अंतरात्मा तुम्हारी नहीं

Acharya Prashant

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अंतरात्मा तुम्हारी नहीं

छात्र: सर, हम अपनी अंतरात्मा की आवाज़ क्यों नहीं सुन पाते? जैसे पहली बार शराब पीने से पहले पता होता है कि गलत है पर रुक नहीं पाते। ऐसा क्यों है?

वक्ता: क्योंकि जो आवाज़ आती है वो सही मायने में अपनी नहीं है। तुम्हें आती है अपनी अंतरात्मा की आवाज़?

छात्र: यस सर।

वक्ता: तुम्हारी अंतरात्मा कभी फ्रेंच बोलती है?

छात्र: नो सर।

वक्ता: तुम देख नहीं रहे कि ये तुम्हारी ही आवाज़ है? वो कुछ भी ऐसा बोलती है क्या, जो तुम्हें ना पता हो? वो तुम्हारी ही आवाज़ है जो समाज ने तुम्हारे अन्दर बिठा दी है पहरेदार की तरह। वो समाज की आवाज़ है। समाज ने तुम्हें नियंत्रित रखने का बड़ा अच्छा तरीका सोचा है कि इसके अन्दर एक अंतरात्मा बिठा दो। अंतरात्मा में आत्मा जैसा कुछ नहीं है। वो एक नकली चीज़ है।

ये जो कोंशिअंस है- अंतरात्मा- वो बड़ी नकली होती है। ये समाज की बड़ी गहरी चाल है। समाज कहता है कि हर जगह तो इस व्यक्ति को देख नहीं पायेंगे कि क्या कर रहा है, तो एक जासूसी चिप लगा दो इसके भीतर जो इसको हमेशा देखती रहेगी, और उस चिप का नाम है अंतरात्मा। वो अंतरात्मा बस वही बोलती है जो तुमने सीखा है। वो वही बताती है जो तुम्हें समाज ने दिया है। और चूँकि वो तुम्हारी अपनी आवाज़ नहीं है, इसलिए वो कभी प्रभावशाली नहीं हो पाती। वो आवाज़ बोलती रह जाती है शराब मत पियो और तुम पी जाते हो। क्योंकि वो तुम्हारी समझ की नहीं समाज की आवाज़ है। इसलिए उसमें कोई दम नहीं होता।

‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

संवाद देखें : http://www.youtube.com/watch?v=i3mGp88KzZQ

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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