अपनी रुचियों से सावधान! || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

Acharya Prashant

5 min
43 reads
अपनी रुचियों से सावधान! || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

आचार्य प्रशांत: अहंकार कहता है – रुचि को प्रधानता दो।

अध्यात्म कहता है – धर्म प्रधान है।

अध्यात्म का अर्थ ही है – रुचि की परवाह ही न करना, और उस तरफ़ चलना जिस तरफ़ धर्म है, जिधर सत्य है।

रुचि की तरफ़ चलना माने वृत्तियों के चलाए चलना।

‘रुचि’ बड़ा हल्का शब्द है। और ये बड़े खेद की बात है कि हमने आज के समय में ‘रुचि’ को, या ‘इंटरेस्ट’ को बड़ा आदरणीय शब्द बना लिया है। हम रुचि की बात ऐसे करते हैं जैसे रुचि कोई ऊँची चीज़ हो, सत्य की समकक्षी हो।

जीवन जीने का उसूल ये है कि रुचि चाहे हो चाहे न हो, वो करेंगे जो ज़रूरी, उचित है, आवश्यक है, सत्य है, आध्यात्मिक है।

लेकिन हवा कुछ ऐसी चल रही है कि लोग कहते हैं, “आई एम नॉट इंटरेस्टेड (मेरी इसमें रुचि नहीं है)।” सो व्हॉट (तो क्या)? हाऊ इस यॉर इंटरेस्ट सो सेक्रेड (तुम्हारी रुचि में ऐसा क्या पवित्र है, पूजनीय है)?

लेकिन बात यही है कि ‘सेक्रेडनेस’, पवित्रता या पावनता का कोई मूल्य ही नहीं रहा है। वो सिद्धांत के तौर पर भी बच नहीं रही है। तो जब कुछ नहीं है जो अहम् से आगे का है, कुछ नहीं है जो आपकी रुचि से कहीं ज़्यादा आवश्यक है, तब रुचि ही रानी बन बैठती है।

छोटे-छोटे बच्चों को सिखाया जा रहा है – “फाइंड आउट व्हॉट यू आर इंटरेस्टेड इन (पहचानो तुम्हारी रुचि किसमें है)।”

और रुचि तो तुम भली-भाँति जानते हो कि किसकी होती है, इसीलिए किसकी तरफ़ होगी। आत्मा तो किधर की रुचि रखती नहीं – न दाएँ की न बाएँ की। रुचियाँ तो सारी अहंकार की होती हैं। और अहंकार की ही होती हैं अगर सारी रुचियाँ, तो रुचियाँ तो उधर को ही जाएँगी जिधर अहंकार होगा, और जिधर तुम्हारा विनाश होगा।

अहम् की रुचि किधर को होगी? जिधर चकाचौंध होगी, जिधर उत्तेजना होगी, जिधर लोभ होगा, जिधर प्रशंसा-प्रतिष्ठा होगी। तो रुचि तो बड़ी सस्ती, हल्की, कभी-कभी बड़ी घिनौनी बात है। इतना ही नहीं, रुचि का बड़ी आसानी से पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।

लड़का जवान हो रहा है, लड़कियों में रुचि आ गई होगी उसकी। इतनी उथली चीज़ है ‘रुचि’, इंटरेस्ट। इंटरेस्ट की बात कभी मत कर देना। जिधर को भी तुम्हारा इंटरेस्ट जा रहा हो, उधर तीखे सवाल करो –

“क्यों है मेरी रुचि इधर?”

“क्या है मेरे भीतर जो खींच रहा है उधर को?”

अभी भी देखो न तुम अपने आपको इस स्थिति में। जिस क्षेत्र की तुम बात कर रही हो, उस क्षेत्र में तुम्हारी अरुचि ही इसीलिए है क्योंकि उसमें तुम्हें सफलता नहीं मिली। तुम ये नहीं देख रहीं कि आवश्यक क्या है। बल्कि ये कह लो कि तुम्हें पता है कि आवश्यक क्या है, फिर भी रुचि आवश्यकता पर, धर्म पर, सत्य पर भारी पड़ रही है।

ये मत होने देना।

अगर रुचि धर्म पर भारी पड़ रही है, तो इसका मतलब अहंकार आत्मा पर भारी पड़ रहा है।

हमने इंटरेस्ट शब्द को बहुत ज़्यादा अहमियत दे दी है। ये बाज़ार का काम है, ये उपभोक्तावाद का काम है। बाज़ार चलता ही है तुम्हारी रुचि पर। बाज़ार तुमसे पूछता है, “टेल मी, व्हॉट डु यु फाइंड इंटरेस्टिंग (बताओ, तुम्हारी किसमें रुचि है)।”

और फ़िर तुम्हें वही बेच दिया जाता है जो तुम्हें इंटरेस्टिंग (रुचिकर) लगता है। तो बाज़ार तुम्हारी रुचि की कद्र करेगा ही, वो तुम्हारी रुचि को पूजेगा, क्योंकि बाज़ार है ही तुम्हें लूटने के लिए, तुमसे मुनाफ़ा बनाने के लिए।

तो बाज़ार ने अभी प्रचलित, समसामयिक लोक-संस्कृति में, इन शब्दों को बड़ा उभार, बड़ी मान्यता, बड़ा सम्मान दे दिया है – इंटरेस्ट , पैशन इत्यादि। जबकि फ़िज़ूल शब्द हैं ये।

लोग आते हैं, कहते हैं, “आई एम नॉट इंटरेस्टेड इन स्पिरिचुअलिटी (मेरी आध्यात्मिकता में रुचि नहीं है)।” वो उतने ही बड़े मूर्ख हैं, जितने कि वो जो कहते हैं, “मैं सत्संग में आया हूँ क्योंकि मैं अध्यात्म में रुचि रखता हूँ (आई एम इंटरेस्टेड इन स्पिरिचुअलिटी )।”

अध्यात्म तुम्हारी रुचि-अरुचि का मोहताज होकर कब से रह गया?

जो सच है वो सच है, उसमें तुम्हारी रुचि हो या अरुचि हो।

पर हम सत्संग में भी तभी आते हैं जब वो इंटरेस्टिंग लगता है। वीडियोस हैं यूट्यूब पर, वहाँ रोज़ पचास टिप्पणियाँ इस तरह की भी आती हैं – “व्हॉट यू आर सेइंग इस इंटरेस्टिंग (आप जो कह रहे हैं वो रुचिकर है)।” ख़ासतौर पर बुद्धिजीवी वर्ग। और इसकी विपरीत ऐसे भी आते हैं, जो कहते हैं, “आई डोंट फाइंड इट इंटरेस्टिंग।” वाहियात बात है। ये वही कह सकता है जिसकी ज़िंदगी में ‘सेक्रेडनेस‘ (पवित्रता) जैसी कोई चीज़ न हो।

और आज का तो युग है ही हर चीज़ पर अपने गंदे हाथ रख देने का युग, किसी-भी बात को सेक्रेड (पवित्र) न मानने का युग। तुम्हारे आसपास जो कुछ है, वो सेक्रेड न हो, ये बात तो समझ में आती है। यहाँ तक ठीक है। पर अगर तुमने ये कह दिया कि – “कुछ सेक्रेड हो ही नहीं सकता, बेयॉन्डनेस डस नॉट एक्सिस्ट ,” कि तुम्हारे मन और तुम्हारी बुद्धि के पार कुछ है ही नहीं, तो तुमने गुनाह कर दिया है।

जीवन या तो चलेगा धर्म पर, या वो चलेगा तुम्हारी रुचि पर। तुम देख लो किसपर चलाना है।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
Comments
Categories