प्रश्नकर्ता: व्हाट थिंग्ज़ आर इंपोर्टेंट टु मेक अवर ब्रांड (हमारे ब्रांड को बनाने के लिए क्या चीज़ें महत्वपूर्ण हैं)?
आचार्य प्रशांत: अवर ब्रांड ?
प्र: जी।
आचार्य प्रशांत: किस अर्थ में ब्रांड ?
प्र: मतलब कि अपना खुद का पर्सनालिटी (व्यक्तित्व) हो, लोग देखें तो कहें कि इसका ब्रांड बहुत अच्छा है।
आचार्य प्रशांत: तुम अभी मुझसे कुछ बोल रहे हो।
प्र: जी।
आचार्य प्रशांत: तो तुम्हारा बोलना काफ़ी नहीं है क्या? मैं अभी तुमसे कुछ कह रहा हूँ, तुम मुझे सुन रहे हो या मेरे ब्रांड को सुन रहे हो?
प्र: नहीं सर , आपका एक ब्रांड है न, कि हाँ, आप उस पोज़ीशन (स्थिति) पर हो, हम इस पोज़ीशन पर हैं।
आचार्य प्रशांत: और मैं अगर यहाँ पर आकर के कहूँ कि वो ब्रांड नहीं है, तो मैंने जितनी बातें कहीं वो फ़ालतू हो जाएँगी?
प्र: नहीं *सर*।
आचार्य प्रशांत: तुम मुझे सुन रहे हो या मेरे ब्रांड को सुन रहे हो?
प्र: नहीं, मतलब आपका एक ब्रांड है, इस वजह से लोग यहाँ पर हैं।
आचार्य प्रशांत: मैं अभी तुमसे बोलता हूँ कि मेरे बारे में तुमने आज तक जो सुना, सब झूठ था। न आइ.आइ.टी. से हूँ, न आइ.आइ.एम. से हूँ, वो बाकी जितनी बातें बोली गयी हैं ― यहाँ काम किया, वहाँ काम किया, सिविल सर्विसेज़ ― सब झूठी हैं, मैं यहीं पास में कन्हैयालाल इंटर कॉलेज का बारहवीं पासआउट हूँ। मैंने जो कुछ कहा, उसकी कीमत कम हो जाएगी? उसका वज़न कम हो जाएगा?
हो जाएगा, बात बिलकुल यही है, तुम्हारे सुनने में अन्तर पड़ जाएगा। पर क्या वाकई उसका वज़न कम हो जाएगा?
प्र: नहीं।
आचार्य प्रशांत: अगर मैंने वो सब नहीं कर रखा, तो उसके न होने से क्या ये अद्वैत लाइफ़ एजुकेशन तुम्हें जो कुछ दे रही है वो झूठा हो जाएगा?
प्र: नहीं।
आचार्य प्रशांत: बेटा, ब्रांड का करना क्या है! अभी तुम मुझसे बात कर रहे हो। तुमने मुझसे सवाल पूछा, फिर मैंने तुमसे अधिक-से-अधिक क्या पूछा? मैंने कहा, ‘अपना नाम बता दो।’ उसके आगे मैंने ये पूछा कि परसेंटेज (प्रतिशत) कितनी है, उस हिसाब से आन्सर (उत्तर) दूँगा? या ये पूछा कि नौकरी अभी तक लगी है कि नहीं लगी है? पूछा क्या?
प्र: नहीं।
आचार्य प्रशांत: या ये पूछा कि माँ-बाप क्या करते हैं? या ये कहा कि दिखाओ पर्सनालिटी कैसी है, खड़े हो ज़रा, नापें इसको, और आवाज़ सुनेंगे ज़रा, रोबिली है कि नहीं है? तब?
तुम जो कह रहे हो न ― नाम क्या है?
प्र: अमित।
आचार्य प्रशांत: अमित, जो हो तुम, उसमें दम होना चाहिए, तुम जैसे दिखते हो उसमें नहीं। अन्तर समझना सब लोग ― तुम जो हो, उसमें दम हो, तुम जैसे दिखते हो वो बात बहुत बाद में आती है। और अगर तुम जो हो, दैट विच यू आर , वो ठीक-ठाक है, तो जो दिखता है वो अपनेआप ठीक हो जाएगा, उसकी तुम बहुत परवाह करो मत। डोंट बी टू बोदर्ड अबाउट हाउ यू अपियर; लुक एट व्हाट यू आर (इस बारे में चिंता मत करो कि तुम कैसे दिखते हो, ये देखो कि तुम क्या हो)।
ब्रांड क्या है? दैट विच यू आर, ऑर दैट विच यू अपियर (वो जो तुम हो, या वो जो तुम दिखते हो)? ब्रांड माने क्या? *दैट विच यू अपियर*। ब्रांड का अर्थ होता है, मार्केटिंग की भाषा में बात करें तो ब्रांड का अर्थ होता है प्रोडक्ट (उत्पाद) की एक छवि जो ग्राहक के मन में बैठा दी गयी है, उसी का नाम है *ब्रांड*।
तुम्हें किससे ज़्यादा मतलब है, वास्तविकता से या छवि से?
प्र: वास्तविकता से।
आचार्य प्रशांत: और अगर वास्तविकता ठीक है, तो देर-सवेर छवि क्या अपनेआप ही ठीक नहीं हो जाएगी? और मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ छवि ठीक रखने की, जब मेरी हकीकत कुछ और है, तो छवि मेरे कितने दिन काम आएगी?
मेरी बात समझ रहे हो?
वी आर मच टू बोदर्ड अबाउट हाउ वी लुक एण्ड हाउ वी साउंड, वी आर नॉट इक्वली कन्सर्न्ड अबाउट व्हाट वी रियली आर (हम इस बारे में बहुत चिंतित रहते हैं कि हम कैसे दिखते हैं और कैसे बोलते हैं, पर हम वास्तव में क्या हैं, इस बारे में हम समान रूप से चिन्तित नहीं हैं)।
(प्रश्नकर्ता को सम्बोधित करते हुए) इस वक्त अगर तुम्हारे बारे में मुझे कोई बात बहुत अच्छी लग रही है, तो वो ये है कि यहाँ पर बैठे सौ-डेढ़ सौ लोग, इनके सामने तुमने खड़े होकर के अपनी बात रखी। बहुत सारे लोग हैं जो सवाल पूछना चाहते हैं, पर हिचक रहे हैं। तुम्हारे बारे में अच्छा ये बिलकुल भी नहीं है कि तुम्हारा ब्रांड बहुत बढ़िया है, तुम्हारे बारे में अच्छा ये है कि तुमने हिम्मत दिखायी है।
और ये हिम्मत वास्तविक है, क्योंकि तुम वास्तविक रूप से खड़े हुए हो इतने लोगों के सामने और तुमने अपना एक सवाल रखा है, और तुम्हें कुछ पता नहीं था कि मैं उस पर क्या जवाब दूँगा। मैं बेहूदा आदमी हूँ, मैं हो सकता है कहता कि ये क्या बेवकूफ़ी कि बात है, हो सकता था।
तो तुम्हारे बारे में अभी अगर कोई चीज़ वास्तव में इम्प्रेसिव (शानदार) है ― इसी इम्प्रेशन की तलाश कर रहे हो न, कि कैसे दूसरों को इम्प्रेस (प्रभावित) करूँ? तो अगर वास्तव में अभी तुम्हारे बारे में कुछ इम्प्रेसिव है, तो वो ये नहीं है कि तुम बड़े सुन्दर दिखते हो या तुमने कोई बड़ी मज़ेदार बात कह दी है या तुम्हारा कोई ब्रांड है। तुम्हारे बारे में अभी इम्प्रेसिव है तो क्या? तुम्हारी हिम्मत। और वो हिम्मत वास्तविक है, कोई छवि नहीं।
अभी तुम खड़े हुए थे, क्या दूसरों पर अपनी छवि डालने के लिए खड़े हुए थे? नहीं हुए थे न? एक ईमानदारी से सवाल पूछ रहे हो, उम्मीद कर रहा हूँ, ईमानदार सवाल है न? तो बस यही असली चीज़ है। और अभी तुममें से कोई ऐसा हो सकता है जो दूसरों को इम्प्रेस करने के लिए खड़ा हो। और एक बार मुझे लग गया कि इम्प्रेस करने के लिए खड़े हुए हो, तो फिर हो गया इम्प्रेशन , फिर प्रेशन -ही- प्रेशन रहेगा बस।
मैं अभी यहाँ तुम्हारे सामने खड़ा हूँ, तुम क्या चाहते हो, मैं तुम्हें इम्प्रेस करने की कोशिश करूँ, या तुम्हें ईमानदारी से कुछ बातें बोलूँ?
प्र: ईमानदारी से।
आचार्य प्रशांत: बोल दो, इम्प्रेस करने की कोशिश कर सकता हूँ। और ऐसा फिर इम्प्रेस करूँगा कि यहाँ से बाहर निकलोगे, कहोगे, ‘वाह, क्या बात है! समझ में कुछ नहीं आया, पर ऐसी-ऐसी बातें बोलीं जो कभी सुनी ही नहीं थी। भैया कौन-सी भाषा में बोल रहे थे ये नहीं पता, पर देखकर लग ऐसा रहा था कि कोई बहुत बड़ी बात बोल रहे थे।‘
अभी शुरु कर दूँ सिर्फ़ और सिर्फ़ इंग्लिश में बोलना? पक्का हो जाएगा, तुममें से दो-तिहाई को आधी बातें समझ में ही नहीं आएँगी, पर तुम इम्प्रेस तो ज़रूर हो जाओगे। करूँ इम्प्रेस ? चाहते हो यही? तो इम्प्रेशन काम का है, या हकीकत काम की है?
प्र: हकीकत।
आचार्य प्रशांत: दूसरों को जब भी बेटा इम्प्रेस करने की कोशिश कर रहे हो न, तुम अपनेआप से दूर जा रहे हो, तुम्हारी सारी नज़र अब दूसरे पर हो गयी है। मैं अगर तुम्हें इम्प्रेस करने की कोशिश करने लग जाऊँ, तो मेरी सारी कन्सर्न ये रहेगी कि तुम मेरे बारे में क्या सोच रहे हो। तब क्या मैं ईमानदारी से कोई बात कह सकता हूँ तुमसे? तुम भूल ही जाओगे कि तुम क्या हो, तुम सिर्फ़ ये खयाल करोगे कि वो सोच क्या रहा है मेरे बारे में, और ये गुलामी है।
ये बात स्पष्ट हो रही है कि ये गुलामी है? क्यों है गुलामी? क्योंकि तुम उसका ही खयाल करे जा रहे हो। जैसे एक मालिक का आदमी हर समय खयाल करता है न, तुम उसका ही खयाल करे जा रहे हो। क्या खयाल करे जा रहे हो? ‘अच्छा सोच रहा है मेरे बारे में, बुरा सोच रहा है।‘ अब अगर तुम्हें लग गया कि जिसको तुम इम्प्रेस करना चाहते हो ― तुममें से कितने लोग हो जो इस चक्कर में रहते हो कि दूसरों को इम्प्रेस कर दें?
ईमानदारी से हाथ उठा दो, कोई मैं नाम थोड़े ही लिख रहा हूँ! खुद ही, अपने लिए उठाओ, कि दूसरों को इम्प्रेस कर लें ये चाह कितने लोगों में रहती है? उठा दो हाथ!
(कोई हाथ नहीं उठाता है)
अब ये देखो, ये बात ठीक नहीं है, चाह तो रहती है।
(श्रोतागण हँसते हैं)
रहती है कि नहीं रहती है?
श्रोता: जी।
आचार्य प्रशांत: तो फिर उठा दो हाथ।
(कुछ श्रोता हाथ उठाते हैं)
चलो पाँच-सात हाथ तो उठे हैं। और उठ गये, दस उठे हैं, ठीक है।
जब भी तुम किसी को इम्प्रेस करना चाहते हो, ध्यान रखना, तुम सोच रहे हो कि तुम उसे इम्प्रेस कर रहे हो, सच ये है कि वो तुम्हारा मालिक बन गया है, क्योंकि अब सिर्फ़ तुम वो काम करोगे जो वो चाहता है।
वो है न एक गाना ― “जो तुमको हो पसन्द वही बात कहेंगे।“
(श्रोतागण हँसते हैं)
आगे? “तुम दिन को कहो रात तो हम?”
श्रोता: “रात कहेंगे।“
आचार्य प्रशांत: अब तो सच गया?
श्रोता: भाड़ में।
आचार्य प्रशांत: अब दिन रात बन जाए, रात दिन बन जाए, सुबह शाम बन जाए, कोई फ़र्क नहीं पड़ता, द ट्रुथ इज़ आउट (सच अब गया)। इम्प्रेशन का यही तो मतलब है बिलकुल, कि मैं वैसा ही तुम्हें दिखूँगा जैसा तुम चाहते हो। इम्प्रेशन का मतलब ये है कि माँ-बाप मुझे मासूम समझते हैं तो उनके सामने मैं नन्हा-मुन्हा बच्चा बनकर रहता हूँ। अब ये बात तुम्हारे दोस्त बेहतर जानते हैं कि तुम कितने बच्चे हो।
(श्रोतागण हँसते हैं)
पर इम्प्रेस करना है, ब्रांड बनाकर रखना है।
इन चक्करों में मत पड़ना!
पहला जो सवाल था और जो दूसरा सवाल है, ये आपस में जुड़े हुए हैं। जो भी लोग पर्सनालिटी बनाने के, ब्रांड चमकाने के फेर में रहते हैं, वो आन्ट्रप्रेन्योर्शिप (उद्यमिता) को भूल जाएँ, क्योंकि आन्ट्रप्रेन्योर्शिप का मतलब ही यही है कि दो लोग तारीफ़ करेंगे पर बीस लोग गालियाँ भी देंगे, बीस लोग तुम्हें आकर ये भी बोलेंगे कि तुम ज़िन्दगी में एक लूज़र (हारा हुआ व्यक्ति) हो। तुमसे कहेंगे कि ये तू किस राह पर चल पड़ा भाई, ये तू कर क्या रहा है। तुम्हारा ब्रांड गिर जाएगा।
मार्केट में जाओगे शादी करने के लिए, लड़की का बाप पूछेगा, ‘कमाता कितना है,’ तब पता चलेगा कि अभी तो कुछ पता नहीं, अभी तो कुछ कर रहा है जिसमें बस थोड़ी-बहुत आमदनी है।
(श्रोतागण तरह-तरह की आवाज़ें करते हैं)
उत्तेजित मत हो जाओ, शान्त रहो, बात सुनो। कुछ थोड़ा-सा बोल दिया नहीं, कि पक-पक पक-पक। ब्रांड बनेगा, निश्चित रूप से बनेगा अमित, पर कब बनेगा, ये बात छोड़ दो समय पर, जब होना होगा तो होगा। तुम अपनी परवाह करो, उतना काफ़ी है।
मैं बात पहुँचा पा रहा हूँ तुम तक?
प्र: जी।
आचार्य प्रशांत: चलो एक उदाहरण ले लेता हूँ, जो तुम्हारे लिए बड़ा रेलेवेंट (प्रासंगिक) है। सब नौकरी के फेर में हो, सबको इंटरव्यू (साक्षात्कार) देना है। जब इंटरव्यू रूम में घुसते हो, तुम सबकी चाहत रहती है कि मैं इंटरव्यूअर को क्या करूँ?
प्र: *इम्प्रेस*।
आचार्य प्रशांत: और यहीं पर सारा खेल खराब होता है, क्योंकि तुम इम्प्रेस करना चाहते हो, और तुम ऐसी-ऐसी हरकतें करते हो इम्प्रेस करने के लिए कि काम बिलकुल खराब हो जाता है। तुम्हें उस वक्त ये होश बिलकुल नहीं रह जाता है कि मैं कौन हूँ, मेरा आपा क्या है, मैं जवाब क्या दे रहा हूँ। तुम लगातार यही सोच रहे होते हो कि मेरी छवि कैसी बन रही होगी उसकी आँखों में।
अपने आप को अपनी नज़र से नहीं, उसकी नज़र से देख रहे होते हो, और फिर गहरा डर उठता है एक, कि कहीं मेरी छवि खराब न हो रही हो। और फिर वहाँ हाथ भी कँपते हैं, गला भी चोक हो जाता है, पसीने छूटते हैं, अंड का बंड बोलते हो, और ऐसे-ऐसे काम करने की कोशिश करते हो जो नकली हैं।
ये असली घटना बता रहा हूँ, अभी ऑफ़िस में हुई है। इंटरव्यू देने आये सज्जन, फ़्रेशर हैं। अब इंटरव्यू है, बड़ी बात है, इंटरव्यूअर को इम्प्रेस करना चाहिए। तो गये होंगे किसी पर्सनालिटी डेवलपमेंट की कोचिंग-वोचिंग में, कुछ करके आये होंगे, तो वहाँ सीखे होंगे कि इंटरव्यूअर के सामने ऐसे तन-वन के बैठा जाता है, बिलकुल बॉडी पोश्चर क्या होना चाहिए, बॉडी लैंग्वेज , सब सिखाया जाता है। बेवकूफ़ी की बातें हैं, पर उनको सीखने वाले बेवकूफ़ हैं बहुत सारे। तो अपना बैठे हुए हैं, और तने हुए हैं।
(श्रोतागण हँसते हैं)
मैं बाहर घूम रहा था, खाना या कुछ थी ऐसी चीज़, उसके लिए बाहर था। जो मेरे केबिन का गेट है, वो जो इंटरव्यू कैंडिडेट बैठता है उसके पीछे है, तो आप अगर बैठे हुए हो इंटरव्यू देने के लिए, तो मेरे केबिन का गेट आपके पीछे है। तो ये अपना बैठ तो वैसे ही गये जैसे तुम्हारी बैठने की आदत है, जो इन्होंने बीस साल-बाइस साल प्रैक्टिस (अभ्यास) की है, तो अपना बैठ गये अपना ऐसे लटककर कुर्सी पर। और जो कुर्सी है, जिस पर ये बैठते हैं, वो दो कुर्सियाँ बिलकुल अगल-बगल रखी हुई हैं, उसमें इन्होंने बीच में अपना पाँव फँसा लिया।
समझ रहे हो न?
भाई, दोनों कुर्सियाँ हैं, उनके बीच में ऐसे पसरकर लेट गये, और पाँव फँसा लिया। और ये लेट क्यों गये पसरकर? क्योंकि अभी इंटरव्यूअर है नहीं, तो इन्होंने कहा, ‘बढ़िया, आराम कर लो।’ इधर ही बगल में ए.सी. चल रहा है, यहीं अपना ठण्डी हवा ले रहे हैं, जो आदत है।
मैं पीछे से घुसा। अब जैसे ही मैं पीछे से एंट्री (प्रवेश) कर रहा हूँ, तो इनको याद आया कि इनको इम्प्रेस करना है, तो झटके से इन्होंने सीधा होकर बैठने की कोशिश की, बिलकुल झटके से। मैं बगल से निकल रहा हूँ, और बिलकुल झटके से बैठने की कोशिश की, फड़ाक से गिरे मेरे पाँव पर ही। पाँव फँसा हुआ है न, आप खड़े होओगे तो क्या होगा? अब पहले तो मुझे लगा कि ये दण्डवत वगैरह कर रहा है, कुछ प्रणाम वगैरह।
(श्रोतागण हँसते हैं)
उठाया मैंने, कि उठो वत्स। उठने को राज़ी नहीं हैं, मतलब शर्म आ रही है इतनी, मुँह ही छिपा लिया, कि जॉब तो गयी ही, बेइज़्ज़ती भी हो रही है, मुँह छिपा लिया। पर किसी तरह से कॉलर पकड़कर खड़ा किया, कि जाने तो दे उधर, मेरी कुर्सी सामने है।
ये जो हड़बड़ाहट है, ये जो डेस्पेरेशन (निराशा) है, ये सिर्फ़ इसीलिए है कि क्योंकि तुम बहुत उत्सुक हो कुछ पाने को, और जिससे पाना चाहते हो उसके मन में अपनी एक छवि बनाना चाहते हो। कोई ज़रूरत नहीं है इस हड़बड़ाहट की, इस बेचैनी की, जैसे हो वैसे रहो। तुम जैसे हो काफ़ी हो, अच्छे हो, होश में रहो बस। उस दिन कोई विशेष हरकत करने की ज़रूरत नहीं है, कि ब्रांड बनाना है कि ये करना है, वो करना है।
अब मैं ये भी नहीं कह रहा हूँ कि टोपी लगाकर चले गये इंटरव्यू देने। एक साधारण तरीके से, जैसे एक आदमी सहजता में कपड़े पहनता है, जैसे सहज होकर बोलता है, वैसे रहो। क्यों परवाह कर रहे हो कि क्या सोच रहा होगा, क्या इम्प्रेशन जा रहा है? जो जाना है वो तो जा ही रहा है, तुम अपनी फ़िक्र करो।
आ रही है बेटा बात समझ में?
ज़्यादातर कैंडिडेट्स इसलिए नहीं रिजेक्ट होते कि टेक्निकल नॉलेज (तकनीकी ज्ञान) वगैरह कम है। टेक्निकल नॉलेज का जो कटऑफ़ है, वो तो कम्पनी बता ही देती है पहले, कि थ्रूआउट सिक्स्टी परसेंट चाहिए, जो भी चाहिए वो बता देते हैं। और वो बासठ परसेंट जिसने पाया है, और अड़सठ परसेंट जिसने पाया है, उसमें कोई कम्पनी बड़ा भेद नहीं करती है। ज़्यादातर लोग रिजेक्ट इसी चक्कर में होते हैं, कि वहाँ पर कुछ ऐसा करना चाहते हैं जो उन्हें स्मार्ट सिद्ध कर दे, जो उन्हें दूसरों से अलग सिद्ध कर दे। जो आप हो नहीं, वैसा अपने आप को दिखाना चाहते हो, और इस चक्कर में मारे जाते हो।
सारे करतब कर दोगे वहाँ पर, एक-एक। चल रहा है ए.सी., और पसीना चू रहा है पट-पट-पट-पट, और पूछो कि इंट्रोड्यूस योरसेल्फ़ (अपना परिचय दें) ― ‘*माई स्ट्रेंथ इज़ दैट आइ एम नेवर नर्वस*’ (मेरी ताकत ये है कि मैं कभी घबराता नहीं हूँ)। ये कभी नर्वस नहीं होते! गले से आवाज़ नहीं निकल रही है, मिमिया रहे हैं, और बता रहे हैं कि लीडरशिप क्वालिटीज़ मेरी बहुत बढ़िया हैं, मैंने कॉलेज में ये फ़ेस्ट किया है, मैंने उसमें..।
पता नहीं कैसे होता है, समझ में नहीं आता। हम तो फ़ेस्ट कराते हैं तो उसमें कोई पार्टिसिपेट करने के लिए आगे नहीं आता। आपके सर मुझे बताएँगे कि फ़ेस्ट कराना है, ये हो रहा है, वो हो रहा है, ये भाग गया, वो हो गया। और इंटरव्यू देने जितने आते हैं, सबने लिख रखा होता है कि फ़ेस्ट में मैंने ये भी कर दिया और वो भी कर दिया और ऐसा कर दिया, वैसा कर दिया।
‘ आइ एम अ स्टेट-लेवल सिंगर (मैं राज्य-स्तरीय गायक हूँ)।‘
पता नहीं कौन सी स्टेट-लेवल कॉम्पटीशन होती है जिसमें यू.पी. वर्सेज़ एम.पी. की सिंगिंग होती है! नहीं, होती है तो बता दो! शायद होती हो, मुझे मालूम नहीं, पर मेरे लिए एक अजीब बात है। ऐसा कुछ होता है क्या, स्टेट-लेवल सिंगर ?
प्र: संजय कॉलेज में अखिल भारतीय होती है।
आचार्य प्रशांत: उसमें स्टेट-लेवल की होती है?
प्र: स्टेट-लेवल होती है, अखिल भारतीय भी होती है।
आचार्य प्रशांत: तो उसमें एक स्टेट वर्सेज़ दूसरे स्टेट का कॉम्पटीशन होता है? ऐसा कुछ होता है?
प्र: जितने भी सम कॉलेज होते हैं, उनकी कॉम्पटीशन होती है।
आचार्य प्रशांत: हो सकता है होती भी हो, पर फिर जब मैं उनसे बोलता हूँ कि गा दो, तो इतना बेसुरा क्यों गाते हैं?
(श्रोतागण हँसते हैं)
और क्या गाया था याद नहीं। अगर आपने वाकई कोई स्टेट-लेवल प्राइज़ जीता है, तो आपको याद भी नहीं होगा आपने क्या गाया था?
प्र: भूल जाते हैं।
आचार्य प्रशांत: नहीं, भूल नहीं जाते हैं, वो सिर्फ़ बाथरूम में गाते हैं, और कहीं नहीं। और जिस स्टेट में बाथरूम है, उस स्टेट को बोलते हैं *स्टेट-लेवल सिंगिंग*। तो हमारा बाथरूम तो यू.पी. में है न, वहीं पर गाते हैं हम रोज़ाना, रियाज़ करते हैं।
प्र: सर , सबके साथ वैसा होता है?
आचार्य प्रशांत: बेटा, हज़ार में एक की बात करूँ, या हज़ार में नौ सौ निन्यानवे की?
प्रोजेक्ट्स लेकर के आओगे, जो तुमने कर भी नहीं रखे हैं। और किसी कैम्पस में जाओ, मान लो मॉक इंटरव्यूज़ के राउंड चल रहे हैं ― कुंदन (स्वयंसेवी) बेहतर बता पाएँगे, सी.वी. मँगाए थे कभी, कि सी.वी. लेकर के आना? और सी.वी. में सबके एक जैसे *प्रोजेक्ट्स*। मतलब हम शकल से कैसे लगते हैं? तुम कुछ भी लिख लोगे और हम बन जाएँगे? एक ही वर्डिंग , एक ही *स्पेलिंग एरर*।
और तो और, मुझे मालूम नहीं ए.आइ.टी. से ऐसा हो रहा है कि नहीं हो रहा है, ये जो तुम अपने एस.डी.आर्स. लिखते हो, लोग ये भी कॉपी (नकल) करके भेज रहे हैं। और एक के पीछे एक, अक्सर लड़का-लड़की का जोड़ा होगा, लड़की का पहले आएगा, लड़के का दो मिनट बाद आएगा। एच.आइ.डी.पी. में क्या लर्निंग हुई है, इनसे कहा जाता है कि लिखकर भेजो। अब कोई ज़रूरी नहीं है कि लिखकर भेजो, तो चलो किसी और क्लास की भेज देना, कुछ और कर लेना; वो भी चेप लेंगे। और बड़ी इम्प्रेसिव होगी वो, लम्बी सी, या तो कॉलेबोरेटिव , कि आधा तुम लिखो, आधा हम लिखें, तो इम्प्रेशन डबल हो जाएगा।
कोई इंटरव्यूअर किसी और चीज़ से इतना ज़्यादा नहीं चिढ़ता जितना कि एक नकली कैंडिडेट से। होगा एच.आर. मैनेजर ; एच.आर. मैनेजर बाद में है, इंसान पहले है, और कोई इंसान ये नहीं चाहता कि उसके साथ धोखा किया जाए। एक नकली पर्सनालिटी चढ़ाना ― और हर पर्सनालिटी नकली ही होती है ― एक नकली पर्सनालिटी चढ़ाना सामने वाले को धोखा देने के बराबर है, इस बात को ठीक-ठीक समझ लो।
मैं अगर तुम्हारा इंटरव्यू ले रहा हूँ, तो तुम बच्चे ही हो मेरे सामने। तुम अभी जिस दुनिया में कदम रखना चाह रहे हो, एच.आर. मैनेजर उस दुनिया में दस साल से है, और तुम सोचते हो कि मैं इसको चरा लूँगा। जैसे हो, बस ऐसे उसके सामने आ जाओ।
हर कम्पनी पहले तुम्हें लेकर के ट्रेनिंग (प्रशिक्षण) ही देती है, कोई कम्पनी तुमको सीधे जॉब (नौकरी) पर नहीं लगा देती है। उनको पता है कि वो एक यूनिवर्सिटी में आ रहे हैं, उनको पता है कि वो एक खास तरह के कॉलेज में आ रहे हैं, तुमसे कोई विशेष उम्मीदें उन्हें वैसे भी नहीं हैं। उम्मीद है तो ये कि तुम एक बेसिक ईमानदारी दिखाओगे, कि तुममें एक बेसिक लर्नेबिलिटी (सीखने की योग्यता) होगी, कि तुम्हारी अगर वो ट्रेनिंग करेंगे तो तुम उस ट्रेनिंग को सीख सकते हो, और तुम स्टेबल (स्थिर) हो, तुम ये नहीं करोगे कि आये और कम्पनी में दो महीने में छोड़कर भाग लिये।
फ़्रेशर्स का एट्रीशन रेट मैक्सिमम होता है। आइ.टी. इंडस्ट्री में फ़्रेशर्स हायर होते हैं, एक साल के भीतर-भीतर तीस-चालीस परसेंट भागते हैं। आजकल नहीं भाग रहे हैं, क्योंकि आजकल भागेंगे तो जाएँगे कहाँ? पर वैसे, अच्छे दिनों में एक साल के भीतर-भीतर तीस-चालीस परसेंट भाग लेते हैं। कम्पनी इसमें बहुत नहीं उत्सुक है कि तुम कितने इम्प्रेसिव हो, इसमें ज़्यादा उत्सुक है कि तुम रुकोगे कि नहीं रुकोगे, कि बिन पेंदी के लोटे हो, थाली के बैंगन, कि आज आये इधर, और कल को उधर भाग लिये।
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