वक्ता : रवि का सवाल है कि आज तक तो मैंने ज़िन्दगी में यही देखा है कि मेरी सारी प्रेरणा (मोटीवेशन) बाहर से ही आई है l कोई बाहरी व्यक्ति आता है ,मुझे कुछ बोलता है और उससे मैं उत्साह से भर जाता हूँ l और मैंने यही देखा है कि ऐसा ही होता है l और रवि का कहना है कि ऐसा हो कैसे सकता है कि बाहरी प्रभाव के बिना ऊर्जा का स्त्रोत मेरे भीतर ही हो l
रवि , बाहरी प्रभाव ने आकर तुम्हें उत्साहित किया और फिर क्या हुआ उस उत्साह का ?
बाहरी आता है, एक माहौल बनाता है, तुम्हारे मन को बिलकुल आंदोलित कर देता है l उसके रहते मन आंदोलित होता है पर क्या ऐसा उत्साह सदा रह सकता है? प्रभाव जाएगा और उसके साथ तुम्हारा उत्साह भी चला जाता है l
और क्या जीवन हमने ऐसे ही नहीं बिताया है ? कुछ बाहरी परिस्तिथियाँ बदलती हैं और हमें लगता है – वाह ! अब हम कुछ कर जायेंगे l नया साल आता है – एक बाहरी घटना- और तुम एक संकल्प लेते हो कि कुछ कर जायेंगे पर नया साल रोज़ तो नहीं रहेगा l दस ही दिन में तुम पाते हो कि गुब्बारे में से हवा निकल चुकी है l कोई आता है तुम्हे बहुत क्रांतिकारी बात बोल कर चला जाता है और वो बात तुम्हारे साथ दो दिन -चार दिन रहती है और फिर गायब हो जाती है क्योंकि उस बात का तुमसे कोई गहरा सम्बन्ध नहीं है l बाहर से कोई चीज़ थोप दी गयी है तुम पर; कितने दिन चलेगी ?
और फिर जिसने तुमसे बाहर से एक तरफ जाने को कहा, वो तुम्हें दूसरे दिन किसी और तरफ़ भी जाने को कह सकता है l या एक ताक़त हो सकती है जो तुम्हें एक तरफ़ को खीचे l और दूसरी ताकत आये और कहे कि नहीं, दूसरी तरफ़ को चलो l पहली कह रही है कि मैं तुम्हें पूर्व की ओर जाने को प्रेरित कर रही हूँ और दूसरी कह रही है कि मैं तुम्हें पश्चिम की ओर जाने को प्रेरित कर रही हूँ l कितना बंट जाओगे तुम और कितना बटें-बटें तो रहते ही हो l जीवन हमारा ऐसा ही तो है l
घर कहता है इधर को चलो, शिक्षा कहती है इधर को चलो, दोस्त कहीं और को खींचते हैं, मीडिया कहीं और को खींचती है l और हम उन सब के गुलाम की तरह कभी इधर, कभी उधर बस ब्राउनियन मोशन कर रहे होते हैं l समझ में आ रही है बात?
अगर कोई बाहरवाला तुम्हें उत्साहित करने में सक्षम है तो तुम्हें ये क्यों समझ में नही आता कि फिर वो तुम्हें निरुत्साहित भी कर सकता है l तुम बन गये गुलाम, तुमने अपनी चाभी थमा दी उसके हाथ में कि तू आ, कुछ कर, कुछ कह, तो उत्साह का संचार होगा मुझमें और तू नहीं कहेगा, नहीं करेगा तो हम निरुत्साहित बैठे रहेंगे l तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा इसमें कितनी बड़ी गुलामी है?
और तू हमें उत्साहित करेगा किसी तरफ को ही तो- कि ये कर कि वो कर- याने कि मैं किधर को जाऊँगा इसका फैसला कौन कर रहा है? कोई बाहरी व्यक्ति l
क्या ये उचित है कि तुम्हारी जीवन दिशा का निर्णय कोई और करे?
तुम्हारे प्रश्न का दूसरा हिस्सा ये था कि वो उत्साह स्वयं हो, भीतर से ही निकल पड़े l बिल्कुल होता है और ऐसा नहीं है क़ि तुमने इसको जाना नहीं है l तुम इसको पूरे तरीके से जानते हो l जब भी कभी समझ होती है तो उस समझ से पूरी उर्जा निकलती है l तुम अगर अभी जान जाओ और पूरे तरीके से जान जाओ कि यहाँ पर आग लग गयी है इस कमरे में तो पूरी उर्जा से उठकर भागोगे या फिर मेरे पास आओगे कि मैं बड़ा हतोत्साहित रहता हूँ ,थोड़ी मोटीवेशनल बातें कहिये कि मैं यहाँ से उठकर भागू नहीं तो यहीं जल मरूँगा?
जब तुम जानते हो तो वो जानना काफी होता है l उस जानने से ही पूरी पूरी उर्जा आती है l फिर कुछ शेष नहीं रह जाता l तुम घर फ़ोन करके नहीं पूछोगे कि पिताजी, आज्ञा दें तो बाहर जाऊं l फिर तुम वो करोगे जो तुम्हे स्पष्टतया दिखाई दे रहा है कि यही उचित है, कोई कमी नहीं रहेगी उर्जा की, कोई संकल्प नहीं चाहिए होगा l
*– ‘संवाद ’पर आधारित।स्पष्टता हेतुकुछ अंशप्रक्षिप्त हैं।*