अपने मालिक आप || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2012)

Acharya Prashant

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अपने मालिक आप || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2012)

वक्ता: विनीत का सवाल है कि जो भी विचार इस मन में आते हैं, वो आते तो बाहर से ही हैं| कोई न कोई बाहरी प्रभाव होता है जिसके फलस्वरूप मन में कोई विचार उठता है| कोई भी विचार पूर्णतया आंतरिक तो हो नहीं सकता| विचार का स्रोत कुछ न कुछ जो बाहर हो रहा है, वहीं पर है| तो विचारों का करें क्या? और मन ये भी जान रहा है कि ये तो ‘मन’ का ही एक नियम ही है|

बिल्कुल ठीक कहा| मन का यही नियम है कि वो पूर्णतया बाहरी पर आश्रित है| मन का यही नियम है कि उसका अपना कुछ नहीं है, वो जो पाता है बाहर से ही पाता है| लेकिन विनीत, तुमसे ये किसने कह दिया कि तुम मात्र मन हो? तुमसे ये किसने कह दिया कि मन के अलावा तुम्हारा कोई और अस्तित्व नहीं?

मन निश्चित रूप से ग़ुलाम है| जो भी तुम देखोगे, वो बाहर से ही आयेगा| जो भी तुम सुनोगे, वो बाहर से ही आयेगा| जो भी जानकारी तुम एकत्रित करोगे, वो भी बाहर से ही आयेगी| पर उन सब को समझने की क्षमता भी क्या बाहर से आयेगी?

सभी श्रोतागण (एक स्वर में): नहीं|

वक्ता: वो पूर्णतया तुम्हारी है, आत्यांतिक है, आंतरिक है और वही तुम हो| प्रभाव बाहरी ही होंगे, पर तुम बाहरी नहीं हो| प्रभावों को आने दो बाहर से, पर तुम ख़ुद को तो बाहर से मत लाओ| बात समझ में आ रही है?

सभी श्रोतागण (एक स्वर में): जी, सर|

वक्ता: जानकारी बाहर से ही आयेगी पर हम केवल जानकारी ही बाहर से नहीं लेते| हम निर्णय भी बाहर से ले लेते हैं| हमें जानकारी(इनफार्मेशन) और निर्णय(डिसिजन) का ठीक-ठीक अंतर नहीं पता| जानकारी बाहर से लेने में कोई बुराई नहीं है क्योंकि जानकारी बाहर से ही आ सकती है| पर हमारे जीवन के निर्णय क्यों बाहर से आ रहे हैं? वो निर्णय हमारे अपने विवेक से क्यों नहीं निकल रहे? बात समझ में आ रही है?

सभी श्रोतागण (एक स्वर में): जी, सर|

वक्ता: आने दो सारी जानकारी बाहर से, पर उस जानकारी के मालिक तुम हो| वो जानकारी तुम्हारे ऊपर चढ़ कर नहीं बैठ सकती| ये विचार जो बाहर से आ रहे हैं, वो तुम्हारे मालिक नहीं बन सकते| इन विचारों को भी जानने की क्षमता तुममें है| और वही सबसे महत्वपूर्ण है, वही केन्द्रीय है| उस क्षमता को मत खो देना|

ठीक?

सभी श्रोतागण (एक स्वर में): जी, सर|

-‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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