ऐसा तो नहीं है कि दस-बारह साल के बच्चे को अगर आप रामकृष्ण की बोध कथाएँ पढ़ाएँगे तो उसे समझ में नहीं आने वाली। आएँगी न। आपके घरों में क्यों नहीं है रामकृष्ण परमहंस की सरल साधारण कथाओं की किताब? कृष्णमूर्ति साहब का साहित्य आता है ‘*कृष्णमूर्ति फॉर द यंग*’। वो किताबें हैं ही कम आयु वर्ग के पाठकों के लिए। औपनिषदिक्, पौराणिक बोध कथाएँ, वो किताबें आपके घरों में क्यों नहीं है? और यह सब उपलब्ध हैं, बस आपकी आँख ज़रा खुले तो।
संत साहित्य से आठ-दस साल की उम्र में ही बच्चों का परिचय क्यों नहीं कराया जा सकता? संत बड़े दूर दृष्टा थे, उनके दोहे एक तरफ़ तो ऐसे हैं कि अस्सी साल वालों को भी समझ में ना आएँ, दूसरी तरफ़ उन्होंने बहुत सारे ऐसे गीत लिखे, ऐसे दोहे कहे जो आठ साल, दस साल के बच्चे भी एक तल पर समझ जाएँ, कुछ-कुछ अर्थ निकाल लेंगे अपने तल का।
वह दोहे, वे गीत आपके घरों में क्यों नहीं गाए जाते? उन गीतों की सीडीज़ क्यों नहीं मौजूद हैं आपके घरों में? आपके घर में अगर टीवी चलता है तो वो संगीत क्यों नहीं चलता?