बेहोशी ही बेहोशी को जन्म देती है || आचार्य प्रशांत, भगवान बुद्ध पर (2013)

Acharya Prashant

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बेहोशी ही बेहोशी को जन्म देती है || आचार्य प्रशांत, भगवान बुद्ध पर (2013)

आचार्य प्रशांत: तीन शब्द आ गये हैं, फूलिस मैन (मूर्ख आदमी), इंटेलिजेंट मैन (तेज आदमी) और वाइज मैन (बुद्धिमान आदमी)। बुद्ध ने अंतर करा है। क्या है ये अंतर?

श्रोता: सर, वो तीन तरह के शिष्य होते हैं जो बुद्ध ने बोला था। जो एक तत्वों को समझ जाए, एक को थोड़ा पुश (धक्का) की ज़रूरत है और एक समझेगा ही नहीं चाहे कुछ हो जाए।

आचार्य: हाँ, पर यहाँ पर बुद्ध ने इंटेलिजेंट शब्द का प्रयोग हम जैसे आमतौर पर करते हैं, उससे थोड़ा अलग करा है। उन्होंने एक तीसरी श्रेणी खड़ी करी है वाइज मैन की।

श्रोता: वाइज मैन बुद्धा हो गये।

आचार्य: चलो ठीक है। इंटेलिजेंट मैन क्या हुए?

श्रोता: इंटेलिजेंट मैन जो बीच में हैं, जैसे जो नदी पार कर रहे हैं।

आचार्य: क़रीब-क़रीब वैसी ही बात है। इंटेलिजेंट मैन वो कि जिसने कम-से-कम नेति-नेति की प्रक्रिया कर रखी है, जिसका मन शार्प (तीक्ष्ण) हो। बात समझ में आ रही है?

फूल वो जिसको भीतर जाना आता ही नहीं। नेति-नेति बाहर थोड़ी करोगे, फूल वो जिसको भीतर जाना आता ही नहीं। जिसको फॉल्सनेस दिख गयी है, वो इंटेलिजेंट। वाइज वो जो फॉल्सनेस के भी बियॉन्ड श्रद्धा के क्षेत्र में पहुँच गया है, जिसको प्रेम उपलब्ध हो गया है। बात समझ में आ रही है?

इंटेलिजेंट बनने तक बात हमारे हाथ में है। हम बन सकते हैं। इंटेलिजेंट , बुद्ध के प्रयोग में, जिस तरीक़े से यहाँ पर बुद्ध का प्रयोग हुआ, बुद्ध जिसको इंटेलिजेंट कह रहे हैं, वो इंटेलिजेंस हासिल की जा सकती है एफर्ट के द्वारा, कोशिश के द्वारा; विजडम नहीं हासिल की जा सकती है। विजडम ग्रेस है। तुम्हारा वही मन जो बाहर कूदता रहता है, जब वो अंतर्गामी हो जाता है तो इंटेलीजेंस है। और मन जब अपनी हदों को स्वीकार करके झुक जाता है विनम्रता में, समर्पण में, तो फिर जो निकलती है वो विजडम है। बात समझ में आ रही है?

इंटेलिजेंस एक नकार है, निगेटिव (नकारात्मक में है इंटेलिजेंस। वो काटती है गंदगी को और विजडम एक पॉजिटिव एंटिटी (साकारात्मक इकाई) है, विजडम प्रेम है, विजडम स्वीकार है पूरे अस्तित्व का। समझ में आ रही है बात?

इंटेलिजेंट बनो उसके बाद वाइजमैन का थोड़ा सा संपर्क मिलेगा, इशारा मिलेगा और बस काम हो जाएगा। जैसे समझो कि तुम्हें एक मशाल जलानी है, आग नहीं तुम्हारे पास। लेकिन इतना तो कर सकते हो न कि मशाल की पूरी तैयारी करके रखो। फिर आग आएगी कहीं बाहर से, थोड़ा सा छुआएगी तुम्हारी मशाल को और वो जल जाएगी। बात समझ में आयी? तुमने जलाई नहीं पर तैयारी तुम्हारी पूरी थी, तैयारी करके रखो, उतना तो तुम्हारे हाथ में है न? बस इतना, यही कह रहे हैं वो। और फूलिस कौन है?

वो कह रहे हैं, मशाल भी कोई दे ही जाए, बाहर ही सब कुछ है। तो रोशनी, मशाल सब बाहर से ही मिल जाएगी। वही डोमिनोज वग़ैरा में ऑर्डर कर रहा होगा, वन मशाल विद एक्स्ट्रा चीज। बाहर से ही आ जाए ये भी, कुछ सीजनिंग-विजनिंग डालकर मशाल। सत्य भी बाहर से उपलब्ध हो जाएगा, क्यों भाई, थर्टी मिनट में। और नहीं हुआ तो उसके पैसे भी नहीं देंगे।

श्रोता: जो डिलीवर करने आया तो फिर उसका पिज्जा उसे देने आ रहा है तो वह कहे कि अंदर ही ले आ, अब चल खोल दे और खिला दे।

आचार्य: हमारा गुरुओं के प्रति भी तो रवैया यही है कि आपने ऑर्डर करा है, कोई डिलीवर कर देगा। विजडम भी आप वैसे ही चाहते हैं कि उपलब्ध हो जाए। समर्पण नहीं करना है, आदेश देना है, हक़ जताना है। आई ऍम एनटाइटल्ड टू विजडम, एवर थॉट टू एनटाइटल टू एनीथिंग, सोरी (at 3:57)। अस्तित्व को तुम्हारे होने में ही कोई रस नहीं है, इंटाइटलमेंट (दावेदारी) कैसा? हाँ झुकोगे तो पा जाओगे। हक़ मानोगे अपना तो कुछ नहीं पाओगे।

श्रोता: ये इंटेलिजेंस और विजडम के लिए क्या वर्ड्स यूज़ किया है हिंदी में?

आचार्य: देखना पड़ेगा, देखना पड़ेगा। वाइज का तो बोला होगा, ये पक्का है। ठीक है? वाइज का तो बोला होगा। इंटेलिजेंट को क्या बोल रहे? देखना पड़ेगा। विवेकी बोला होगा, जहाँ तक है, विवेकवान पुरुष।

छियासठ: "फूल्स ऑफ लिटिल अंडरस्टैंडिंग हेव देमसेल्व्ज फॉर देयर ग्रेटेस्ट एनीमिज फॉर दे डू ईविल डीड्स व्हिच मस्ट बेयर बिटर फ्रूट्स" (कम समझ वाले मूर्ख स्वयं ही अपने सबसे बड़े शत्रु होते हैं क्योंकि वे बुरे कर्म करते हैं जिनका फल अवश्य ही कड़वा होता है)। ये फ्रूट का क्या चक्कर है? फल?

श्रोता: रिजल्ट्स।

आचार्य: क्या अर्थ है इस बात का ईविल डीड्स बेयर बिटर फ्रूट्स , इसका क्या अर्थ है? और यह कौनसा बिटर फ्रूट है? इस प्रक्रिया को पूरा समझना पड़ेगा। ये जो आम प्रचलित अवधारणा भी है न, 'बुरे काम का बुरा नतीजा।' उसको समझना पड़ेगा कि ये बुरा नतीजा चीज़ क्या है?

श्रोता: सर, बुरा काम वही परसेंप्शन को लेकर…

आचार्य: पहले तो बताओ बुरा काम क्या है? बुरा काम क्या है?

श्रोतागण: जो अपने आप को न समझ रहा हो।

आचार्य: ठीक! जो ही बेहोशी में किया जाए। होश क्या है?

श्रोता: समझे अपनेआप को।

आचार्य: जहाँ अपनी स्मृति खो जाए, जहाँ पर मन पूरा-का-पूरा बाहर कहीं जाकर टंग जाए, वही बेहोशी है और कुछ नहीं बेहोशी है। जो भी काम इस मानसिकता में किया जाएगा, वहीं ईविल डीड (कुकृत्य) है और कोई नहीं है ईविल डीड। ईविल डीड हम यह न समझें कि कहीं लिख दी गयी हैं कि ये पंद्रह-बीस तरीक़े के काम बुरे होते हैं ये सब मत करना, तो ये ईविल डीड है।

श्रोता: सेवन सेंस।

आचार्य: सेवन सेंस ऑफ दिस एंड दैट। किसी काम पर मुहर नहीं लगी है अच्छे या बुरे की, जो भी काम बेहोशी में हुआ, वही बुरा। ये बात तो बिलकुल स्पष्ट है। फिर हमारा मन क्यों परेशान हो जाता है कि यार झूठ कैसे बोलूँ? और मैं कहता हूँ कि झूठ के अलावा हम बोलते क्या हैं? बेहोशी में तुम जो भी बोलोगे, वही झूठ है।

फिर हमारा मन क्यों मोरालिटी (नैतिकता) से बंधा रहता है हर समय, अगर हम इस बात को समझ रहे हों कि वास्तव में ईविल डीड क्या है? और हम क्यों अच्छा-अच्छा करना चाहते हैं हर समय? और अच्छा-अच्छा वो जो प्रेस्क्राइब्ड (निर्देशित) है एज ए कोड ऑफ़ कंडक्ट (आचार संहिता), एथिक्स (नैतिक मूल्य)।

ये जो वास्तव में वाइज आदमी है उसके लिए एथिक्स का कोई अर्थ ही नहीं रहेगा, इस बात को आप समझ रहे हैं क्या? एक वाइज आदमी, मैं ये नहीं कह रहा अनएथिकल होता है, वो एथिक्स के बियोंड (परे) होता है। न वो एथिकल होता है, न वो अनएथिकल होता है या ऐसे कह लो कि जो वाइजमैन करे वही एथिक्स है, उसके अलावा एथिक्स कुछ नहीं। वाइजमैन जो भी करे वही एथिकल। यह मत समझना कि एथिक्स कुछ है जिसे वाइजमैन फॉलो करेगा, जिसका पालन करेगा। ना, वाइजमैन जो करे वही एथिकल। वो जहाँ खड़ा हो जाए, लाइन (पंक्ति) वहीं से शुरू होती है। समझ में आ रही है बात?

हमारे मन में फिर क्यों है ये बार-बार अवधारणा कि ईविल डीड तभी है जब मैं किसी से ये कर दूँ कि वो कर दूँ? और मैं कह रहा हूँ, आप चुपचाप बैठे हो, ये भी ईविल डीड है अगर आप खोये हुए हो। आप किसी की बहुत मदद करने की कोशिश कर रहे हो, वो भी ईविल डीड है क्योंकि आप बेहोश हो। मदद के नाम पर भी घंटे ही बजेंगे। आप जो भी कर रहे हो वही ईविल है। व्हाट इज बिटर फ्रूट ऑफ एन ईविल डिड (बुरे कर्म का बुरा फल क्या है)?

श्रोता: कॉन्सिक्येंसेज ऑफ ...

आचार्य: व्हाट इज द कॉन्सिक्येंसेज? (परिणाम क्या है?)

यू विल हेव टू एप्रिसिएटेड वेरी-वेरी क्लियरली। सी, फॉर्गेटफुलनेस बिगेट्स फॉर्गेट फुलनेस (तुम्हें यह पूरे स्पष्टता से समझना पड़ेगा। देखो, विस्मृति विस्मृति को ही उत्पन्न करती है)। इसको बिलकुल ही समझ लो अच्छे तरीक़े से। फार्गेटफुलनेस क्रिएट्स ए विशियस साइकिल इन व्हिच मोर फॉर्गेटफुलनेस रिजल्ट्स (भूलने की बीमारी एक दुष्चक्र का निर्माण करती है जिसमें और अधिक भूलने की बीमारी उत्पन्न होती है)

तुम एक कर्म जो बेहोशी में कर रहे हो, वो अपनी सौ संतानें पैदा करेगा जो तुम्हारी बेहोशी को और गहरा करेंगी। और तुम इस चक्कर में फँसते ही चले जाओगे। तुमने बेहोशी में अपनी सारी पढ़ाई करी। इस सारी पढ़ाई का फल हुआ, ये नौकरी में बंधा हुआ जीवन। अब फँस गये बुरे तरीक़े से। तुमने अपनी बेहोशी में प्रेम करा, उस बेहोशी में करे गये प्रेम का परिणाम हुआ शादी, अब शादी का परिणाम होगा बच्चे, तुम फँसते ही चले जाओगे। फॉर्गेटफुलनेस बिगेट् फॉर्गेट फुलनेस।

ये डाउनवर्ड स्पायरल (नीचे की ओर सर्पिल) है, तुम्हारा एक गड़बड़ कर्म, तुम्हारे आगे के बहुत सारे कर्मों को प्रभावित करता है। और उदाहरण देता हूँ, हम सबके जीवन में बहुत कुछ है जो इनकम्प्लीट (अधूरा) है। हम सुबह जब यहाँ पर आते हैं तो वो सारा इनकम्प्लीशन, वो सारी फॉर्गेटफुलनेस साथ लेकर आते हैं। नतीजा यहाँ पर जो हो रहा है, हम उसे भी नहीं सुन पाते हैं। फोर्गेटफुलनेस बिगेट फॉर्गेटफुलनेस।

श्रोता: सर, कल वहाँ से रुड़की से जब आ रहे थे तो गाड़ी में थे, आगे साइकिल पर एक पिता था, वो अपने दो बच्चों को लेकर जा रहा था। अब अजय ने जब होर्न बजाया तो उस बच्चे ने, सात-आठ साल का रहा होगा, उस बच्चे ने पीछे देखा। उसके बाद हम वही बात कर रहे थे कि अब ये बच्चा जीवन की योजनाएँ बना लेगा क्योंकि अगर आपके पास साइकिल है तो उसको इस तरीक़े से लताड़ा जा रहा है और पीछे होर्न मारा जाता है। नॉव ही बिकम्स ए ड्रीम हिज लाइफ़ ए कार फॉर हिज फादर (अब ये उसका सपना हो जाएगा कि वह अपने पिता के लिए एक कार ले आए)।

आचार्य: उस क्षण में अगर उसने बात समझ ली होती, पर वो समझेगा कैसे? आधा सपनों में खोया हुआ है। तो ये आगे के लिए कैरी फारवर्ड (भविष्य में ढोना) न बनता। तुम आज जो बेहोशी में करते हो, वही तुम्हारी कल की बेहोशी को जन्म देता है। बात समझ में आ रही है?

ये जो हम कहते हैं न कि ये ब्रेन (मस्तिष्क) है, यह अतीत से भरा हुआ है, याद रखो अतीत में जो कम्पलीट (पूर्ण) हो गया वो नहीं ब्रेन में भरा हुआ है। जो कम्पलीट हो गया, अब उसके पार हो गये तुम। ब्रेन में वो कचरा भरा हुआ है जो सप्रेस्ड (दबाया हुआ) था, जो पूरे तरीक़े से जिया नहीं गया, जिसे दबा दिया गया है। हम सब कहते हैं ऑवर माइंड्स आर फुल ऑफ सेक्शुएलिटी (हमारा मन लैंगिकता से भरा होता है)। नहीं, ब्रेन जानवर के पास भी होता है। उसका ब्रेन कभी सेक्सुएलिटी से भरा नहीं होता। या तो वो सेक्स के कृत्य में दिखाई देगा तुमको, एक्ट में या वो मुक्त होगा। वो बैठकर प्लान (योजना) नहीं बना रहा होता।

आदमी के मन में सेक्सुएलिटी इसलिए भरी है क्योंकि उसे उसने दबा दिया। फॉरगेटफुलनेस, बिगेट्स फॉरगेट फुलनेस। तुम आज जिस चीज़ का दमन करोगे वही तुम्हारे कल के ध्यान में बाधा बनेगी, ये जान लो। जिस चीज़ का आज दमन करा है, वहीं कल के ध्यान को बाधित करेगा।

जो आज को पूरा जिये, उसकी संभावना बढ़ गयी है कल को भी पूरा जीने की। कल आज से ही निकल रहा है। कल समझ लो आज का फूल है। समझ रहे हो बात को? आज मन पर जो छाया हुआ है वो अतीत नहीं है, वो अनजिया अतीत है।

हम ये हमेशा कहते हैं न, द माइंड इज फुल ऑफ पास्ट, नो, द माइंड इज फुल ऑफ अनलिव्ड पास्ट, द माइंड इज फुल ऑफ दैट इनकम्प्लीट पास्ट (मन अतीत से भरा हुआ है। नहीं, मन अनजिया अतीत से भरा हुआ है, अपूर्ण अतीत से भरा हुआ है)। यही फ्रूट्स कहलाते हैं, यही कर्मफल है। जिसको तुम जी लेते हो उसके पार पहुँच जाते हो। जिसको तुम समझ लेते हो उसके पार पहुँच जाते हो, अब वो तुम्हारा बंधन नहीं बन सकता।

श्रोता: जैसे, हम लोग जैसे स्कूल, कॉलेज, वग़ैरा में पढ़े हैं, जो भी एग्जाम की हम लोग तैयारी करते थे। तो एक जो भी चीज़ है, जैसे एक टॉपिक है, उसको करने के बाद हम लोग पहला रिवीजन, (दोहराव) दूसरा रिवीजन, तीसरा रिवीजन, चौथा रिवीजन और जितने ज़्यादा रिवीजन होते जाते थे, उतना ही मन में अच्छा सा लगता था। मैं तो समझता हूँ, देयर इज नो लिमिट टू दिस (इसकी कोई सीमा नहीं है)। तो इतने सारे रिविजंस इसलिए करने पड़े क्योंकि पहली बार में ही जो किया था वो समझ कर नहीं किया था।

आचार्य: और स्कूल, कॉलेज का आप उदाहरण ले रहे हो तो ऐसे समझ लो, तुम जिस स्कूल से पढ़कर पास हो गये, अब उस स्कूल में दोबारा नहीं जाना पड़ेगा। जिससे तुम गुज़र गये पूरे तरीक़े से, अब तुम वहाँ चाहो भी तो तुम्हें घुसने नहीं दिया जाएगा। तुम्हारी क्लास ट्वेल्थ पास हो गयी, तुम्हें स्कूल वाला घुसने देगा अन्दर अपने? तुम क्लास ट्वेल्थ पास कर गये, अब तुम्हें स्कूल वापस क्या घुसने देगा क्लास ट्वेल्थ में? जो शेष रह गया, जो अनजिया रह गया, जिस चैलेंज (चुनौती) के प्रति तुम्हारा रिस्पांस (जवाब) पूर्ण नहीं था, सिर्फ़ वही अपनेआप को दोहराता है। जिसको कहते हैं न हिस्ट्री रिपीट इटसेल्फ, (इतिहास अपनेआप को दोहराती है), वो यही है। क्लास ट्वेल्थ रिपीट्स इट सेल्फ बट ऑनली व्हेन यू हैव नॉट क्लियर्ड द एग्जाम, यू क्लियर द एक्जाम इट विल नोट रिपीट एंड व्हाट् डज इट मीन टू क्लियर द एग्जाम? (बारहवीं कक्षा अपनेआप को दोराएगा लेकिन सिर्फ़ तब जब तुमने परीक्षा उत्तीर्ण नहीं किया है। तुम परीक्षा उत्तीर्ण कर जाओ और यह नहीं दोहराएगा। और परीक्षा उत्तीर्ण करने का अर्थ क्या है?)

श्रोता: फिनिश इट ऑफ (इसे ख़त्म करो)।

आचार्य: फिनिश इट ऑफ। लेट् इट बी डन, लीव इट एंड अंडरस्टैंड इट (इसे ख़त्म करो। इसे पूरा करो, इसको जियो और इसको समझो)। तो ये जो जीवन है, यह समझ लो कि ये सत्य की तरफ़ जाने का प्रशिक्षण मात्र है। जैसे तुम स्कूल में हो फर्स्ट से ट्वेल्थ तक, तो वो सब एक प्रशिक्षण भर चल रहा है ट्वेल्थ के आगे निकल जाने का और उसमें फँसा कौन रह जाएगा? कौन फँसा रह जाएगा? कौन नहीं बाहर निकलेगा?

श्रोता: जो न जिया हो।

आचार्य: जो नहीं पढ़ रहा है, जो उस प्रशिक्षण को पूरी तरह जी नहीं रहा है, वो कभी नहीं बाहर निकलेगा। संसार ठीक इसी तरह है। संसार प्रशिक्षण मात्र है, अपनेआप से बाहर निकल जाने का।

स्कूल प्रशिक्षण मात्र है, स्कूल से ही निकल जाने का। क्या स्कूल ये चाहता है कि तुम सदा उसमें बने रहो? क्या स्कूल ये चाहता है तुम सदा उसमें बने रहो? स्कूल इसलिए होता है कि जानो और बाहर निकलो।

संसार भी ठीक इसीलिए है कि इसे जानो और उत्तीर्ण हो जाओ, बाहर निकल आओ। अंडरस्टैंड इट एंड गो बियॉन्ड, अंडर स्टैंड इट एंड गो बियॉन्ड (इसे समझो और इसके परे चले जाओ)। आपके चक्कर अगर चल रहे हैं, चल रहे हैं, ईविल फ्रूट्स, ईविल डीड्स, ईविल फ्रूट्स, इविल डीड्स , तो ये इसलिए है क्योंकि कुछ आपके जीवन में ऐसा है नहीं जो इस स्पायरल पर कहीं पर लगाम लगा सके। हम ऐसे छात्र हैं जो कक्षा छः में कुछ पचास-साठ हज़ार साल से अटके हुए हैं।

श्रोता: साठ हज़ार साल का एक्पीरियंस (अनुभव) है।

आचार्य: साठ हज़ार साल का एक्सपीरियंस है क्लास सिक्स में अटके रहने का।

श्रोता: पास हो गये हैं क्लास सिक्स से, कह रहे हैं फिर से दूँगा।

आचार्य: अभी अटके हुए हैं, नहीं पास नहीं हुए हैं। याद रखिए, पास हो गये तो आपको दोबारा आने नहीं दिया जाएगा। आपने क्लास सिक्स्थ पास कर ली है, आप दोबारा बैठने जाओ सिक्स्थ में, तो टीचर बैठने देगा क्या? नहीं बैठने देगा न। समझो और आगे निकलो।

श्रोता: थोड़े दिन पहले घर पर कुछ चर्चा हो रहा था कि वो जन्म से जन्म के पीछे की। उसमें एक शब्द उपयोग किया था कि जो आपके पहले की जो ऋण है, ऋण शब्द उपयोग किया था। वो आपका आगे मामला चलेगा ही चलेगा। वो आपकी जितनी भी इनकम्पलीट है वो आपको आगे मारेगी ही मारेगी।

आचार्य: वो बात बिलकुल ठीक है उनकी, लेकिन उससे पार पाने का तरीक़ा ये नहीं है कि आप कुछ और कृत्य करने लगे।

श्रोता: कुछ और नया करने

आचार्य: कोई भी कृत्य पिछले किसी कृत्य की काट नहीं हो सकता। अगर आपके ब्रेन की कंडीशनिंग है पास्ट से, तो उसका ये नहीं मतलब है कि आप कुछ नए एक्शन करेंगे, उससे वो धुल जाएगी। हर तरीक़े के अतीत का सोल्यूशन सिर्फ़ और सिर्फ़ क्या है?

श्रोता: अंडरस्टैंडिंग (समझ)।

आचार्य: अंडरस्टैंडिंग, येस। अंडरस्टैंड एंड इट्स देयर एंड वेम्पायर्स विल बर्न ऑफ़। थ्रो सम लाइट ऑन देम एंड देयर विल बी ऑल गौन (मन को समझो और मन के सारे पिशाच जल जाएँगे। उनपर प्रकाश डालो और वो सब भाग जाएँगे।)

श्रोता: पिछले कृत्य तो रहेंगे क्या फ़र्क पड़ता है? चलो अब आगे भी।

आचार्य: पिछले कृत्य रहेंगे ही नहीं। देखिए, पिछले कृत्य कहाँ हैं? स्मृतियों के अलावा वो कहाँ हैं अब? उन्हीं स्मृतियों पर रोशनी डालिए, उनको जानिए कि ये झूठी हैं। आप उनसे मुक्त हो जाएँगे।

कर्मफल कहाँ पर है? मन के अलावा और कहाँ है? उसी मन पर रोशनी डालो, कर्मफल गायब हो जाएगा। कर्मफल होता है, निश्चित रूप से होता है, पर मन के अलावा और कहाँ होता है? और कहाँ होता है कर्मफल? मन में ही तो होता है न। मन पर रोशनी डालो, कर्मफल गायब हो जाएगा, मुक्त हो जाओगे।

पर मन पर रोशनी डालो उसके लिए क्या ज़रूरी है? मन कोई एक चीज़ तो है नहीं न, मन तो बहुत गहरा है। और तुमने उसमें और भर रखा है और भर रखा है। कोई गहरा कुआँ सा हो जिसमें तुमने पता नहीं क्या-क्या भर रखा है, उसपर रोशनी कैसे डालोगे? सूरज है, चमक रहा है, पर वो गहरा कुआँ है, उसमें पता नहीं क्या-क्या भर रखा है; रोशनी कैसे जाएगी उसमें? कैसे आये?

श्रोता: अंदर जाकर।

आचार्य: अन्दर कैसे जाओगे?

श्रोता: कूद कर।

आचार्य: कूदोगे कैसे? अंदर पूरा भरा हुआ है। उलीचो, उसमें से निकलेंगे जो भी उसे निकलने दो। डर लगेगा, उलीचो, बाहर आने दो। जितनी सारी गंदगी भरी हुई है, उसे निकलने दो बाहर। सामना करो उसका। और भरी तो गंदगी ही है, गंदगी के अलावा कुछ होता नहीं भरा हुआ। निकालो उसे, आने दो।

देट डिड इज नॉट वेल डन ऑफ व्हिच ए मैन मस्ट रिपेंट एंड द रिवॉर्ड ऑफ व्हिच ही रिसीव्स क्राइंग एंड विद ए टीयरफुल फेस (वह काम अच्छा नहीं है जिसके लिए मनुष्य को पश्चाताप करना पड़े और जिसका प्रतिफल उसे रोते हुए और रोते हुए चेहरे के साथ मिले)।

जीवन कैसा है, यह इसी से तो पता चल जाता है न। वृक्ष कैसा है, यह इसी से पता चल जाता है न, कि उसके पत्तों की, उसके फलों की क्या क्वालिटी (गुणवत्ता) है? तुम्हारा जीवन अच्छा रहा होता तो तुम्हारी शक्ल ऐसी हो जाती? संवाद में अक्सर जब कोई खड़ा हो जाता है कि नहीं हम तो ख़ुश हैं, आप कैसे कह रहे हो नहीं हैं? तो मेरे पास और कोई तरीक़ा नहीं रह जाता उसको बोलने का, फिर मैं उसे क्या बोलता हूँ?

श्रोता: तुम्हारी शक्ल ऐसी क्यों है।

आचार्य: मैं बोलता हूँ अगर सब कुछ ठीक ही होता, तुम्हारी शक्ल ऐसी होती? अब इसका मैंने पाया है कि कोई उत्तर दे नहीं पाता वो, क्योंकि आख़िरी बात है कि अगर तुम्हारे जीवन में सब कुछ ठीक होता तो तुम्हारा मुँह ऐसा होता क्या! यहाँ बैठे हुए हो घोड़े की तरह मुँह लटकाकर, चुप।

तुम्हारा जीवन कैसा बीता है, उसका आख़िरी प्रमाण तो यही है न कि आज तुम कैसे हो, कि नहीं है? तुम्हारे जीवन में तुम्हारी मान्यताएँ कैसी रही हैं? दैट क्वालिटी ऑफ लाइफ़ हाऊ इट हैज बीन (जीवन की गुणवत्ता कैसी रही है), उसका आख़िरी प्रूफ तो यही है कि आउटपुट तो यह रहा। अगर सब कुछ ठीक होता तो आउटपुट कैसे गड़बड़ हो गया?

टियरफुल फेस, क्राइंग , ये सब जीवन में भरा हुआ है तो कैसे जीवन ठीक चला है, बताओ न मुझे। कैसे ठीक चला है? थोबड़ा तुम्हारा सूजा हुआ है, आँखें तुम्हारी नम रहती हैं, मन में तुम्हारे आँधियाँ चलती रहती हैं, तो कैसे सब ठीक है, बताओ? कैसे सब ठीक है?

पछतावे में तुम पड़े रहते हो, रिपेंटेंस इतनी ज़्यादा तुम्हारे भीतर है। दैट डीड इज नॉट वेलडन (वह काम अच्छे से नहीं किया गया) ही नहीं देट लाइफ इज नॉट वेल लिव्ड, देट्स लाइफ इज नॉट वेल लिव्ड (वह ज़िंदगी ही अच्छे से नहीं किया गया)। और इसका कोई ये अर्थ न ले कि रिपेंटेंस से लाइफ़ ठीक हो जाएगी, कहीं ठीक-वीक नहीं हो गयी।

आपके शरीर में कहीं कोई दिक्क़त होती है तो उसके कारण आपके सिर में दर्द होता है, सिर में दर्द होने से दिक्क़त ठीक नहीं हो जाती। सिर में दर्द होना इंडिकेटर (सूचक) है कि शरीर में कुछ गड़बड़ है, पर उस इंडिकेशन से तबियत ठीक नहीं हो जाती।

रिपेंटेंस भी इस बात की सूचना भर है कि अहंकार बहुत है। रिपेंटेंस से अहंकार ठीक नहीं हो जाएगा, जो अहंकार की ही सूचना हो उससे अहंकार ठीक कैसे हो जाएगा?

आपके दाँत सड़े हुए हैं तो इस कारण मुँह से बदबू आ रही है, उस बदबू से क्या दाँत ठीक हो जाएँगे? वो तो सूचना है इसी बात की कि दाँत ख़राब है।

ठीक उसी तरीक़े से पछतावा इस बात की सूचना है कि तुम बड़े अहंकारी हो। सिर्फ़ अहंकारी पछताते हैं, ज्ञानी नहीं पछताता। वो वाइजमैन कभी पछताएगा नहीं क्योंकि उसे पता है कि पछताना कैसा? किसपर? जान लिया तो हो गया।

और पछताना तो ये बताता है कि जैसे मेरे पास कोई विकल्प हो कि मैं उसके अलावा कुछ और कर सकता था। मैं बेहोश हूँ, बेहोशी में मैं ईविल डीड के अलावा करूँगा क्या? तो पछताना कैसा? मैं जैसा था तब मैंने ऐसा करा, अब पछताने से क्या है? बात समझ में आ रही है? मैं जैसा था, उस समय में उसके अलावा और कर भी क्या सकता था! तो पछताने से क्या होगा? पछता कर तो मैं सिर्फ़ अपने अहंकार को प्रोत्साहन दे रहा हूँ कि भाई तुम जैसा महान आदमी ऐसा काम कैसे कर गया। अरे! मैं जैसा हूँ, वह कर्म ठीक वैसा है, महान होता तो कर्म वैसा ही होता।

'अगला पढ़कर मुस्करा रहे हो क्या? क्या है अगला?'

यह मूर्ख की एक विशिष्ट पहचान है कि उसको ये पता भी तब चलता है या ये कहिए कि वो लेबल भी तब लगाता है अपने कर्म पर ग़लत होने का, जब उसे डंडा पड़ जाता है। जब तक डंडा नहीं पड़ता, तब तक कैसा भी कर्म हो उसको अच्छा ही लगता है। बात समझ में आ रही है?

ग्रीफ (ग्लानि) आ गयी है उसके जीवन में, इसका ये नहीं अर्थ है कि वो समझ गया है, वो अभी भी बेवकूफ़ ही है। बस इतना है कि डंडा पड़ा है तो वो अब रोने को तैयार हो गया है। इतने लोग होते हैं जिनको आप कई बार देखते हैं कि परेशान हैं, घर में किसी की मौत हो गयी, वो बैठ कर रो रहे हैं। तो आपको क्या लगता है कि वो मौत को समझ गये हैं? ग्रिफ कहीं से इस बात का प्रमाण नहीं है कि आप कुछ समझ गये हैं, कहीं से नहीं है।

ग्रीफ भी एक तरह की शांति ला देती है जीवन में, उसको आप विजडम की शांति मत समझ लीजिएगा। जैसे किसी ने आज पूछा था न कि कोई डिप्रेस होकर भी तो शांत हो जाता है। समझ रहे हो?

ग्रीफ तो बहुत आती है, ये हो गया, वो हो गया और बड़ी गहरी ग्रीफ आती है, बड़ी गहरी पीड़ा आती है और वो पीड़ा हमें कुछ दिखा कहाँ देती है!

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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