बेहूदे गानों पर नाचना-गाना : कला, प्रतिभा, या कुछ और? || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

Acharya Prashant

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बेहूदे गानों पर नाचना-गाना : कला, प्रतिभा, या कुछ और? || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

आचार्य प्रशांत: तुम छह-छह, आठ-आठ साल की लड़की को ‘मुन्नी बदनाम हुई’ और ‘मैं तो तेरा बटर चिकन हूँ’ और इस तरीक़ों के गानों पर नचा रही हो। तुम उन बच्चियों में कौन सी भावना का संचार कर रही हो?

ये कला है? आग लगे ऐसी कला को।

तुम एक छह साल, आठ साल की लड़की को लेती हो और उसे आइटम नम्बर पर नचा देती हो। जीवन की कौन सी सीख मिल रही है उस लड़की को? बताओ मुझे। और देखो न वो किस तरह की भाव-भंगिमाएँ दिखा रही है। देखो वो आँखों से कैसे इशारे कर रही है और वो छह-सात साल की है बस वो लड़की। और सारी जनता तालियाँ बजा रही है। जनता में उस लड़की के भाई, बहन, माँ-बाप, रिश्तेदार भी बैठे हुए हैं।

वो तेरह-चौदह साल की होगी तो उसमें वैसे ही स्त्रीत्व और कामवासना अपने-आप उठने लगना है। और तुमने उसको छह साल, आठ साल की उम्र में ही पूरी औरत बना डाला। और फिर मुझसे पूछ रही हो कि आपको क्या प्रॉब्लम है।

भारत में नृत्य हमेशा परमात्मा को समर्पित रहा है। ये लटके-झटके और ये सस्ती कामवासना को आग देने वाले कामों को नृत्य नहीं बोला जाता।

एक बार फिर जाना और डांस शो में ये जो बच्चे नाचते हैं, देखना कि इन्होंने क्या सीख लिया। और पूछना कि, "इस उम्र में तो इनके भीतर से तो इस तरीक़े की तो कोई भावना उठ भी नहीं सकती, तो इनको ये इस तरह के नैनों से इशारे करना किसने सिखाया? ऐसे कूल्हे मटकाना किसने सिखा दिया?"

फिल्मों पर तो हम बोल देते हैं कि ये फिल्म है ये बच्चों के लिए उपयुक्त नहीं है। बोल देते हैं न? और जो फ़िल्म बच्चों के लिए उपयुक्त नहीं है, उसी फ़िल्म के एक घटिया गाने पर बच्चों का नाचना उपयुक्त है? जो फ़िल्म बच्चों को दिखाने के लिए ठीक नहीं है, उसी फ़िल्म के घटिया गाने पर बच्चों का नाचना ठीक हो गया? और वैसे ही घटिया लोग जज बनकर बैठे होते हैं। वो तारीफें कर रहे होते हैं, कह रहे होते हैं, “वाह! वाह! क्या कला है, क्या कला है।"

'कला' शब्द का अपमान मत करो। और ये सब कुछ क्यों किया जा रहा है? पैसों और शोहरत के लालच में।

कितना धिक्कारा जाए ऐसे बच्चों के माँ-बाप को? और वहाँ जो पूरी जनता मौजूद है उसको? और जो उस शो के प्रबंधक हैं और जो वहाँ पर जज, निर्णयता बनकर बैठे हैं उन सबको? और वो सब लोग जो टीवी पर ऐसी चीज़ें देख रहे हैं और उसको प्रोत्साहित कर रहे हैं?

बच्चे से क्यों उसकी मासूमियत छीन रहे हो भाई?

वैसे ही जैसे-जैसे उम्र बढ़ेगी उसमें तमाम तरीक़े के विकार आ ही जाने हैं। कम-से-कम अभी जब तक उसमें थोड़ी निर्दोषता है, बची रहने दो। तुम्हें क्या लग रहा है कि वो जिस गाने पर नाच रहा है, लड़का या लड़की उस गाने का उसके मन पर कोई असर नहीं पड़ेगा? जिस उद्देश्य के लिए तुम उसको नचा रहे हो कि वहाँ जाओ और शो जीत कर लाओ और तारीफ लाओ और पैसा लाओ, उस उद्देश्य का उसके मन पर असर नहीं पड़ेगा? क्यों अपने बच्चे की ज़िन्दगी ख़राब करना चाहते हो?

ये जो तालियाँ मिल जाती हैं और टीवी पर थोड़ी शोहरत मिल जाती है और कुछ पैसे मिल जाते हैं, ये बहुत छोटी चीज़ है। क्यों उस बेचारी बच्ची की ज़िन्दगी तबाह कर रहे हो, उसको घटिया गानों पर नचा-नचाकर के?

और अच्छे से समझो, साफ़-साफ़, मैं नृत्य के ख़िलाफ नहीं हूँ, नृत्य बहुत ऊँची चीज़ हो सकती है, मैं इन घटिया गानों के ख़िलाफ हूँ, जिस पर तुम नचा रहे हो अपने बच्चों को। और मैं उस नीयत के ख़िलाफ हूँ जो बच्चों को इस तरह के अश्लील गानों और भद्दे रियलिटी शोज़ की ओर धकेल रही है।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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