अतीत की असफलताओं का क्या करूँ? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

10 min
50 reads
अतीत की असफलताओं का क्या करूँ? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

* वक्ता: * आर्येन्द्र का सवाल है कि कुछ काम किया और असफलता मिली, तो मन में कुछ ऐसी गाँठ बन गयी है कि आगे भी काम करेंगे तो सफलता मिलेगी या नहीं, पता नहीं। मन में बात बिलकुल जम कर बैठ गयी है। असफलता गहरे छोड़ गयी है। कितनों के साथ ऐसा हुआ है कि पुरानी असफलताएं अभी भी याद आती हैं?

(सभी हाथ उठाते हैं)

तो सिर्फ आर्येन्द्र का सवाल नहीं है। लगता है बहुतों का सवाल है। पुरानी असफलता कहाँ है? जिस पुरानी असफलता को तुम याद कर रहे हो वह है कहाँ पर? अभी तुम यहाँ बैठे हो, मैं कुछ कह रहा हूँ उसे सुन रहे हो, इसमें वह पुरानी असफलता है कहाँ? हाँ एक नयी असफलता ज़रूर पैदा हो जाएगी अगर तुम इस वक़्त भी उस ही पुराने को सोचते रहोगे।

जो पुराना दिन बीत जाता है वह पूरी तरह बीत जाता है। वह अपने कोई निशान छोड़कर नहीं जाता। अस्तित्व को देखो, दुनिया को देखो,जो बीत गया वह बीत ही गया। अब उसका कुछ भी बचा नहीं है।

लेकिन हमारा जो मन है वह उसको पकड़ करके बैठा रहता है। सिर्फ असफलता को ही नहीं सफलता को भी पकड़ कर बैठा रहता है। जब मैं कह रहा हूँ कि पुरानी असफलता कहाँ बची है तो मैं तुमसे यह भी कह रहा हूँ कि पुरानी सफलता कहाँ बची है? और मेरे लिए सफलता की बात करना बहुत ज़रूरी है क्योंकि तुम्हे असफलताएं याद ही इसलिए रहती है क्योंकि तुम्हे बहुत शौक है अपनी सफलताओं को याद रखने का। उस से अहंकार को बड़ी ताकत मिलती है कि मैं सफल था। अब याद तो तुम रखना चाहते थे अपनी सफलता, वह मिली नहीं पर जो मिल गया वह याद रखा है क्योंकि तुमने जगह तो बहुत सारी बना ही दी थी कि इसमें हम याद रखेंगे।

जो असफलताओं के पार जाना चाहता हो, उनसे मुक्ति चाहता हो, उसे सफलताएं भी भूलनी पड़ेंगी।

क्रिकेट में एक बहुत अच्छा बल्लेबाज़ हुआ है, उसने दो सौ रन बनाए, तीन सौ – चार सौ भी बना गया। लोगों ने पूछा कैसे इतनी लम्बी पारियां खेल जाते हो। तो उसने कहा कि हर पचास रन बनाने के बाद मैं अपने आप को यह बोलता हूँ कि मैं शुन्य से खेल रहा हूँ। मैं शून्य पर ही खड़ा हूँ। मैं भूल जाता हूँ कि मैं कितनी दूर आ गया। मैं अपनी सफलता भुला देता हूँ। मैं खेल रहा होंगा सौ पर, पर भूल जाता हूँ कि पहले ही दोहरा शतक बना दिया है। मैं शुन्य पर खड़ा हो जाता हूँ।

क्योंकि हम सफलता को याद रखने की पूरी-पूरी कोशिश करते हैं, इस ही कारण असफलता भी याद आती है। और हम सफलता को क्यों याद रखना चाहते हैं? ताकि हम दावा कर सकें कि हमने जीवन में कुछ कमाया है। ताकि हम दावा कर सकें कि हमारा जीवन खाली ही नहीं है, इसमें कुछ उपलब्धियां हैं।

तभी तो सफलताएं याद रखनी हैं। मैं जब चार साल का था मैंने यह किया। दस का था तो यह किया, बारह का था तो यह किया , पंद्रह का था तो यह किया; पूरा पता होना चाहिए। और उस ही से हमारा मन पूरी ताकत पाता है। अब मैं तुमसे यह कह रहा हूँ कि यह बहुत बड़ी कमज़ोरी है क्योंकि तुम पहले ही ताकतवर हो।

अतीत से ताकत वह जुटाना चाहे जो कमज़ोर हो। तुम कमज़ोर हो ही नहीं। ताकत तुम में पहले ही है।

पर तुम सबमें एक गहरी कुंठा है कि हम कमज़ोर हैं, हम में कोई कमी है। हम में से एक-एक व्यक्ति यही भाव लेकर बैठा है कि मुझमें कोई खोट है। मैं किसी ना किसी रूप में अधूरा हूँ। कोई कमी है मुझमे। कोई कमी है मुझमें और इसी कारण जब कोई सवाल उठता है तो मैं उसको बताना चाहता हूँ कि देखो मैंने यह किया है, वह किया है।

अतीत से कुछ भी वो उधार मांगे जिसके वर्तमान में कोई कमी हो। तुम्हारे वर्तमान में कमी क्या है? तुम पूरे हो, बढ़िया हो, अभी ठीक-ठाक हो। तुम्हें ना अतीत की ज़रुरत है ना ही भविष्य की।

तुम्हें अतीत की स्मृतियों का सहारा भी लेना होता है और भविष्य के सपनों का भी। तुम बार-बार अपने आप से कहते हो कि कोई कमी है मुझमें जिसे भविष्य में पूरा कर लूँगा। अभी कुछ भी ठीक नहीं है। जिस दिन मैं ऐसा स्थान पा लूंगा, नौकरी पा लूंगा, इतने पैसे पा लूंगा; उस दिन मैं ठीक हो जाउंगा। उस ही का नाम तुमने सफलता दे रखा है। उस ही को तुम सफलता का नाम देते हो। सफलता की इच्छा बस यही बताती है कि तुम कितने कुंठित हो। और मैं तुमसे कह रहा हूँ कि तुम्हे कुंठित होने की कोई ज़रुरत ही नहीं है, क्योंकि तुम बढ़िया हो। तुम में कोई कमी है ही नहीं। अपनी ताकत को, अपने सामर्थ्य को भूले बैठे हो, इस कारण तुम्हे लगता रहता है कि मैं कमज़ोर हूँ, अधूरा हूँ, छोटा हूँ.

छोटा होने का, सीमित होने का भाव हम में बहुत गहरा है। इसी कारण हमे लगातार अतीत की ओर देखते रहना पड़ता है।

अतीत की ओर देखते तो हैं कि कुछ अच्छा याद आ जाए। और उसकी जगह याद आते हैं वह निशान जो असफलताएं छोड़ गयी। मैं कहता हूँ कि असफलता नहीं भी याद आएँगी, उनका विपरीत भी याद आएगा तो कोई भला नहीं हो जाएगा। असफलता नहीं भी याद आएँगी , कुछ और भी याद आएगा तो कुछ भला नहीं हो जाएगा।

लाभ तो तब है जब अतीत की ओर देखना ही ना पड़े। मज़ा जीने का तब है जब अतीत की ओर देखना ही ना पड़े। मज़ा जीने का तब है जब भविष्य की ओर भी देखना ना पड़े। हम जैसे हैं बढ़िया हैं। भविष्य हम में और क्या जोड़ देगा?

पर ऐसा हम जानते नहीं। ऐसा विचार उठता ही नहीं। कि मैं बहुत-बहुत अच्छा हूँ। और दोष इसमें पूर्णतया तुम्हारा नहीं। अगर तुम अपनी पूर्णता को भुलाए बैठे हो तो उसका कारण यह है कि बाहर से आवाज़ें आती रहती हैं और तुम्हें बताती रहती हैं कि तुम अधूरे हो, छोटे हो, कमज़ोर हो, खाली हो और अपने खालीपन को भरो। तुम्हें बताया जाता है कि जब तक तुम्हारे ऐसे अंक ना हो, समाज में ऐसा रुतबा ना हो, इतने पैसे ना हो, इज्ज़त ना हो; तब तक तो तुम बेकार ही हो। और तुमने इसी बात को गहराई से बैठा लिया है। शायद ही यहाँ पर ऐसा हो जो कहता हो, कि कुछ भी ना हो मेरे पास, मैं जैसा हूँ बढ़िया हूँ। ऐसा दावा करने वाला शायद ही कोई यहाँ बैठा हो। हम में से यहाँ वही लोग बैठे हैं जिन्हे पक्का-पक्का पता है कि वह कचड़ा ही हैं। इस से ज्यादा अफ़सोस की बात हो नहीं सकती। हम में से कई लोगों को पक्का भरोसा है कि हम कचड़ा हैं। और उनको दिन-रात यकीन दिलाओ कि नहीं तुम कचड़ा नहीं हो, हीरे जैसे हो। तुम वाकई बहुत कीमती हो, बहुत अच्छे हो, बहुत सुन्दर हो तो भी वह मानने को तैयार नहीं होते।

मैं फिर कोशिश करूँगा, मैं फिर कह रहा हूँ कि तुम में जो कुछ है बहुत अच्छा है, बहुत कीमती है; हीरे ही हो तुम। पर देखो ना जब मैं तुमसे कह रहा हूँ तो तुम मुझे ऐसे देख रहे हो जैसे ‘सर क्या चढ़ा रहे हो हमें?’ तुम्हारे चहरे चमक नहीं रहे मेरी बात सुनकर । तुम और अविश्वास से देख रहे हो कि यह कैसी बातें कर रहे हैं। यह हमें हीरा बोल रहे हैं? हम जो लगातार असफल रहे हैं। हम जिनको लगातार यही संदेश दिया जाता है कि खोट ही खोट है। मैं तुम्ही को यह कह रहा हूँ, और सब जानते बूझते कह रहा हूँ। इधर-उधर भागो मत। बहुत कोशिशें मत करो सफलता की। तुम सफल ही हो । बस बहुत सारी गन्दगी तुमने इक्कठा कर ली है। उस गन्दगी के कारण तुम अपने असली स्वभाव को भूल गए हो।

ना सफलता की तलाश और ना असफलता का दुःख। दोनों में से किसी ओर भी जाने की ज़रुरत नहीं है। जैसे भी हो मौज में काम करो। बस मन स्वस्थ रहे। मन न डरा रहे न चिंतित रहे और न तनाव में रहे। उसके बाद सफलता और असफलता दोनों बिल्कुल बेमानी हो जाते हैं। दोनों से तुम्हें कोई विशेष प्रयोजन नहीं रहता।

अपने मन में, अपने ऊपर एक गहरा विश्वास रखो। क्या विश्वास ? मैं कीमती हूँ। मैं समझ सकता हूँ। मुझमे खोट नहीं है। मुझे लाख असफलताएं मिलें तो भी मेरा कुछ नहीं बिगड़ सकता।

समाज मुझे इज्ज़त ना दे, नौकरी ना दे, तो भी मेरा कुछ नहीं बिगड़ जाएगा। मैं पूरा हूँ। उपलब्धियों से मेरा जीवन शून्य भी चला जाए, तो भी मेरा बाल भी बाका नहीं हुआ। क्योंकि मैं अभी ही सब कुछ पा चुका हूँ। मुझे और कुछ पाना नहीं है। मुझे बस मौज में रहना है। कोई मुझे आ कर लाख ताने दे, लाख व्यंग्य मारे, लाख समझाए कि देखो तुम कुछ ठीक-ठाक नहीं हो, देखो अगर ज़िन्दगी बनानी है तो यह सब कर लो। मैं ऐसे तो कोई काम नहीं करूँगा क्योंकि ज़िन्दगी बनी ही हुई है। हाँ, काम करेंगे, खूब करेंगे पर अपनी मस्ती में करेंगे। मौज में करेंगे। पढ़ेंगे तो मौज में पढ़ेंगे, जीवन में आगे बढ़ेंगे तो मौज में बढ़ेंगे।

जीवन में आगे इसलिए नहीं बढ़ेंगे क्योंकि बढ़ना है और आगे बढ़के कुछ पा लेना है। कुछ पा लेने का भाव अफ़सोस को जन्म देता है, दुःख को जन्म देता है कि मुझे कुछ पाना है। पाने का अर्थ है कि अभी वह मेरे पास नहीं है। और जिसको यह लगातार लगता रहेगा कि मेरे पास कुछ नहीं है वह कैसे मौज में जिएगा? वह जवान होते हुए भी बिलकुल बूढ़ा हो जाएगा। उसकी ज़िन्दगी में कोई गर्मी, कोई ऊर्जा नहीं रहेगी। सिर्फ तनाव रहेगा। जीवन नहीं रहेगा। डर की छाया रहेगी।

डरने की कोई वजह नहीं है। तुम में कुछ अधूरा छोड़ा नहीं गया है। वह अधूरापन तुमने सोच-सोच कर निर्मित कर लिया है। वह अधूरापन तुमने इधर-उधर की आवाज़ों को तवज्जो देकर निर्मित कर लिया है। दुनिया भर की आवाज़ें आती हैं, तुम्हें यही बताती हैं। उन आवाज़ों को सुन लेना पर बहुत महत्व मत दे देना।

जो कोई तुमसे यह कहने आये, अरे अरे, तुम्हें यह नहीं मिला, तुम्हारे साथ बहुत बुरा हो गया, वह तुम्हारा दोस्त नहीं हो सकता। तुम्हारा दोस्त वही है जो तुमसे कहे कि तुझे कुछ ना मिले तब भी तेरा कुछ नहीं बिगड़ सकता। तुम्हारा दोस्त वही है जो तुम्हें बताए कि मिला या नहीं मिला, तुम पूरे ही हो।

भूलना नहीं, तुम पूरे ही हो।

– ‘संवाद’ पर आधारित।

YouTube Link: https://youtu.be/JN6q9PovQBY

GET UPDATES
Receive handpicked articles, quotes and videos of Acharya Prashant regularly.
OR
Subscribe
View All Articles