अपने सपनों का अर्थ जानो || (2016)

Acharya Prashant

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अपने सपनों का अर्थ जानो || (2016)

आचार्य प्रशांत: आखिर सपने मन से ही उठते हैं। मन की अवस्थाएँ भले ही अलग-अलग हों, लेकिन मन का जो मूल है, वो एक ही है। तीनों अवस्थाओं के नीचे, जो मन की वृति है, वो एक है। तुम जगते हुए जो इच्छा करते हो, और सोते हुए जो सपना देखते हो, वो बहुत अलग-अलग नहीं हो सकते। अगर अलग-अलग दिख रहे हैं, तो तुमने या तो अपनी इच्छाओं को नहीं समझा है या अपने सपनों को नहीं समझा है। इच्छाओं और सपनों दोनों का उद्गम एक ही है और वो वही है, एक भीतरी तलाश कि कुछ चाहिए, कुछ बचा हुआ है। उसको भौतिक रूप में मत ले लेना। जैसे कि जब जगे हुए हो, तब इच्छा तुम करते हो कभी इज्ज़त की, कभी गाड़ी, कभी नम्बरों की, कभी सुरक्षा की, कभी किसी व्यक्ति की, और तुम्हें लगता है कि यही हैं तुम्हारी इच्छा के विषय, कोई वस्तु। है न?

सामने गाड़ी का चित्र है या किसी इंसान का चेहरा है या कोई संख्या है, कि बैंक बैलेंस इतना होना चाहिए। इसी तरीके से सपने में भी तुम्हें कुछ चेहरे दिखाई देते हैं, कुछ वस्तुएँ दिखाई देती हैं, कुछ वस्तु, कुछ विषय। ये मत समझ लेना कि तुम्हारा सपना उनके बारे में है। सपना चाहे खुली आँखों से देखा जाए, चाहे बंद आँखों से देखा जाए, उसकी तलाश उसके विषय से आगे की होती है। तुम भले ही कोई छोटी सी चीज़ ही माँग रहे हो। तुम भले ही यह कह रहे हो कि, "मुझे एक घड़ी चाहिए" या भले ही तुम ये कह रहे हो कि, "मुझे किसी व्यक्ति का साथ चाहिए" लेकिन तुम्हें जो चाहिए, वो उस घड़ी और व्यक्ति से आगे का है। सपने इस मायने में ज़रा और महत्वपूर्ण और, और सांकेतिक होते हैं क्योंकि वो और गहराई से निकलते हैं।

जो तुम्हारा सचेत मन है या जिसे हम चैतन्य हिस्सा कहते हैं, वो सतही होता है। वो तुम्हारी दयनीय स्मृतियों से भरा हुआ है। तुमने पिछले आठ, दस, बीस साल में जो देखा-सुना, वो उससे भरा होता है और सपने जहाँ से आते हैं, वो उससे भरा होता है जो तुम्हारी, और पुरानी तलाश है। और पुरानी, तुम्हारी ही है पर और प्राचीन। समझ रहे हो बात को? तो इच्छाएँ और सपने, दोनों इशारा एक ही तरफ़ को करते हैं पर दोनों में अन्तर डिग्री का है। इच्छा भी उसी को माँग रही है जिसको सपने माँग रहे हैं, लेकिन इच्छाएँ ऐसी हो सकती है कि तुमने परसों एक शर्ट देखी थी, तो आज तुम्हें उस शर्ट की इच्छा हो आयी। लेकिन जो तुम्हारे सपने होते हैं, तुम रात में आँखें बंद करके लेते हो, वो और गहरी तलाश और पुराने हैं, इसलिए सपनों में तुम्हें कई बार ऐसी चीज़ें दिखाई देती हैं, जिनका तुम कोई अर्थ ही नहीं लगा पाते।

किसी को मेंढक आ रहे हैं। भई! मेंढक से कोई प्यार नहीं है पर सपने में मेंढक क्यों आ रहा है? किसी को दूसरे ग्रहों के सपने आ रहे हैं, किसी को कोई विचित्र आवाज़ आ रही है। इनको डिकोड करना होता है। और अगर डिकोड ना भी करना चाहो, तो भी इतना जान लेना काफ़ी है कि मन तलाश कर रहा है किसी की, अन्यथा सपने नहीं आते। और इस बारे में बहुत व्यग्र होने की ज़रूरत नहीं है कि मन किस की तलाश कर रहा है क्योंकि मन एक को ही तलाशता है। तुम्हारी सारी इच्छाओं और सारे सपनों के केंद्र में वही बैठा हुआ है। वो मिल नहीं रहा है इसीलिए इच्छाएँ उठती हैं। वो मिल नहीं रहा है, इसीलिए रात को सपने देखते हो। तुमने अपने कुछ परिवारजनों का नाम लिया है, कि उनके तुम्हें सपने आते हैं, सतही बात है।

ये सारी बातें कि किसी को प्रेमिका का चेहरा दिखाई पड़ता है या किसी को बुआ का चेहरा दिखाई पड़ता है, या किसी को अपने गुज़रे हुए किसी दोस्त का चेहरा दिखाई पड़ता है, बहुत सतही बातें है। उन सारे चेहरों के पीछे जो चेहरा है, उसको देखो। वो उसका चेहरा है, जिसका कोई चेहरा होता नहीं। वो ख़ुदा का चेहरा है। उसके अलावा तुम्हें और किसी की तलाश हो ही नहीं सकती और चूँकि वो दूर है इसलिए मन बेचैन है। बात समझ रहे हो? इस भूल में मत पड़ जाना कि तुम्हें किसी इंसान की तलाश है।

अभी तीन-चार रोज़ पहले एक विश्वविद्यालय में, मैं कह रहा था कि तुम्हें किसी का ख़त आए तो लिफ़ाफ़े को पकड़ कर नहीं बैठ जाना होता है न। लिफ़ाफ़ा तो फाड़ने के लिए होता है, लिफ़ाफ़ा तो नष्ट कर देने के लिए होता है। और तुम्हें लिफ़ाफ़े से ही मोह हो गया अगर, तो ख़त कभी पढ़ नहीं पाओगे। हम में से अधिकांश लोगों के साथ यही होता है। हमें जिन चेहरों से मोह है, उन चेहरों के पीछे एक और चेहरा है, पर तुम उस तक नहीं पहुँच पा रहे क्योंकि तुम्हें लिफ़ाफ़े से ही मोह हो गया है। लिफ़ाफ़े को फाड़ना पड़ेगा। जिस चेहरे से तुम्हें मोह है, तुम्हें उस चेहरे से आगे जाना पड़ेगा। उसके पीछे के चेहरे को देखना पड़ेगा।

तुम फँस गए हो, और माया किसी की भी शक्ल लेकर आ सकती है। क्यों सोचते हो कि माया किसी कामिनी स्त्री की ही शक्ल लेकर आएगी? माया एक छोटे से बच्चे की शक्ल लेकर भी आ सकती है, आती ही है। समझ क्यों नहीं पा रहे हो?

जिसकी जहाँ आसक्ति, माया वैसी ही शक्ल ले लेगी।

कोई क्यों सोचता है कि माया बहुत सारे सोने की, बहुत सारे पैसे की या कामेच्छा की ही शक्ल लेकर आएगी? माया, ममता की शक्ल लेकर बैठी हुई है। माया, कर्तव्य की शक्ल लेकर बैठी हुई है। लिफ़ाफ़े को फाड़ कर जब देखोगे, तो भीतर असली बात पता चलेगी। तुम्हारी हालत ऐसी है कि तुम्हें प्रेम पत्र भेजा गया हो, और तुम उसे चूमे जा रहे हो, चूमे जा रहे हो, किसको?

प्र: लिफ़ाफ़े को।

आचार्य: लिफ़ाफ़े को, और सालों से पड़ा हुआ है प्रेम पत्र। तुमने पढ़ा ही नहीं क्योंकि लिफ़ाफ़े से ही आसक्ति है। सपने में जो कुछ भी दिखता है, उसको बस लिफ़ाफ़ा मानना। वो कोई संकेत नहीं है। ये सारी बातें कि सपनों को पढ़ो, कि सपनों से कुछ पता चलेगा, ये सब। हर सपना बस एक ही बात बताता है। इससे ज़्यादा की तुम आतुरता मत दिखाना। क्या बात? कि ख़ुदा की तलाश है।

हालाँकि इसपर खूब किताबें लिख दी गई हैं, बड़े-बड़े स्वप्न्वेद आते हैं, और जो बताते हैं कि, "देखो, इस सपने का यह मतलब है। इस सपने का मतलब है कि तुम ये वाली अंगूठी पहनो, इस सपने का मतलब है कि फ़लानी जगह मकान बनवा लो", और तुम्हारा पूरा साहित्य ऐसी बातों से भरा पड़ा है कि एक राजा को सपना आया कि फलाने टीले के नीचे एक मंदिर है, तो उसने वहाँ जाकर के खोदा, तो उसे मूर्तियाँ मिली, राजा विक्रमादित्य। ये सब बातें यूँ ही हैं। मन भटक रहा है, मन बेचैन है, उसे शांति की तलाश है, परमात्मा की तलाश है। यही है सपना, और यही है तुम्हारी हर इच्छा का सबब। इच्छा का चेहरा भले ही कोई हो, पर इच्छा का सबब यही है, ‘वो’ मिल जाए।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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