भगवान क्या है? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

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भगवान क्या है? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

प्रश्न : सर कहते हैं कि भगवान सच है। तो झूठ क्या है और वो क्यों है इस धरती पर?

वक्ता : अगर तुमने पहला वाक्य जान कर बोला होता तो दूसरा प्रश्न शेष ही नहीं रह जाता। तुमने कहा भगवान सच्चे हैं पर ना तो तुम्हें भगवान का कुछ पता ना ही सत्य का कुछ पता। भगवान सच्चे हैं – ये तुम्हारे लिए एक सुनी सुनाई बात है। इसमें तुम्हारी अपनी देशना, अपना जानना इसमें ज़रा भी नहीं है। कुछ है क्या इसमें?

तुम्हारे लिए भगवान बस एक नाम है। और अगर तुम अलग अलग धर्मों को मानने वाले यहाँ बैठे हुए हो तो उस नाम के साथ छवियाँ भी अलग अलग जुडी हुई हैं। नाम भी अलग-अलग हो जायेंगे। वो इस पर निर्भर करता है कि तुम्हारे घर में कौन से देवी – देवता पूजे जाते हैं, देश के किस हिस्से से आ रहे हो, किस जात के हो, किस संप्रदाय से हो? भगवान को तो तुमने इसके अलावा कुछ जाना ही नहीं है।

भगवान महत्वहीन है, जानना महत्वपूर्ण है। ये जो प्रश्न है भगवान के बारे में इसे हमको विस्तृत करना पड़ेगा। ठीक वैसे ही जैसे हमने भगवान को खुद जाना नहीं पर बचपन से ही क्योंकि हम सुनते आ रहे हैं कि भगवान हैं और सत्य हैं, तो हमने कुछ मान रखा है। इसी तरीके से जीवन में हमने सब कुछ बस मान ही रखा है।

हम एकदम भी नहीं जानते हैं कि ‘करियर’ शब्द का क्या अर्थ होता है? हम बिल्कुल भी नहीं जानते हैं कि जीवन जीने का क्या अर्थ है, शादी का क्या अर्थ है, प्रेम का क्या अर्थ है, आनंद क्या है। इन सबको हम बिल्कुल नहीं जानते। पर हमने सुन रखा है इनके बारे में जिसको हमने कुछ मान लिया है। भगवान भी इसी तरीके के शब्दों में से एक है।

स्वतंत्रता क्या है? हम नहीं जानते। सत्य क्या है? हम नहीं जानते। शिक्षा क्या है? हम ये भी नहीं जानते। मैं कौन हूँ? ये तो बिल्कुल ही नहीं जानते। पर इन सब बातों के बारे में हमने कुछ-कुछ सुन रखा है और इनको मान लिया है। तो इस प्रश्न को अलग से लेकर के नहीं देखा जा सकता कि ‘भगवान् क्या है, सत्य क्या है ?’

जीवन में जब बाकि सब कुछ तुम अपनी समझ से जानोगे तब ये भी जान जाओगे कि इस भगवान् नाम की चीज़ का क्या अर्थ है। अभी तो तुम कुछ नहीं जानते। अभी तो तुम बस एक सुना-सुनाया जीवन बीता रहे हो। तुमने सुन लिया है कि पढ़ाई कर लेनी चाहिए, अभी तक तुम्हारे साथ जो कुछ भी हुआ है वो एक -बंधी बंधाई रवायत के अनुसार हुआ है। दसवीं तक पढ़े,सब पढ़ते हैं, उसके बाद फिर बारहवीं करते हैं क्योंकि सब करते हैं। उसके बाद फिर आजकल चलन है इंजीनियरिंग का, तो वो भी कर रहे हो। आगे भी जो कुछ होना है उस पर भी पटकथा लिखी ही जा चुकी है। उसी के अनुरूप होगा सब कुछ। यहाँ से निकलोगे तो एम.बी.ए. कर लोगे या माँ-बाप के काम धंधे में हाथ बटाओगे। या तो कोर ब्रांच में जाओगे, नहीं तो सॉफ्टवेयर में चले जाओगे, फिर शादी कर लोगे , फिर बच्चे पैदा करोगे, फिर अपनी ज़िंदगी खराब करोगे, फिर एक दिन मर जाओगे। ये सब जो है इसमें तुम्हारी समझ कहाँ पर है ये बता दो? ये सब एक सुने-सुनाये तरीके से, एक बंधे – बंधाये तरीके से जीवन चल रहा है। अब इस पूरे जीवन में, इस पूरी बंधी -बंधाई पटकथा में एक चरित्र का नाम ‘भगवान’ भी है। वो बीच में कभी-कभी आ जाता है। कब आ जाता है ?

होली पर आ जाता है, दिवाली पर आ जाता है, जन्मदिन पर आ जाता है, परीक्षा वाले दिन आ जाता है। जैसे कोई कहानी चल रही हो और बीच-बीच में वो आता है दो-चार डाइलॉग मार कर गायब हो जाता है, होते हैं ऐसे कुछ किरदार। तो तुम्हारी पूरी कहानी में इस तरह के किरदार का नाम है, ‘भगवान्’। और तुम किस जात के हो, उस हिसाब से उसका एक उपनाम भी है। भगवान सिंह, भगवान शर्मा, भगवान गुप्ता, भगवान पटेल। जो देना चाहो, अपने -अपने भगवान हैं, आपकी मर्ज़ी। और अगर तुम लड़की हो तो फिर भगवती। कोई दिक्कत ही नहीं है।

ये भगवान तो तुम्हारी अपनी कल्पना है, तुम जब चाहते हो बुला लेते हो, ‘आ, अभी तेरी ज़रूरत है और फिर अगर नहीं है ज़रूरत तो फिर चलो ! दरवाज़ा उधर है। अपने कमरे में रहा करो चुपचाप,जन्माष्टमी में खीर चढ़ा देते है ये कम है’।तुमने कुछ जाना है, समझा है ?

बात को समझ रहे हो? इसको चुटकुले की तरह मत ले लेना कि ‘बड़ा मज़ा दिलाया,आहा! थोड़ी बोरियत कम हुई’। बात का अर्थ समझ रहे हो? जीवन में क्या कुछ भी है जो अपनी समझ से आ रहा है? तुम भी नकली, तुम्हारा भगवान भी नकली। जो असली है उसको तुम जान नहीं रहे। तो ऐसे जीवन का फायदा क्या ?

-’संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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