके मन में तो बात बैठ गई ना। और वह उन्ही छवियों को लेकर बड़ा होगा| अगर हिन्दू घर में पैदा हुआ है, जब भी किसी मंदिर के सामने से निकलेगा तो हाथ जोड़ेगा। क्यों?

सभी श्रोतागण ( एक स्वर में ): जो सिखाया है वही कर रहा है|

वक्ता : अब भगवान् शब्द आते ही हाथ का जोड़ना पक्का है| बिल्कुल पक्का है| यहाँ एक प्रयोग करते हैं| यहाँ जितने लोग बैठे हैं हिन्दू हैं। अगर मैं अभी यहाँ भागवत गीता की किताब पटक दूं और कहूँ की इस पर पांव रखो, तो तुम्हारे लिए बड़ी दिक्कत हो जाएगी| हो जाएगी ना? पढ़े-लिखे हो और जानते हो कि कागज़ क्या है| ‘कागज़’ का मतलब कागज़| ‘पांव’ का मतलब पांव| पांव भी मोलिकुल्स हैं और कागज़ भी मोलिकुल्स हैं| जो इलेक्ट्रान, प्रोटोन वहां घूम रहे हैं वह इसमें भी घूम रहे हैं| और अगर मॉडर्न फिजिक्स पढ़ी है तो यह भी पता होगा कि ये भी आखिरी चीज़ नहीं है, असली चीज़ नहीं है| लेकिन बड़ा मुश्किल हो जाएगा उस पर पांव रखना| और अगर रख दिया तो क्या करोगे?

सभी श्रोतागण ( एक स्वर में ): माथे से लगाएँगे|

वक्ता : इतना भार है भगवान का दिमाग पर।मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि गीता पर पांव रखना चाहिए| ये मैं यह बिल्कुल नहीं कह रहा कि घर जाकर चालू कर दो कि पांव रखकर बैठे हुए हैं| पर इस बात को समझो कि मन पर भार कितना है इन चीज़ों का| ज़बरदस्त तरीके से। है या नहीं?

सभी श्रोतागण(एक स्वर में): जी सर।

वक्ता: आजकल ये चलन बहुत चालू हो गया है| पिछले कुछ समय से बंद था पर अब फिर चालू हो गया है| टी.वी. पर खूब धारावाहिक आ रहे हैं भगवान को लेकर।अब ये जो बच्चे इनको देख रहे होंगे इनका क्या हो रहा होगा? तुम्हें नहीं लगता कि बड़े होकर यह इस छवि से मुक्त हो नहीं पाएँगे? हो पाएँगे मुक्त क्या?

सभी श्रोतागण(एक स्वर में): नहीं सर।

वक्ता: और हर किसी के भगवान अलग-अलग हैं, क्योंकि हर किसी की कंडीशनिंग अलग-अलग है| अब एक मुस्लिम बच्चा है, उसका ईश्वर बिल्कुल ही अलग है| उसके ‘अल्लाह’ का कोई रूप रंग ही नहीं हो सकता| कोई छवि नहीं हो सकती, वह कहीं रहता नहीं है तो उसकी कोई छवि नहीं बना सकते| जो हिन्दू है उसका भगवान हमेशा बड़ा सजा-संवरा होता है| जितने आदमी उतनी ही कल्पनाएं| हिन्दू का ईश्वर खूब कपडे-लत्ते पहनकर रखता है, एक दम सजा हुआ रहता है, कितने तो आभूषण रहते हैं| कभी देखा है कृष्ण की मूर्ति को ? कितने आभूषण रहते हैं, मोरपंख भी होता है| और जैनों का भगवान देखा है? नग्न| जिसकी जैसी कल्पना|

तो भगवान जैसा कुछ है भी? हमारे मन में एक कल्पना उठती है और हम उसको भगवान का नाम दे देते हैं| जैसे कोई पहरेदार हमारे सिर पर बैठा है और जब भी होता है तब हम ऐसे ही तो कहते हैं- ‘वह ऊपर वाला’| नीचे वाला क्यों नहीं? दाएँ वाला क्यों नहीं? बाएँ वाला क्यों नहीं? एक आदमी ने कल्पना बनाई और ये कल्पना आज से नहीं चल रही है|

कहाँ से आता है भगवान इसको ध्यान से समझना।

भगवान वहीँ से आता है जहाँ से आज से दस हज़ार साल पहले आता था| आदमी ने देखा कि बिजली कड़की, ज़बरदस्त बिजली कड़की| आदमी ने देखा कि ग्रहण हुआ, सूरज तक पर एक काल धब्बा सा आ गया| आदमी ने देखा कि बहुत जोर के हवाएं चलीं| और आदमी अभी भी आदिमानव है, उसे नहीं पता है कि ये सब कहाँ से हो रहा है, क्यों हो रहा है, क्या चक्कर है पूरा|

तो आदमी ने क्या कहा? आदमी ने कहा कि ये ज़रूर कोई और आदमी है, बड़ा आदमी जो बहुत शक्तिशाली आदमी है जो ये सब कुछ कर रहा है| जो सबसे पुराने ग्रन्थ हैं तुम उसे उठाओगे तो जो उसमें देवत्व की पहली सोच है। वह कहती है कि ये एक ‘फ़ोर्स ऑफ़ नेचर'(प्रकृति की शक्ति) है| फोर्सिस ऑफ़ नेचर को ही माना गया है| इसलिए तुम्हारे जो पहले के देवता थे वो सारे प्राकृतिक शक्तियों के प्रतिनिधि थे|

‘वरुण’ माने जल| तो अगर बारिश नहीं हो रही है और आदमी को डर लग रहा है तो ‘वरुण देवता’| ‘अग्नि’, आग लग रही है तो ‘अग्नि देवता’।

वो नहीं जानता था कि बिजली कैसे कड़कती है और नहीं जानता था कि इसका कारण क्या है| वो नहीं जानता था कि हवाएं कैसे चलती हैं| वह नहीं जानता था कि एक तरफ हाई- प्रेशर होता है, और एक तरफ लो- प्रेशर। और हवा हाई प्रेशर से?

सभी श्रोतागण( एक स्वर में): लो-प्रेशर पर जाती है|

वक्ता: वो सोचता था कि यह ज़रूर किसी ताकतवर भगवान का काम है| ये बात सिर्फ आदिमानव ही नहीं सोचता था| आदिमानव भी भगवान कि कल्पना तभी करता था जब वह डरा हुआ होता था और परेशान होता था| वह जब बिजली कड़कते देखता था तो कहता था कि आसमान में कोई बड़ा आदमी बैठा है और ये इसके दांत हैं जो चमक रहे हैं| उसे नहीं पता था ग्रेविटेशनल पुल(गुरुत्वाकर्षण) क्या होती है| वह नहीं जानता था कि प्लैनेट्स अपने फिक्स्ड ऑर्बिट में ही चलते हैं| तो क्या सोचता था? कि सूर्य देव हैं और उनके घोड़े उनको पृथ्वी के एक सिरे से दूसरे सिरे तक ले जाते हैं| वह ये सब नहीं जानता था|

तो जहाँ पर इग्नोरेंस है, अज्ञान है वहां क्या आ जाता है?

सभी श्रोतागण( एक स्वर में): भगवान|

वक्ता: जहाँ फीयर है, डर है वहां क्या आ जाता है?

सभी श्रोतागण( एक स्वर में): भगवान|

वक्ता: उसको विज्ञान का कुछ पता नहीं। जब विज्ञान का पता नहीं तो ज्ञान है और अगर ज्ञान है तो क्या आ गया?

सभी श्रोतागण(एक स्वर में ): भगवान।

वक्ता: ‘हमारे शत्रुओं का नाश हो| हे प्रभु ऐसा कर देना’। जहाँ डिजायर है, इच्छा है वहां क्या आ गया?

सभी श्रोतागण (एक स्वर में): भगवान।

वक्ता: ये तो बड़ा ज़बरदस्त सम्बन्ध निकल आया|

जहाँ इग्नोरेंस है, अज्ञान है, वहां भगवान आ गया|

जहाँ फीयर है, डर है वहां भगवान आ गया|

जहाँ डिजायर है, इच्छा है वहां भगवान आ गया|

और यह सिर्फ आदिमानव के समय की बात नहीं है| आज भी भगवान वहीँ आता है जहाँ ‘इग्नोरेंस, फीयर या डिजायर(ज्ञान, डर और इच्छा) हो| तुम कब जाते हो मंदिर?

सभी श्रोतागण (एक स्वर में): जब कोई काम होता है|

वक्ता: तो यह डिजायर हो गयी| इच्छा आई और भगवान आ गया| और कब जाते हो मंदिर? मंदिर में जो ज़्यादातर लोग क्यों जाते हैं?

सभी श्रोतागण(एक स्वर में): परेशानी में|

वक्ता: परेशानी, डर| अब डर आया तो क्या आ गया?

सभी श्रोतागण(एक स्वर में): भगवान|

वक्ता: इसका मतलब है कि अगर डर ना होता, अज्ञान ना होता, इच्छा ना होती तो भगवान की भी कल्पना करने की आवश्यकता ही नहीं थी| अब तुम मुझे ये बताओ कि क्या ज़रूरी है? मैं तुम्हे ये बताऊँ कि भगवान क्या है या ये बताऊँ की अज्ञान, डर और इच्छा क्या है? क्योंकि भगवान की तो सत्ता ही तभी तक है जब तक मन?

श्रोता १: डरा हुआ है, अज्ञानी है और इच्छा रखता है|

वक्ता: तो क्या समझना चाहते हो?

श्रोता २: यही| अज्ञान, डर और इच्छा|

वक्ता: अगर अज्ञान, डर और इच्छा को समझ लिया तो भगवान की कहाँ आवश्यकता है? तो भगवान मत पूछो, आदमी के मन के बारे में पूछो| क्योंकि भगवान भी आदमी के मन से ही निकला है| कहते हैं, ‘छः दिन भगवान् ने बैठकर दुनिया बनाई और सातवे दिन आराम किया’| तो इसी में किसी ने एक बढ़िया पंक्ति जोड़ दी और कहा, ‘छह दिन भगवान् ने बैठकर दुनिया बनाई और सातवे दिन आदमी ने भगवान को बना दिया’| ये जो हमारा भगवान है, यह हमारे ही मन की उपज है| तो भगवान को समझें या अपने मन को समझें? और मन का मतलब क्या है? अज्ञान, डर और इच्छा|

श्रोता ३: सर तो क्या एक नास्तिक अज्ञानी नहीं है?

वक्ता: जो नास्तिक होता है वह तो बड़ी ही अजीब जगह पर खड़ा होता है| नास्तिक ‘किसको’ मानने से मना कर रहा है? नास्तिक ‘क्या’ मानने से मना कर रहा है? नास्तिक होता है जो कहता है की भगवान नहीं है| तुमने रात में एक सपना देखा, उस सपने में तुमने लड्डू देखे| तुम्हारी कल्पना है न? सपना एक कल्पना ही है| अब यह(एक श्रोता की तरफ हाथ करते हुए) एक नास्तिक है और तुम एक मानने वाले हो| सुबह उठकर तुम कह रहे हो कि लड्डू हैं| और वो कह रहा है कि लड्डू नहीं हैं| यह सही बोल रहा है या वह सही बोल रहा है?

सभी श्रोतागण(एक स्वर में): दोनों में से कोई नहीं|

वक्ता: क्योंकि दोनों ही एक काल्पनिक चीज़ के पीछे लड़ रहे हैं| ये कह रहा है कि भगवान है, वो कह रहा है कि भगवान गौड नहीं हैं| और दोनों ही नहीं जानते की भगवान माने क्या? दोनों ही नहीं समझ रहे कि भगवान तो एक कल्पना है|

तो नास्तिक और मानने वाला दोनों एक ही हैं| दोनों में कोई अंतर नहीं है| क्योंकि अगर नास्तिक कहता है, ‘गॉड डस नॉट एग्सिस्ट’| उससे पूछो, ‘क्या एग्सिस्ट नहीं करता?’ मैं किसी चीज़ के लिए कहूँ कि यह एग्सिस्ट नहीं करती तो उससे पहले मुझे पता तो होना चाहिए कि मैं किसकी बात कर रहा हूँ| ये कह रहा है, ‘गॉड एग्सिस्ट’, वो कह रहा है, ‘गॉड डस नौट एग्सिस्ट’, गॉड क्या है यह दोनों को ही नहीं पता| तो दोनों में से ज्यादा सही कौन बोल रहा है?

श्रोता ४: कोई भी नहीं|

वक्त: दोनों एक ही स्तर पर हैं| दोनों ही नहीं जानते की भगवान क्या है? ऐसे समझो| उसने सपने में कत्ल कर दिया| वह सुबह उठकर कह रहा है कि मैंने कत्ल किया| और दूसरा कह रहा है कि मैंने नहीं किया| और वह अपने सपने की बात कर रहा है जिसका उसे पता भी नहीं है| ये कह रहा है कि कत्ल किया है तो बेवकूफी की बात कर रहा है क्योंकि वह एक सपना बस था और वह कह रहा है कि मैंने कत्ल नहीं किया और उसे पता भी नहीं है कि एक सपने की बात कर रहा है|

वह किस गॉड के बारे में कहेगा, ‘गॉड डस नॉट एग्सिस्ट?’ क्या उसे पता है भगवांन क्या है? जब नास्तिक बोले, ‘गॉड डस नॉट एग्सिस्ट’, तो उस से पूछो, ‘वॉट डस नॉट एग्सिस्ट?’ यह ऐसी ही बात है कि एक अशिक्षित आदमी जिसको कुछ नहीं पता विज्ञान के बारे में और वह बोले कि ‘गॉड डस नॉट एग्सिस्ट’। उसको बोलने का हक भी है यह? अगर कोई बिना पढ़ा-लिखा तुम्हारे पास आये और कहे, ‘इलेक्ट्रान डस नॉट एग्सिस्ट, तो उस से क्या कहोगे?

यही पूछोगे, ‘इलेक्ट्रान माने क्या? तू किस चीज़ के बारे में इनकार कर रहा है? तुझे पता भी है? तू किस चीज़ की सत्ता से इंकार कर रहा है?’

-‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं ।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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