बचपन से ही पीते हो प्रभावों की घुट्टी || आचार्य प्रशांत, युवाओ के संग (2012)

Acharya Prashant

5 min
57 reads
बचपन से ही पीते हो प्रभावों की घुट्टी || आचार्य प्रशांत, युवाओ के संग (2012)

प्रश्न : आचार्य जी, ये घटना मेरे साथ घट चुकी है, वो बता रहा हूँ । एक बार मैं अपने घर, लखनऊ जा रहा था । तो एक माँ और उनके साथ एक बहुत छोटा बच्चा बैठा था । मैं उनके पास ही बैठा था । रास्ते में एक पेड़ पड़ा, उस पर कुछ बंदर बैठे हुए थे । तो उन्होंने बहुत प्यार से बोला, देखो वो बन्दर बैठा है पेड़ पर । तो मैंने सोचा, इतना छोटा बच्चा है, अभी से क्या मतलब सिखा रही हैं !

कुछ देर बाद, उन्होंने बच्चे को ‘बद्तमीज़ कहीं के’ बोला और एक थप्पड़ लगाया ।

तो मैं ये पूछना चाहता हूँ, कि माता-पिता बचपन से ही बच्चों को क्यों घुट्टी पिलाना चाहते हैं?

आचार्य प्रशांत : राहुल का सवाल वही है, कि ये समाज आखिर ऐसा है क्यों? पर उसको और बारीक़ी से देखेंगे ।

पहली बात राहुल ने कही, कि अभिवावक ऐसे क्यों हैं?

देखिए, तो बात इससे शुरू करते हैं, कि ‘अज्ञान पर किसी का हक़ नहीं है’ । ‘नासमझी’ किसी की बपौती नहीं हैं । कोई भी नासमझ हो सकता है । जहाँ तक परवरिश की बात है, पालन-पोषण की बात है, तो वो एक पूर्णतः जैविक प्रक्रिया है । या ये कहना चाहिए कि ‘प्रजनन’ एक पूर्णतः जैविक प्रक्रिया है । हर जानवर बच्चा पैदा कर लेता है । कोई जानवर, कोई प्रजाति, ऐसी नहीं होती जो ना जानती हो, कि बच्चे कैसे पैदा किए जाते हैं ।

बच्चे पैदा कर लेने भर से कोई विशेष योग्यता तो नहीं आ जाती है । ना माँ में, ना बाप में ! अगर माँ-बाप, दोनों के मन में अंधेरा ही अंधेरा है, तो वही अंधेरा वो बच्चे को दे देते हैं । देखो, प्रजनन करना एक बात है, और ये क़ाबिलियत रखना कि आप गुरु बन पाओ बच्चे के लिए, वो बिलकुल दूसरी बात है, बिलकुल ही दूसरी बात है ।

लेकिन पूरी दुनिया में ये भ्रम रहा है, कि माँ-बाप ही बच्चे के पहले गुरु होते हैं, और होता भी यही आया है, कि सबसे ज़्यादा वही उसको सिखा देते हैं । यही कारण है कि समाज लगातार सड़ा-गला रहा है । क्योंकि, शारीरिक तौर पर बच्चा पैदा कर दिया, उसमें कुछ विशेष नहीं कर दिया आपने । पागल भी कर सकता है वैसा ।

(छात्र हँसते हैं)

कुछ विशेष नहीं कर दिया । लेकिन अब आप बच्चे की, कम-से-कम, कंडीशनिंग ना करें । अब आप कम-से-कम ये कोशिश ना करें, कि आप अपनी वैल्यूज़ बच्चे को भी दे दें । अब आप ये कोशिश ना करें, कि आप अपने संस्कार, अपने बंधन, अपनी दासताएँ, अपनी धारणाएँ, ये सब बच्चे को दे दें । अब ये माँ अपनी सारी हीनताएँ, उस बच्चे को दिए दे रही है । अब ये बच्चा एक अस्वस्थ बच्चा बनेगा । दिमाग से अस्वस्थ !

यही बात आगे चल के एजुकेशन में होती है, शिक्षकों के साथ ।

शिक्षक होना एक बात है, और वाक़ई गुरु होना दूसरी बात है ।

सिल्लेबस तो कोई भी पूरा करा देगा । वो कोई बड़ी बात नहीं है । हमने आजतक शिक्षा को यही जाना है की शिक्षा वो है, जिसमें सिल्लेबस पूरा कराया जाता है, और जिसमें बाहरी चीज़ों के बारे में हमें बता दिया जाता है । तो आपकी सारी शिक्षा सिर्फ भाषाएँ, गणित, विज्ञान, भूगोल, इतिहास आदि पर केंद्रित रहती है । पर आप रसायन नहीं हैं, आप नदी नहीं हैं, आप पर्वत नहीं है, आप इतिहास नहीं हैं और ना ही आप हैं प्रौद्योगिकी । हमारी आज तक की शिक्षा पद्यति ने, हमारा परिचय उस एक तत्व, उस एक इकाई से, से कभी नहीं कराया जो हमारे लिए सबसे सार्थक और महत्वपूर्ण है, और वो है क्या? ‘आप’ ।

हमारी सारी शिक्षा व्यवस्था, लगातार और लगातार, बाहरी वस्तुओं के बारे में रही है । जो जबसे महत्वपूर्ण इकाई है, उसके बारे में हमारी शिक्षा ने कभी सोचा नहीं । क्योंकि जिन्होंने ये शिक्षा पद्यति विकसित की है, वो खुद बड़े नामसझ लोग थे । तो उन्होंने शिक्षा में भर दिया है कि पूरी दुनिया के बारे में जानो । लेकिन जो उस पूरी दुनिया को जान रहा है, उसके बारे में कुछ मत जानो और फिर जब शिक्षा व्यवस्था उस तरह की है, तो शिक्षक भी उसी तरीके के हैं । वो समझते भी नहीं हैं, कि वो किस तरीके के सन्देश दे रहे हैं । पर ये सब कह कर, हमें क्या लाभ है?

क्या हम अतीत में जा कर अपना अतीत बदल सकते हैं? नहीं बदल सकते ! हम सिर्फ यह कर सकते हैं कि आज जो कुछ हो रहा है, हम उसको समझें । आज जो कुछ हो रहा है, हम उसको समझें ।

हम बहुत छोटे थे, हमारे साथ क्या हो गया? कोई विशेष लाभ नहीं है उसका ज़िक्र करने से अभी । पूरे समाज में क्या हो रहा है, उसका भी ज़िक्र करने से कोई विशेष लाभ नहीं है । अगर कोई एक इकाई है, जो कि महत्वपूर्ण है, वो है ‘मैं’ । अगर कोई एक पल है जिसमें सार्थक कर्म हो सकता है, वो है ‘अभी’ । अगर कोई एक जगह हैं, जहाँ वास्तविकता है, तो वो ‘यही’ जगह है, ‘अभी’, ‘यहाँ’ ।

अपने को ‘अभी’ सिर्फ ‘यहाँ’ में ले कर के आयें । यही वास्तविक बुद्धिमत्ता है, यही असली समझ है । बस वही है, वास्तव में ‘सजीव’ होना ।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories