अपने अंधकार से दूसरों को कैसे रौशन कर पाओगे || आचार्य प्रशांत, संत कबीर पर (2014)

Acharya Prashant

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अपने अंधकार से दूसरों को कैसे रौशन कर पाओगे || आचार्य प्रशांत, संत कबीर पर (2014)

पंडित और मशालची , दोनों सूझत नांहि

औरन को करै चांदना , आप अँधेरे मांहि

संत कबीर

वक्ता : चिराग की रोशनी तो फिर भी उसकी अपनी है, यहाँ तो मशाल पकड़ी हुई है, जो तुम्हारा हिस्सा भी नहीं। तुम मशाल नहीं हो, तुमने तो मशाल उठा ली है बस, और दावा तुम्हारा ये है कि तुम दुनिया रोशन कर रहे हो। उस मशाल का नाम कुछ भी हो सकता है, कबीर, अष्टावक्र, कृष्ण, और दावा क्या है? दुनिया रोशन हो रही है। और मशाल के नीचे क्या है?

आँखें हमेशा बाहर को देखती हैं। मशालची देखेगा अगर, तो उसे रोशनी ही रोशनी दिखाई देती है क्योंकि किधर को देख रहा है? और उसकी सारी कोशिश यही है कि और दूर तक रोशनी फैले क्योंकि किधर को देख रहा है? नीयत में कोई खोट नहीं है मशालची की, जो दूसरों को इतना देना चाह रहा हो, वो ये चाहेगा तो नहीं कि मैं खुद अँधेरे में रहूँ। लेकिन आदत कुछ ऐसी है मन की और इन्द्रियों की, कि वो अंतर्मुखी हो ही नहीं पाते। आदत लगी हुई है आँखों को बाहर को देखने की। करोड़ों साल पुरानी आदत है। आदत लगी हुई है मन की, ज्ञान में जीने की, सूचना में जीने की और समस्त सूचना, बाहरी है। खूब जानना है, समझना है कि वहाँ क्या चल रहा है, किसको कितना मिल गया।

जिसका हो दीप वो सुख नहीं पाए , जोत दिये की दूजे घर को जलाये

प्रकाश आपके भीतर ही है, पर वो प्रकाश आपको नहीं उपलब्ध है। आपकी आँखों से पूरा जग प्रकाशित हो रहा है पर अपना ही मन नहीं प्रकाशित हो रहा। आपको क्या लगता है कि ये रोशनी सूरज की रोशनी है ? नहीं सूरज की रोशनी नहीं है, वो आपकी रोशनी है। मज़े की बात ये है कि आप इतने रोशन हैं कि आपकी रोशनी से सूरज चमक रहा है, और जो इतना रोशन है, उसके भीतर अँधेरा है। आपकी रोशनी से पूरी दुनिया प्रकाशित हो रही है, बस आप ही प्रकाशित नहीं हो रहे। ये पूरा संसार क्या है, ये आपका ही विस्तार है। इसे आपने ही जगमगा रखा है। बस अपनेआप को ही नहीं जगमगा रखा।

आदमी का कष्ट यही है ना कि चेतना की दिशा लगातार बहिर्गामी है। चेतना मेरी है, ये पूरा संसार मेरा, सब दिखाई पड़ता है इन आँखों से, सब सुनाई पड़ता है इन कानों को, मौन नहीं सुनाई पड़ता। सब देख लेता हूँ, पढ़ लेता हूँ, अपनेआप को नहीं पढ़ता कभी। सब कुछ चाहिए, दुनिया भर की सारी सामग्री चाहिए, खुद को नहीं पाया बस।

सीकर, फाइंड दायसेल्फ़

गहरा ये भेद कोई मुझको बताये, किसने ये किया है मुझ पर अन्याय। किसने किया है ? कौन है जो सोच रहा है कि, किसने किया है ?

ये सोच रहे हैं कि सोच-सोच कर बता देंगे कि किसने किया है। सोचने वाला कौन है ?

जिसने किया है।

शब्द-योग’ सत्र पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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