बस शादी हो जाए || नीम लड्डू

Acharya Prashant

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बस शादी हो जाए || नीम लड्डू

लड़की होगी वो चाहे गुड़गाँव में काम कर रही हो, चाहे बंबई में, चाहे बेंगलुरु में, उसकी दो ज़िंदगियाँ होती हैं। एक जो दफ्तर में होती है, दफ्तर में हो सकता है मैनेजर हो, पंद्रह लोग उसको रिपोर्ट करते हों, पंद्रह लोग उसके अधीनस्थ हों। और वहाँ पर वो एक काबिल मैनेजर होगी। क्लाइंट उसके होंगे, कहीं अमेरिका में होंगे, बेल्जियम में, यूरोप में, ऑस्ट्रेलिया में। उनसे बात कर रही है, समझा रही है, कंसलटिंग दे रही है, दुनियाभर की ज़िम्मेदारियाँ उठा रही है।

एक इसका वो रूप होता है और दूसरा रूप होता है जब वो घर आ जाती है। और घर आती है, देखती है अरे माँ की पाँच मिस्ड कॉल पड़ी हैं। और माँ बोलती है, “बिटिया शादी? एक बार को कन्नौज आ जाओ पंद्रह दिन को, छः लड़के देखें हैं तुम्हारे लिए।“ वह कैलिफोर्निया और कैंटकी देख सकती है। माँ उसको बुला रही है, “कन्नौज वापस आ जाओ, तुम्हें घूंघट चढ़ाएँगे।“ और यह हज़ारों लड़कियों की कहानी है आज की, लाखों।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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