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आइन रैंड की द फाउन्टेनहेड पर || आचार्य प्रशांत (2019)
Author Acharya Prashant
Acharya Prashant
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प्रश्नकर्ता: बहुत से लोग हैं जो फाउंटेनहेड पढ़कर जीवन में कोई बदलाव नहीं ला पाते हैं। और दूसरी तरफ़ बहुत ऐसे भी लोग हैं जो इस पुस्तक को पढ़ने के बाद विद्युतीकृत हो जाते हैं। आचार्य जी मैं दूसरे लोगों की श्रेणी में आने के लिए क्या कर सकता हूँ?

आचार्य प्रशांत: ढंग से पढ़ो।

जो क़िताब तुम पढ़ रहे हो, उसके पात्र कुछ ऐसे हैं कि अगर उनके साथ वाक़ई रिश्ता बना सको, उनसे रिश्ता बना सको, तो ज़िन्दगी में विद्युत तो दौड़ ही जाएगी। किस्से-कहानियों की तरह नहीं पढ़ो, ज़रा दिल से पढ़ो।

अट्ठारह-बीस साल का था मैं, जब मैंने पढ़ी थी। तो कई दफ़े देखा कि पढ़ते-पढ़ते अचानक उठकर बैठ जाता था, या खड़ा हो जाता था। जो बात होती थी वो बिलकुल अपनी होती थी। और अचम्भा हो जाता था, झटका लग जाता था, कि ये तो बिलकुल मेरी बात है। ये इसको कैसे पता?

जवान लोगों को होवार्ड रोअर्क (फाउंटेनहेड के नायक) से मिलना चाहिए! बहुत कुछ है उससे सीखने को। बचपना, नादानियाँ, निर्भरताएँ, दुर्बलता और आश्रयता की भावना – इन सबसे एक झटके में मुक्त करा दे, ऐसा किरदार है वो।

ख़ासतौर पर ऐसे युवाजन जो शरीर से तो जवान हो गए हैं, पर मन से अभी भी घरवालों पर या दुनिया-समाज पर आश्रित हैं, व्यस्क नहीं हो पाए हैं! बीस, पच्चीस, तीस के होने पर भी अभी पुरुष नहीं हो पाए हैं।

जिनके भीतर डर अभी भी हो, जो पारिवारिक और सामाजिक सत्ताधारियों की आवाज़ें सुन कर काँप जाते हों, जो घर पर बाप के सामने और स्कूल/कॉलेज में प्रिंसिपल के सामने थर्राते हों, जो कभी माँ के हाथ से और कभी प्रेमिका के हाथ से निवाला खाते हों। जो या तो कृषकाय हों, दुर्बल हों, या फ़िर जवान होकर भी गोल-मटोल हों, ऐसे सब लोगों के लिए आवश्यक है ‘ फाउंटेनहेड ’।

रोअर्क की खूबसूरती इसमें है कि वो बिलकुल भी एक आम नौजवान जैसा नहीं है।

उसकी ज़िन्दगी में ना माँ के हाथ का निवाला है , ना प्रेमिका के हाथ का।

ना वो बाप से थर्राता है, ना प्रिंसिपल से।

ना उसे डिग्री की चाहत है, ना नौकरी की।

पर प्यार है उसे!

व्यक्तित्व उसका देखने में इतना रूखा, कि अगर आप शायर क़िस्म के आदमी हैं, तो कहेंगे, “ये तो बंजर रेगिस्तान है। यहाँ तो कोई ग़ज़ल ही नहीं!”

पर रोअर्क का अपना एक गीत है, प्रेम गीत।

और सबके लिए नहीं है, उनके लिए नहीं है जिनको घी लगी चुपड़ी रोटी पसंद है।

कम बोलता है रोअर्क, और अकेले रहता है।

देखिए अगर आपको उसकी संगति मिल सके तो!

और भी पात्र हैं।

अभी कल रात को ही मैं आजकल के एक सुप्रसिद्ध धर्मगुरु के विषय में कह रहा था कि वो बिलकुल ‘एल्सवर्थ टूहि’ ( फाउंटेनहेड के एक अन्य पात्र) जैसे हैं! उतने ही शातिर, उतने ही चालाक, उतने ही सफ़ल।

और जवान लोग हो तुम सब, डॉमिनिक (फाउंटेनहेड की नायिका) से नहीं मिलना चाहोगे? हाँ वो तुम्हारी आम गर्लफ्रेंड (प्रेमिका) जैसी नहीं है कि जिसको चॉक्लेट और टेड्डी-बेयर देकर के पटा लो। डॉमिनिक एक चुनौती है। वो ऐसी नहीं कि रो पड़ी, तुमने आँसू पोंछ दिए, चुम्मी ले ली, बात सुलट गई! डॉमिनिक ललकार है!

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