बड़ा काम करना, बड़ा मन रखना || आचार्य प्रशांत (2019)

Acharya Prashant

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बड़ा काम करना, बड़ा मन रखना || आचार्य प्रशांत (2019)

प्रश्नकर्ता: “प्रणाम आचार्य जी। बेंगलुरू, नौकुचिया ताल, और फिर पुणे में आपका सान्निध्य पा कर चेतना को जैसे कोई नया जनम मिल गया है। निर्णय लेने की क्षमता में ज़बरदस्त निर्भीकता आ रही है। जो डर लगा रहता था, “ये नहीं मानेंगे, वह नहीं मानेंगे,” अभी समझ में आ रहा है वह मेरी चालाकी और बुज़दिली थी, और देख पा रहा हूँ कि सब मान जाते हैं अगर निर्णय में निर्भीकता और बोध हो।

जैसे मैंने आपको सूचित किया था, कल से मैं अपनी साइकिल-यात्रा शुरू करने जा रहा हूँ। नहीं पता है क्या कर रहा हूँ, क्यों कर रहा हूँ, बस जीवन को देखने की इच्छा है, लेकिन आपके सान्निध्य में आने से इस यात्रा की महत्ता का बोध भी हो रहा है। आचार्य जी, आपका आशीर्वाद चाहिए, कृपया मार्गदर्शन करें कि अगले इन पाँच महीनों का मैं सदुपयोग कैसे कर सकूँ।“

आचार्य प्रशांत: मौका मिलेगा, लोगों से मिलोगे, बहुत सारे अपरिचितों से जान-पहचान होगी। अपना परिचय देते वक्त सावधान रहना! अगर कहोगे कि एक साइकिलिस्ट हो, तो बात कुछ बनी नहीं। अगर कहोगे कि रोमांच के लिए या मज़े के लिए निकले हो, तो बड़ी छोटी बात हो ग‌ई।

सच्चाई का, करुणा का संदेश देना, और उस भाषा में देना जिसे लोग समझ सकें। तुम भली-भाँति जानते हो, कई बार समझाया है मैंने, कि क्या है इस वक्त जो इंसान को और पृथ्वी को खाए जा रहा है— फैलता हुआ उपभोक्तावाद और सिकुड़ता हुआ धर्म।

लोगों से बात करना, कहना कि संदेश देना चाहते हो अध्यात्म का, समझाना चाहते हो कि दुनिया को, दूसरे लोगों को, जानवरों को भोग-भोग कर कोई तृप्ति, कोई आनंद नहीं मिलने वाला। समझाना लोगों को कि जो वो चाहते हैं वो उन्हें अंधी भीड़ों में शामिल हो कर नहीं मिलेगा, चकाचौंध से भरे बाज़ारों में नहीं मिलेगा। कहना लोगों से कि जब तक करोड़ों, बल्कि अरबों निरीह पशुओं पर आदमी रोज़ प्राणघातक, मार्मिक अत्याचार कर रहा है, तब तक किसी भी आदमी को शांति नहीं मिल सकती। और लोगों से बताना कि धर्म के अभाव से भी कहीं ज़्यादा घातक है झूठा धर्म।

तुम कुछ ऐसा करने जा रहे हो जिसमें तुम्हें एक श्रोता-वर्ग उपलब्ध होगा। लंबी यात्रा है, लोग मिलेंगे तुम्हें, कई लोग सुनेंगे भी। इस अवसर का अपने लिए नहीं, सच्चाई के लिए इस्तेमाल करना। बहुत सतर्क रहना, कहीं ऐसा न हो कि यात्रा तुम्हारे लिए व्यक्तिगत गर्व का विषय बन जाए। लोग तो तुम्हें ऐसे ही देखेंगे, कहेंगे कि, “वाह! क्या बहादुर नौजवान है! क्या अभियान उठाया है इसने! शानदार यात्रा करने निकला है।" झाड़ पर मत चढ़ जाना। भूलना नहीं कि ये सब-कुछ अगर तुमने अपने लिए किया तो तुम्हें बहुत भारी पड़ेगा। एक-एक पैडल , एक-एक पल, एक-एक साँस अपने से बहुत ऊँचे उस लक्ष्य के लिए हो जिसे तुम्हें पाना है, दूसरों तक भी पहुँचाना है।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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