सेक्स अगर तुम्हें शांत कर सकता होता, दो बार, चार बार में कर गया होता न? यहाँ तो लोग अपने जीवन काल में हज़ारों बार कर जाते हैं और उसके बाद भी लालायित रहते हैं, प्यास ही नहीं बुझती।
अधेड़ हो गए, साठ के हो गए, अस्सी के हो गए, गोली खा कर जीते हैं और उसमें से एक गोली सेक्स की भी होती है। एक गोली किसी तरह दिल धड़कता रहे, एक होती है कि किडनी चलती रहे, एक गोली है कि साँस चलती रहे और एक गोली साथ में ये भी लिए जा रहे हैं कि योनांग सख्त रहे।
जो प्रक्रिया तुम पंद्रह-बीस की उम्र से शुरू करते हो, वो अस्सी-पच्चासी का होकर के भी पूरी नहीं होती। उसमें कुछ रखा होता तो भाई छः महीने, साल भर में पूरी हो गई होती। चलो छः महीने, साल भर में नहीं, पाँच साल में पूरी हो गई होती। तुम मुझे बताओ तुम्हारा पूरा जीवन खा कर भी वह प्रक्रिया कभी पूरी होती है? तुम पचास-हज़ार बार कर लो मैथुन, तुम्हारी प्यास मरती है क्या? बल्कि होता यह है कि जितना करते हो उतना और डूबते हो।