अपने करे संसार तो मिला नहीं, परमात्मा क्या मिलेगा || आचार्य प्रशांत (2014)

Acharya Prashant

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अपने करे संसार तो मिला नहीं, परमात्मा क्या मिलेगा || आचार्य प्रशांत (2014)

वक्ता : आदमी का मन ऐसा है कि वो हमेशा कार्य-कारण में जीना चाहता है| अपने से बाहर की किसी सत्ता को किसी हाल में स्वीकार करना नहीं है| वो यह कहता है कि संसार में जो हो रहा है उसके कारण हैं ही, मुझे जो मिला या नहीं मिला, मैं जो हुआ या नहीं हुआ उसके तो कारण हैं ही – परमात्मा भी मिलेगा या नहीं मिलेगा उसका कारण मैं ही रहूँ| तो कहता है कि मोक्ष भी यदि मिले मुझे तो मेरे श्रम से| कारण स्पष्ट रहे, मजेदार बात है|

मुक्ति मिली तो कैसे मिली? “मेहनत कर-कर के, मेरे किए|” ऐसी मुक्ति में और ज्यादा गाढ़ा क्या हो गया? मेरा होना| तो इसी कारण गुरुओं को कहना पड़ा है कि बेटा मुक्ति भी तुम्हें तुम्हारे करे नहीं मिलेगी, मुक्ति भी उस को मिलती है जिसको वह चुनता है मुक्त करने के लिए यह इसीलिए स्पष्टतया कहा जा रहा है ताकि किसी को यह अहंकार न हो जाए कि मेरी साधना से, मेरे ज्ञान से, मेरी भक्ति से मुझे मुक्ति मिल गई| क्योंकि यह तो परम अहंकार हो जाएगा, “मैं कर्ता था| लोग तो कर-कर के छोटी-मोटी चीजों को पाते हैं – किसी ने गाड़ी पा ली, किसी ने पैसे पा लिए, मैंने तो कर कर के जो सबसे बड़ी चीज पाई जा सकती है वो पा लिया – मैंने परम ही पा लिया|” यह गहरा से गहरा अहंकार हो जाएगा| इसी कारण यह स्पष्ट करना पड़ता है कि तुम्हारे करे नहीं मिलेगा, उसको मिलेगा जिसको वह खुद चुनेगा|

अब तुम बैठे-बैठे तुक्के लगाते रहो कि वह किस को चुनेगा| यह तुम्हारे निर्णय के क्षेत्र से ही बाहर है कि वह किस को चुनता है और किसको नहीं चुनता है| तुम प्रार्थना भर कर सकते हो कि प्रभु! मुझे ही चुन लेना, पर चुनेगा कि नहीं चुनेगा इस पर तुम्हारा कोई इख़्तियार नहीं है, तुम्हारा कोई बस नहीं| साधक की, ज्ञानी की बड़ी गहरी अहंता होती है, बड़ी गहरी कि हमने ये किया, हमने वो किया और इसी कारण उसको मजबूर हो कर किसी ना किसी समय यह बोलना पड़ता है कि हमें तो मिल गया, हमें तो मिल गया, “मेरा हो गया जी एनलाइटनमेंट|”

ये उसकी मजबूरी है| क्योंकि अगर उसको अभी तक मिला नहीं तो पूरी जिंदगी क्या झक मारी है? तो मजबूर होकर उसको यह घोषणा करनी ही पड़ती है कि मैं तो हो गया मुक्त, चीज़ें इतनी विकृत हो जाती हैं| संतो ने पहले ही चेतावनी दे दी है कि तुम्हारे करे तो वैसे भी कुछ होना नहीं है, क्यों हाथ-पांव चलाते हो| तुम तो सिर्फ श्रद्धा में समर्पित हो जाओ, ज्यादा करने-वरने की सोचो मत, तुम्हारे करें कुछ नहीं होता| तुम्हारे करे तुम्हें यह संसार ही नहीं मिला, तुम्हें परमात्मा क्या मिलेगा|

तुम कोशिश करते रहे हाथ-पांव चलाते रहें, तुम्हें उतना पैसा तक तो मिला नहीं जितना तुम चाहते थे, तुम्हें परमातमा मिल जाएगा? पूरी कोशिश करके तुम जाते हो टिंडा खरीदने और ले आते हो आलू, टिंडे तुम्हें मिलते नहीं अपनी कोशिशों से, परमात्मा मिल जाएगा? लेकिन हमारी पूरी कोशिश यही है कि परमात्मा भी मिले तो हम यह दावा कर सकें कि हमने पाया| और संत तुमसे कह रहे हैं कि जो उखाड़ना है उखाड़ लो तुम्हारे करे कुछ नहीं होगा, तुम्हारे करे कुछ नहीं होगा|

हाँ! करना अगर कुछ छोड़ सको, यदि चुप हो करके बैठ सको, समस्त कर्मों को समर्पित कर सको, यह जो करने-करने की चाह है इस को नमित कर सको तो फिर कुछ संभावना है, विचार किया जाएगा, एप्लीकेशन छोड़ जाओ| फिर कुछ हो सकता है| समझ रहे हो बात को?

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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