अपने बच्चों को क्यों बिगाड़ रहे हो? || नीम लड्डू

Acharya Prashant

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अपने बच्चों को क्यों बिगाड़ रहे हो? || नीम लड्डू

तुम छः-छः, आठ-आठ साल की लड़की को ‘मुन्नी बदनाम हुई’ और, ‘मैं तो तेरा बटर-चिकन हूँ’ और इस तरह के गानों पर नचा रही हो, यह कला है? आग लगे ऐसी कला को! देखो न वह किस तरीके की भाव भंगिमा दिखा रही है, देखो वह आँखों से कैसे इशारे कर रही है। और वह छः-सात साल की है बस, वह लड़की और सारी जनता तालियाँ बजा रही है, जनता में उस लड़की के भाई-बहन, माँ-बाप, रिश्तेदार भी बैठे हुए हैं। यह लटके-झटके और यह सस्ती कामवासना को आग देने वाले कामों को नृत्य नहीं बोला जाता। जो फ़िल्म बच्चों को दिखाने के लिए ठीक नहीं है उसी फ़िल्म के घटिया गानों पर बच्चों को नाचना ठीक हो गया? और वैसे ही घटिया लोग जज बनकर बैठे होते हैं। वह तारीफ़ें कर रहे होते हैं, कहते हैं, "वाह, वाह, वाह, वाह! क्या कला है, क्या कला है!" और यह सब क्यों किया जा रहा है? पैसों और सूरत के लालच में।

कितना धिक्कारा जाए ऐसे बच्चों के माँ-बाप को? बच्चे से क्यों उसकी मासूमियत छीन रहे हो भाई! क्यों अपने बच्चों की ज़िंदगी खराब करना चाहते हो?

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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