ए.टी.एम कार्ड अपना होना चाहिए || नीम लड्डू

Acharya Prashant

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ए.टी.एम कार्ड अपना होना चाहिए || नीम लड्डू

देवी जी आईं, बोलीं, “पैसा नहीं है।“

मैंने कहा, "आप का कुछ अपना खाता-वाता नहीं है?" बोलीं, “है।“

“उसमें कुछ नहीं?”

“बहुत है!“

“फिर?”

“नहीं, वो ए. टी. एम एक ही है, वह उनके पास रहता है।“

मैंने कहा, “ले!”

अपना खाता रखो, और ए. टी. एम का पासवर्ड पतिदेव को तो बिलकुल मत बताना, और ना डुप्लीकेट कार्ड बनवाना। और ना उसके ए. टी.एम का पासवर्ड तुम्हें पता होना चाहिए। ना यह करना है कि, “अपने क्रेडिट-कार्ड से एक और बनवा दो न मेरे लिए!” कुछ नहीं।

प्रेम कितना भी हो, आर्थिक आत्मनिर्भरता बहुत ज़रूरी है। बल्कि प्रेम भी तब ही हो सकता है जब दोनों पक्ष सबल हों। तो यह मत कर देना कि, “प्रेम बहुत हो गया है तो हम अपनी व्यक्तिगत सत्ता क्या रखें! प्रेम का तो मतलब ही है न समर्पण। जब तन-मन श्रीपति को समर्पित कर ही दिया है तो धन भी अपना क्या रखें?”

“आओ परमेस्वर! धन भी तुम्हारा ही है!”

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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