कार खरीद कर और फर्नीचर खरीद कर ज़िंदगी नहीं बन जाती है। सुख के नाम पर क्या है? एक गाड़ी है, एक ईएमआई पर घर खरीद लिया है, एक घर पहले से था, फिर बीवी है जो बुढ़ा रही है, दो बच्चे हैं जो खून पीने को तैयार हो रहे हैं, “ माय लाइफ !” और एडवेंचर (रोमांच) दिखाने के लिए क्या करते हैं? कि साल में एक बार वो जो हाफ़ मैराथन होती है उसमें दौड़ लिए, फिर अपनी फ़ोटो डालेंगे कि, “मैंने हाफ़ मैराथन में दौड़ लिया देखो मैं कितना एथलेटिक हूँ, आई हैव अ वेरी पेपी लाइफ, फुल ऑफ एडवेंचर “ (मेरा जीवन बहुत ही क्रियात्मक है, रोमांच से भरा हुआ)। और रोज़ बॉस से गाली खाते हैं और बता रहें हैं, “ आई हैव अ वेरी पेपी लाइफ, फुल ऑफ एडवेंचर !”
तो ऐसा होना है? जो तुमसे कह रहे हैं कि ऐसा-ऐसा जीवन जियो तो सबसे पहले उनसे पूछो कि, “तुम्हें ऐसी ज़िंदगी जी करके क्या मिला है जो हमें बता रहे हो? ज़रा-ज़रा सी बात में हिल तुम जाते हो, दो कदम अकेले चलने का साहस तुममें नहीं है और हमें सीख देने आ जाते हो, कि बेटी, ऐसे जीना चाहिए।“