अपराधी कौन? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)

Acharya Prashant

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अपराधी कौन? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)

वक्ता: भारत में कभी ऐसा नहीं हुआ है आजतक कि, यह सम्भावना है कि अगले दस-बीस साल में ही जो एवरेज टेम्परेचर है वह एक-दो डिग्री ही नहीं, तीन-चार डिग्री भी बढ़ सकता है, और याद रखना हम किसी छोटी जगह की बात नहीं कर रहे हैं, धरती के एवरेज टेम्परेचर की बात कर रहे हैं। कभी ऐसा नहीं हुआ कि बड़े-बड़े शहर, महानगर, ख़त्म होने की कगार पर खड़े हैं, उसमें से कुछ तुम्हारे भारतीय शहर भी हैं; मुंबई, कलकत्ता। दुनिया में कभी ऐसा नहीं हुआ, तुम क्राइम की बात कर रहे थे ना, कि आदमी के पास नाश की इतनी सामग्री हो कि धरती को सैंकड़ों बार नष्ट किया जा सकता हो उस से। दुनिया में कभी ऐसा नहीं हुआ, कि हर हज़ार लड़के जो पैदा होते हैं उनमें से दो सौ लड़कियां मार दी जाती हों। दुनिया में कभी ऐसा नहीं हुआ कि रोज़ाना कई करोड़ जानवर क़त्ल किये जा रहे हैं, क्योंकि आदमी को उन्हें खाना है। दुनिया में कभी ऐसा नहीं हुआ कि सैंकड़ों प्रजातियाँ; पेड़ों की, जानवरों की ख़त्म ही हो गयी हों। दुनिया में कभी ऐसा नहीं हुआ कि बड़ी-बड़ी नदियाँ सूखने के कगार पर खड़ी हैं, कुछ सूख गयीं और कुछ सूखने को तैयार हैं। कानपूर के आगे की गंगा देखी है किसी ने? पानी पीना छोड़ दो, अगर तीन–चार घंटे उसमें हाथ डालकर बैठ जाओ तो हाथ सड़ जाए। बनारस की गंगा देखी है? क्या-क्या तैरता रहता है वहाँ, दुनिया में कभी ऐसा नहीं हुआ था।सोचो ना! हर साल करोड़ों लड़कियां मार ही दी जा रही हैं, मॉस नरसंहार है और उसकी कोई ख़बर नहीं छपती। दो-चार मर जाते हैं कहीं, कोई एक्सीडेंट हो जाता है तो वह बड़ी ख़बर हो जाती है। करोड़ों! बिना बताए, चुपचाप, शांतिपूर्वक हत्या। दुनिया में पहले कभी ऐसा नहीं हुआ।

यह सारे क्राइम्स क्या क्रिमिनल कर रहे हैं जितने मैंने कहे? तुम्हारे बड़े-बड़े वैज्ञानिक, तुम्हारे बड़े-बड़े पूर्व राष्ट्रपति, तुम्हारे तमाम सभ्य और सुसंस्कृत लोग, लड़कियों की हत्या क्या चोर डाकू कर रहे हैं? वह हमारे सभ्य और सुसंस्कृत मुहल्लों में हो रही हैं, रेस्पेक्टेब्ल घरों में हो रही हैं। यह फैसाइल मटेरियल क्या आतंकवादियों ने इकठ्ठा कर रखा है? तुम्हारे बहुत प्रबुद्ध शोधकर्ताओं ने इकठ्ठा की हैं यह चीज़ें; फिशन बम, फ्यूज़न बोम्ब्स, और मिसाइलें बनायीं हैं जो बीस-हज़ार किलोमीटर दूर तक जाके मार करेंगी। और ऐसे लोगों को तुम पूजते हो, राष्ट्रपति बना देते हो। यह क्रिमिनल्स नहीं हैं जो काम करते हैं? तुम क्राइम की क्यों बात करते हो? ग्लोबल वार्मिंग किसी क्रिमिनल का काम है? किसका काम है? हमारा और तुम्हारा। यह जो लाखों स्पीशीस नष्ट हो गयीं, वह क्रिमिनल्स ने आकर मारी हैं? वह हमनें तुमनें मारी हैं। जो करोड़ों जानवर रोज़ कट रहे हैं, कोई विशेष अपराधिक प्रवृति के लोग उन्हें मार रहे हैं? नहीं नहीं, वह सारा काम हमारे सामान्य घरों में हो रहा है। क्यों पूछते हो कि क्रिमिनल्स बढ़ रहे हैं।मैं कह रहा हूँ तुम्हारा आम-आदमी ही सबसे बड़ा क्रिमिनल है। ग्लोबल वार्मिंग वह कर रहा है, युद्ध की तय्यारी उसके मन में चल रही है, मार-काट वह करता है, ब्रूंण हत्या वह करता है, उस से बड़ा क्रिमिनल कौन है? तुम किस क्रिमिनल की बात कर रहे हो, जो जेल में बंद है वह तो छोटा-मोटा अपराधी है, जो घरों में घूम रहा है, जो एक-एक घर में पाया जाता है वह बहुत बड़ा क्रिमिनल है। यह जिसके पास डिग्रियां हैं, जिसके नाम के आगे ‘श्री’ लगता है, जो चाहता है उस से इज्ज़त से बात की जाए, जिसको अड़ोसी-पड़ोसी वर्मा जी, गुप्ता जी और तिवारी जी कहके बुलाते हैं, सबसे बड़ा क्रिमिनल तो यह है, और यह इतना चालाक है कि इसका क्राइम पता भी नहीं चलता, इसका अपराध तो पता भी नहीं चलता। यह अपनी बीवी के लिए फर के कोट लेकर आता है, खरगोश के फर के, पता भी नहीं चलता कितने खरगोश मार दिए गए, क्योंकि इसको अपनी बीवी को खुश करना था। इसका अपराध तो किसी रजिस्टर में लिखा भी नहीं जा रहा। जानते हो हिंदुस्तान में अधिकांश घरों में जो सबसे छोटा बच्चा होता है वह लड़का होता है, और यह सब काम हमारे तुम्हारे वर्मा जी, गुप्ता जी, शुक्ला जी, जैन साहब और तिवारी जी ही कर रहे हैं, और कहीं इनके अपराध नोट नहीं किये जा रहे। यही वह हैं जिनकी वासना इतनी गहरी है कि जहाँ ट्रेन से पंहुचा जा सकता है, इनके पास घूस का पैसा इकठ्ठा हो जाता है तो कहते हैं फ्लाइट से जाऊंगा। इन्हें दिल्ली से कानपूर जाना है तो फ्लाइट चाहिए, क्यों, क्योंकि खूब काला पैसा इकठ्ठा कर लिया है तो कहीं कुछ तो करना है उसका, तो लखनऊ भी जाना है तो फ्लाइट से जा रहे हैं। लखनऊ, जो बगल में है। और वह जो फ्लाइट है वो ओज़ोन लेयर को ख़राब कर दे, वह सारे कुकर्म कर रही है तुम्हारी धरती के साथ, पर तुम कहोगे कि यह सम्मानीय लोग हैं, तुम क्रिमिनल्स की बात क्यों कर रहे हो? तुम तो टंडन साहब और त्रिपाठी साहब की बात करो। असली कमीने तो यह हैं। वह बेचारा, जिसको अपराधी कहते हो, वह तो भोला इंसान था, फंस गया, जेल में है। ये जो हमारे घरों में, गली-मुहल्लों में जो अपराधी घूम तरहे हैं, वे बड़े चालाक हैं, ये ऐसे अपराध करते हैं जो किसी को पता भी नहीं चलते। बहुत बड़ी तादात है, शायद पचास प्रतिशत से ज्यादा, ऐसे घरों की जहाँ पर छोटी लड़कियों का यौन शोषण हुआ है और यह बड़े रेस्पेक्टेबल घर हैं जहाँ यह होता है, वहाँ पूजा-पाठ होता है, वहाँ घर में एक मंदिर होता है, आरती होती है, बहुत बड़ी तादात है ऐसे घरों की, इसकी कोई ओफ़्फ़िशिअल स्टैट्स उपलब्ध नहीं है, पर जो ‘एनजीओ’ इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं, वो कहते हैं कि आधे से ज्यादा घरों में यह काम चल रहा है, और यह कौन से घर हैं, यह सम्मानीय घर हैं, यह इज्ज़तदार लोग कहलाते हैं, सरकारी दफ्तर में काम करते हैं, प्राइवेट कंपनी में काम करते हैं, गाड़ियों पर चलते हैं, यह सर उठाकर ठसक के साथ कहते हैं, हम समाज के ज़िम्मेदार लोग हैं। यह हैं क्रिमिनल्स! हमारे घरों में क्रिमिनल घुसे हुए हैं, तुम्हे दिखाई नहीं देते? एक और स्टैट्स देता हूँ, किसी दिन चले जाना, कपड़े की किसी दुकान पर खड़े हो जाना, वहाँ सिर्फ यह देखना कि कपड़ों की खरीदारी का पेमेंट कैसे किया जा रहा है। बहुत बड़ी तादात, हो सकता है आधे, या उस से भी ज्यादा, तुम ऐसे लोगों की पाओगे जो कैश में पेमेंट कर रहे हैं, कैश में पेमेंट करने वाले 80-90% वह लोग हैं जो, वही इज्ज़तदार लोग। यह है क्रिमिनल!

बीवी वहाँ चेंज रूम में दिखा रही है, *यह अच्छा लग रहा है जानू?*बोल रहा था ना कल आया हूँ मोटरसाइकिल से, वह जो रोड है, वहाँ रोड है ही नहीं। वहाँ बीच में खड़े होकर विचार करना पड़ता है, रोड कहाँ है? खेत कहाँ शुरू होता है और कहाँ ख़त्म होता है, और रोड कहाँ है? निर्णय यह नहीं है कि इधर से जाऊं, या उधर से, निर्णय यह करना पड़ता है कि इस गड्ढे में गिरुं या उस गड्ढे में, गिरना गड्ढे में ही है। बताओ वो रोड कहाँ गयी? उस रोड से जानू के लिए कपड़ों की शौपिंग हुई है, उस रोड से लड़की का ‘एम.बी.बी.एस’ कराया गया है, उस रोड से दिवाली के गहने आये हैं, हम में से कईयों की कॉलेज की फीस उस रोड से आई होगी। तुम किन क्रिमिनल्स की बात कर रहे हो? उस रोड पर लोग मर रहे हैं, और ज़्यादातर बाइक वाले होते हैं। किसने हत्या करी उस बाइक वाले की? उस ही इज्ज़तदार आदमी ने जिसने बीवी और बच्चों के लिए मौल में शौपिंग करनी थी तो वह रोड खा गया। पर कोई जाकर उस पर लगवाएगा दफ़ा 302, कि हत्यारा है ये, ये रोड खा गया इस कारण मौत हो गयी, कोई जाएगा? कौन है क्रिमिनल? जेलों में जो दिखाई देते हैं वो तो बेचारे संत हैं, महात्मा, भोले-भाले थे तो पकड़ लिए गए। पकड़ना है तो अग्रवाल साहब को पकड़ो। तुम्हारा ये जो पूरा समाज ही है ना, यही सड़ा हुआ है, पूरा ही सड़ा हुआ है। तुम इसमें किसको क्रिमिनल बोलना चाहते हो, यह समाज ही क्रिमिनल्स का है। यहाँ वह छोटा क्रिमिनल है जो क्रिमिनल दिखता है, जो दिखता नहीं है वह ज्यादा बड़ा है। क्रिमिनल की परिभाषा समझो,

जो ही इंसान खुद को नहीं जानेगा, वही क्रिमिनल है। एक बड़ा मस्त विचारक हुआ है, गुर्जिएफ़्फ़ नाम से, उसने परिभाषित किया था, उसने कहा था, “*जो कुछ भी ज़रूरी नहीं है, बिलकुल ज़रूरी नहीं है, पर फिर भी कर रहे हो, वही पाप है*”, यही है पाप की परिभाषा, यही है अपराध की परिभाषा। वह न भी होता तो तुम्हारा काम चल जाता, तुम्हारी हवस ऐसी है कि तुम उसके पीछे दौड़ रहे हो, यही है पाप की परिभाषा। घर में दो ए.सी लगे हैं, अब तीसरा और चौथा भी चाहिए, यही है पाप की परिभाषा। खर्चा तुम्हारा आज चल जाता है पांच हज़ार में, पर तुम्हे हवस है पचास हज़ार कमाऊँ, यही है पाप की परिभाषा, और इसी हवस से यह धरती तुम्हारे देखते-देखते नष्ट होगी, क्योंकि कमाने का तो तरीका यही है, प्रोडक्शन, और जितना तुम प्रोडूस करोगे, धरती उतनी ही गरम होनी है। जिसे हम अपनी आम इच्छाएं कहते हैं ना, वही क्राइम हैं। तुम्हारी इच्छा है, अच्छा करियर, अच्छे पैसे, अच्छी बीवी/पति, घर, बच्चे, यही सब तो क्राइम है। तुम्हे क्या लगता है, नदियाँ क्यों सूख रही हैं? मुंबई क्यों डूबेगी? तुम्हें क्या लगता है, कई द्वीप डूब ही क्यों चुके हैं? क्योंकि हर किसी को एक घर चाहिए, और घर ऐसे ही नहीं आ जाता, और हर किसी को बच्चे पैदा करने हैं और बच्चा जो आता है वो अपने साथ भूख लेकर आता है। बच्चा जो तुमने पैदा किया तो क्या उसके साथ हवा भी पैदा कर रहे हो? वो हवा कहाँ से पाएगा, तुम बच्चा तो पैदा कर देते हो, पर हवा, और पानी? और वो ज़मीन जिसपर भोजन उगे? हर बच्चा जो पैदा होता है उसकी वजह से कई-कई पेड़ कटते हैं, हर बच्चा जो पैदा होता है उसकी वजह से घर बनेंगे और अगर घर बनना है तो सीमेंट का उत्पादन करना पड़ेगा, और सीमेंट का उत्पादन होना है तो कोएला जलेगा ही जलेगा, और ज़मीन खुदेगी ही खुदेगी। यह जो हमारी आम नैतिकता है ना जिसको हम ‘गुड लाइफ’ बोलते हैं; अच्छे कपड़े पहनो, इज्ज़त कमाओ, नौकरी करो, बीवी लेकर आओ, बच्चे हों, गाड़ी हो, यही क्राइम है, और कुछ नहीं क्राइम है।

किसी के घर में चोरी करना कोई क्राइम नहीं है, वह बहुत छोटा क्राइम है, यह ज्यादा बड़े क्राइम हैं, और यह ऐसे क्राइम हैं जिनकी कोई माफ़ी नहीं है क्योंकि यह सब वह है जो ज़रूरी नहीं है। तुम्हारे मन में सुखी संसार का एक बहुत ज़रूरी कॉम्पोनेन्ट है, बच्चे, तुम समझ ही नहीं पा रहे हो कि इतनी प्रजातियाँ पक्षियों की जो नहीं बचीं, इतनी मछलियाँ जो ख़त्म हो रही हैं, वह इसलिए हो रही हैं क्योंकि इतने बच्चे पैदा हो रहे हैं, क्योंकि हम सब को बच्चे चाहिए, क्योंकि मम्मियों का और दादियों का पूरा आग्रह है ‘दूदो नहाओ, पूतो फलो’, और तुम्हें बड़ा अच्चा लगता है, तुम बताते हो ‘गुड न्यूज़, आई ऍम प्रेग्नेंट’, अरे इससे बड़ी मातम की ख़बर हो सकती है कोई? इससे बड़ा अपराध हो सकता है क्या कोई? लाइसेंस होना चाहिए। पैदा कैसे कर दिया? हक़ क्या है तुमको? जो बच्चा पैदा हुआ है उसके साथ कुछ रोड भी तुम पैदा कर देते, अब वो जिस रोड पर चलेगा वह रोड कहाँ से आएगी? हर रोड जो चार लेन की है उसे छः लेन का बनाना पड़ रहा है, छः लेन से आठ लेन, सोलह लेन का बनाना पड़ रहा है, क्यों? और रोड ऐसे ही तो नहीं चौड़ी होती जाती, हर रोड जो चौड़ी हो रही है वह कर क्या रही है धरती का? पर तुम्हें बच्चे पैदा करने ही करने हैं, और तुम बोलते हो, ‘वाह, गुड न्यूज़’, और तुम्हारी दीदियाँ और भाभियाँ फेसबुक पर अपने बच्चे के साथ फोटो डालती हैं, ‘माई क्यूटी’ और तुम उसे लाइक और कर देते हो।पढ़े-लिखे हो ना, फिजिक्स समझते हो, एन्ट्रापी समझते हो, लॉ ऑफ़ थर्मोडाइनामिक्स भी समझते हो, यह भी तुम अच्छे से जानते हो कि तुम अगर थोड़ी सी कूलिंग करोगे तो उस से ढाई गुना हीटिंग होगी, क्योंकि कोई भी कूलिंग मशीन आम-तौर पर 40% से ज्यादा एफ़ीशिएनट नहीं होती है, तो अगर वह एक जूल हीट सोखेगी तो ढाई जूल हीट निकालेगी, फ्रिज की तरह। अब जाना, और फ्रिज और ए.सी की दुकान पर देखना जितने लोग खड़े हैं, और लांच करो एफ.आई.आर। पड़े-लिखे हो ना, थर्मोडाइनामिक्स क्यों पढ़ी, अगर इतनी सी बात समझ में नहीं आती है तो क्यों पढ़ी?

गाड़ी होती है, गाड़ी में ए.सी होता है, जिस गाड़ी में ए.सी चल रहा हो उसका बोनड छूना। बात समझ में आ रही है? बात बहुत सीधी है अगर तुम समझना चाहो तो। हमारे लिए ख़ुशी का मतलब ही है चीज़ें। हमारे लिए ‘गुड लाइफ’ का मतलब ही है ‘ऑब्जेक्ट्स, थिंग्स, चीज़ें’, और हर एक चीज़ जिसका उत्पादन होगा वो पूरे अस्तित्व के लिए नाश है।

तो जो भी कोई तुम्हारे दिमाग में भर रहा है कि वो सुखी हैं जिनके घर में बहुत सारी चीज़ें हैं, वही क्रिमिनल है, और यह बात हर बच्चे के दिमाग में भरी जा रही है, कि जीवन का उद्देश्य क्या है, फर्नीचर/चीज़ें इकठ्ठा करना, अब फर्नीचर इकठ्ठा हो रहा है तो जंगल कटेगा। पर तुम कितना खुश होते हो, देखा है लोगों को, फर्नीचर ख़रीद कर खुश हैं कितने? पर दिखाई नहीं पड़ रहा ना कि फर्नीचर कैसे आया। नहीं जी, हमारे घर में तो लकड़ी का फर्नीचर नहीं है, लोहे का है। लोहा कहाँ से आया? और जानते नहीं हो क्या कि लोहा कैसे बनता है स्टील और उस प्रोसेस में कितनी हीट निकलती है? क्या तुम्हें पता नहीं है कि ज़्यादातर स्टील प्लांट्स नदी किनारे होते हैं? क्योंकि इतनी हीट है और इतना पानी चाहिए कि तुम्हे नदी को भी तबाह करना पड़ेगा। पर तुम्हे चाहिए।

तो किस क्रिमिनल की बात कर रहे हैं हम? एक-एक दवाई जो तुम खा रहे हो, अगर कोई दवाई मार्किट में आनी है जो यह टेस्ट करना चाहती है कि 95% जल जाने के बाद यह दवाई काम करेगी के नहीं, तो मार्किट में कैसे आएगी? पहले हज़ारों जानवरों को 95% जलाया जाएगा, फिर उनको दवाई लगाई जाएगी, और एक नहीं कई हजारों, पर तुम इसे तरक्की का दिओतक मानते हो कि मेडिकल साइंस ऐसी हो गयी है कि कई दवाइयां हैं। एक-एक दवाई जो आ रही है ना वो पाप का बोझ लिय है सर पर, तुम बचकर जाओगे कहाँ? अगर कोई दवाई मार्किट में आनी है यह देखने के लिए कि किसी की आँख फूटी हो तो यह दवाई काम करेगी या नहीं, तो उसके लिए क्या करा जाएगा जानते हो? हजारों खरगोशों की पहले आँख फोड़ी जाएगी, और लगातार, क्योंकि मेडिकल ट्रायल्स बहुत लम्बे चलते हैं, ऐसा नहीं कि एक बार में हो जाएगा, चलता रहेगा।

तो कौन क्रिमिनल है? मज़े से मांस खाते हो, जानते हो, जो इंटरनेशनल पैनल है, क्लाइमेट चेंज पर उसने अपील जारी करी है कि अगर हफ्ते में दो दिन लोग मांस खाना बंद कर दें तो ग्लोबल वार्मिंग बहुत कम हो जाएगी। एक-एक मुर्गा, और यह मुर्गा सामान्य मुर्गा नहीं है, यह इंसान पैदा कर रहा है, यह इंसान का बच्चा है, यह ज़बरदस्ती पैदा कराया जा रहा है मुर्गी से, कोई मुर्गी पागल नहीं हुई है कि वह करोड़ अंडे देगी कि तुम खाओ, उस से ज़बरदस्ती कराया जाता है, पता है ना? उसको सोने नहीं दिया जाता, उसे इंजेक्शन मारे जाते हैं, क्योंकि सो गयी तो खाएगी नहीं, तो सोने मत दो, ज़बरदस्त रौशनी रखी जाती है, ताकि उसे लगे कि दिन है, दिन में नहीं सोते, जल्दी से चौड़े हो जाएँगे और अंडे देते रहें। अब ये जो मुर्गा है, एक किलो उसके मांस के लिए, कई-कई किलो उसको ग्रेन खिलाना पड़ता है, वह ग्रेन भी आदमी खा सकता था। यह ज़बरदस्त रूप से एक वेस्टफुल काम है कि एक किलो मांस के लिए आपने दस किलो ग्रेन खिला दिया, धरती ख़त्म हो रही है, इन्ही हरकतों की वजह से ख़त्म हो रही है। पौल्ट्री उद्योग पूरा बहुत पड़ा कारण है क्लाइमेट चेंज का, पर तुम दबा करके चिकन और मटन पेले हुए हो।

तो क्रिमिनल कौन है भई? किस क्रिमिनल की बात करना चाहते हैं हम?

हमारी मानसिकता ही क्रिमिनल है, हमारा जो पूरा वैल्यू सिस्टम है वही क्रिमिनल है, सड़ा हुआ है वह। हमें जो पूरी घुट्टी पिलाई गयी है बचपन से, वह क्राइम की घुट्टी है। देख सकते हो तो आँख खोलकर देखो, अब तो बच्चे थोड़े समझदार भी होने लग गए। कम फोड़ते हैं पटाखे, आज से दस साल पहले यह हालत थी कि दिवाली की रात को लाखों चिड़ियाँ मर जाती थीं। और जो मरती नहीं थीं वह पागल हो जाती थीं।

कौन है क्रिमिनल?

पर घुट्टी ही ऐसी पिलाई गयी है हमें, पर हम उसे पिए जा रहे हैं, पिए जा रहे हैं, और अगर घुट्टी ही पीनी थी तो क्यों पढ़े-लिखे? क्या ज़रुरत है डिग्री इकठ्ठा करने की और ये और वो और ज्ञान, इतना टाइम ख़राब करने की?

एक व्हेल होती है, ब्लू व्हेल, ख़त्म हो रही है। पर जापानियों को उसका मांस बहुत पसंद है। वहाँ की सरकार ने यूनाइटेड नेशंस के सामने दरखास्त दी कि हमें साइंटिफिक रिसर्च के लिए ये व्हेल चाहिए। यह काम कोई आदमी नहीं कर रहा है, सरकार, लोगों द्वारा चुनी गयी सरकार यह काम कर रही है और सरकार क्या करती है, ख़त्म होती, विलुप्त होती व्हेलों को पकड़वाती है, उनका दस ग्राम अपने पास रखती है कि यह तो हमें रिसर्च के लिए चाहिए था और बाकी मार्किट में दे देती है कि अब बेचो और खाओ। अब इस बात पर दूसरे दशों ने आक्षेप किया है तो वहाँ की सरकार लड़ने को खड़ी है कि यह हमारी परंपरा का हिस्सा है, ये हमारी ज़बरदस्त परंपरा है कि हम व्हेल मारेंगे ही मारेंगे, यह हमारी ज़बरदस्त परंपरा है कि अपने त्योहारों पर हम मुर्गा और बकरा काटेंगे ही काटेंगे। तो जब यही ज़हर तुमने बचपन से पिया है, परंपरा के नाम पर और धर्म के नाम पर, तो क्राइम नहीं करोगे तो क्या करोगे? करे जा रहे हो क्राइम।

होश में ना रहना ही क्राइम है! बिना समझे करे जाना ही क्राइम है! जिसकी ज़रुरत नहीं, उसमें उद्यत रहना ही क्राइम है!

– ‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

YouTube Link: https://youtu.be/YC7EddKlNiw

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