बच्चे के लिए घातक मोह || (2019)

Acharya Prashant

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बच्चे के लिए घातक मोह || (2019)

प्रश्नकर्ता: मैं जबसे मदर (माँ) बनी हूँ तबसे मैं ये अनुभव कर रही हूँ कि ममता और मोह जो है वो बहुत बढ़ रहा है और डर भी बढ़ रहा है साथ में। चिंताएँ लगी रहती हैं और जब बच्चे के साथ खेलती हूँ तो बहुत एक सुख की अनुभूति भी होती है। तो डर भी एक इस चीज़ का ये लगने लगा है कि कहीं हम एक दूसरे पर डिपेंड (निर्भर) ना हो जाएँ आगे चलकर। तो कृपया उसके लिए मार्गदर्शन करिए।

आचार्य प्रशांत: अब बात तो आप समझ रही ही हैं। कुछ चीज़ें साफ़ दिखाई देने लग गई होंगी। कुछ चीज़ें धीरे-धीरे साफ़ दिखाई देंगी। अपनी बेटी की ओर एक बार को ऐसे देखिए जैसे आपकी बेटी नहीं है, किसी और की है और अपनी बेटी की माँ को ऐसे देखिए जैसे वो आप ना हों। बेटी को ऐसे देखिए जैसे आपकी बेटी ना हो और बेटी की जो माँ है उसको ऐसे देखिए जैसे वो कोई और हो, आप ना हों और फिर देखिए कि माँ बेटी के साथ क्या कर रही है और फिर बताइए क्या चल रहा है।

यही किस्सा किसी और के घर में चल रहा होता तो आप क्या कहतीं? जो सीख, जो सलाह आप उस दूसरी स्त्री को देतीं वही सलाह आपने-आपको दीजिए। दूसरी स्त्री को शायद आप तत्काल बता देतीं, "इतना मोह ठीक नहीं है, तुम बच्चे को ही ख़राब कर दोगे।"

प्र: तो फिर इस पर कैसे काबू करूँ?

आचार्य: वो इसी प्रक्रिया से गुज़रकर सब ठीक हो जाएगा। अभी तो आपको दिखाई भी नहीं दे रहा होगा कि चूक कहाँ पर हो रही है। मोह-ममता आँखों पर पर्दा डाल देते हैं।

प्र: मैं इसे ऐसे उचित ठहराती हूँ कि अभी वो छोटी है तो सबकुछ मुझे ही करना है।

आचार्य: ये आप जस्टिफाई (जायज़) करती हैं अपनी बेटी को लेकर। आप नहीं जस्टिफाई (जायज़) करेंगी दूसरे की बेटी को लेकर। यही ऐसा नहीं है कि आपकी समझ में चूक है। समझती आप सबकुछ हैं, समझ के ऊपर पर्दा डल जाता है। मातृत्व-मोह ये समझ के ऊपर पर्दा डाल देते हैं। पर्दे को हटाने का सरल तरीका है — थोड़ा दूर जाकर खड़ी हो जाइए और स्वयं को और बेटी को ऐसे देखिए जैसे किसी और के घर को देख रही हों और फिर देखिए कि वो स्त्री उस बच्ची के साथ क्या व्यवहार कर रही है, कैसा रिश्ता रख रही है। और फिर पूछिए कि क्या ये रिश्ता उस स्त्री के लिए, और स्त्री से भी ज़्यादा उस बच्ची के लिए लाभदायक है। अगर लाभदायक है तो बढ़िया है। नहीं है तो जो भी सही सलाह है, आप उस माँ को दीजिए और कहिए कि, "मैं जानती हूँ कि इरादा तुम्हारा यही है कि बच्ची का भला हो। पर तुम जैसे चल रही हो, जैसे कर रही हो इसमें बच्ची का कल्याण शायद ना हो।" यूँही थोड़े ही है कि हज़ारों सालों से समझाने वाले बुज़ुर्ग हमें समझा-समझाकर थक गए कि बचो ये दुश्मन हैं तुम्हारे — ममत्व, आसक्ति, मोह ये तुम्हें कहीं का नहीं छोड़ेंगे। ये बर्बादी के कारण बनते हैं। जिन्होंने ये बातें हमें समझाई वो हमारे हितैषी थे या शत्रु? हितैषी ही थे न? तो कोई बात होगी कि उन्होंने ये बातें समझाई हैं। उनकी बातों पर ग़ौर करें और यही सब बातें उन देवीजी को समझाएँ। अपने-आपको तो समझाना मुश्क़िल होता है तो उनको समझाएँ।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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