अंग्रेज़ी के सामने हिंदी कैसे बचेगी और बढ़ेगी? || (2019)

Acharya Prashant

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अंग्रेज़ी के सामने हिंदी कैसे बचेगी और बढ़ेगी? || (2019)

प्रश्नकर्ता: प्रिय आचार्य जी, प्रणाम। भारत के अधिकतर विद्यालयों ने अंग्रेज़ी को शिक्षा का माध्यम बना लिया है। लोगों में भी यह भावना बैठ गयी है कि उनकी क्षेत्रीय भाषा को हीन माना जाता है, और यह मान्यता है कि उच्चतम शिक्षा अंग्रेज़ी माध्यम में ही दी जा सकती है। इसी कारण से जो ज्ञान का अपार साहित्य पूर्वजों ने छोड़ा है, उससे भी दूरी बढ़ती ही जा रही है। आचार्य जी, भाषा का शिक्षा में क्या महत्व है? क्या कारण है कि इतनी उच्चतम शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी भ्रष्टाचार संसार को खाए जा रहा है? कृपया इस विषय पर रोशनी प्रदान करें।

आचार्य प्रशांत: पहली बात तो शिक्षा क्या है, यह समझिए। आप जिसको शिक्षा कह रही हैं, उच्च शिक्षा कह रही हैं, वो बस रोज़गार पाने का माध्यम है। शिक्षा होती है वो, जो बच्चे को जानवर से इंसान बनाए, ठीक है? रोज़गार पाने के लिए अंग्रेज़ी भाषा में वो शिक्षा दे रहे हैं, तो देते रहें। रोटी की भाषा अंग्रेज़ी होती है तो होती रहे।

हर बच्चे को, हर व्यक्ति को एक दूसरी शिक्षा भी चाहिए। उस शिक्षा का माध्यम हिंदी बनेगी, दूसरी क्षेत्रीय भाषाएँ बनेंगी, घबराने की क्या बात है?

अगर आप यह सोचेंगी कि एक ही शिक्षा है, वो जो स्कूल-कॉलेज में दी जा रही है, तो आपको लगेगा, "अरे, अरे, अरे, अंग्रेज़ी छा गयी, अंग्रेज़ी छा गयी!" वही भर शिक्षा थोड़े ही है। हम भी तो शिक्षा दे रहे हैं, और यह असली शिक्षा है। और ये जो असली शिक्षा है, यह भारत की मिट्टी की भाषाओं में ज़्यादा खूबसूरती से दी जा सकती है। बहुत अंग्रेज़ी पढ़ा-लिखा इंसान होगा हिंदुस्तान में, ऐसा भी होगा जो देवनागरी लिखना ही भूल गया हो, 'क' न लिख पाता हो अब, वो भी गाने तो मोहम्मद रफ़ी के ही सुनता है। भारत के एक-से-एक भूरी चमड़ी वाले अंग्रेज़ हैं, गाली तो वो भी हिंदी में ही देते हैं।

तो आप चिंता मत करिए।

कोई भी भाषा अपनी उपयोगिता के आधार पर ही ज़िंदा रहती है। जो भाषा अनुपयोगी हो गयी, वो मर जाती है।

आप उसको बहुत दिनों तक कृत्रिम तरीक़ों से, वेंटीलेटर पर ज़िंदा नहीं रख सकते। आप यह नहीं कह सकते - "अरे अरे! पुरानी भाषा है, ज़िंदा रखो, ज़िंदा रखो।" उपयोगी होगी तो ज़िंदा रहेगी, लोगों के काम की होगी तो ज़िंदा रहेगी। अंग्रेज़ी का भी आप इतना फैलाव इसीलिए देख रही हैं क्योंकि उससे लोगों को कुछ लाभ हो रहा है। क्या लाभ हो रहा है? रोज़गार मिल रहा है। हिंदी हो चाहे तमिल हो, उससे भी अगर लोगों को लाभ होगा, तो ये भाषाएँ खूब फैलेंगी।

आप फ़िल्में देखने जाती हैं, फ़िल्में दिल को छू जाती हैं न? ये लाभ है न? तो इसीलिए भारत में जो फ़िल्म इंडस्ट्री है, वो दुनिया की फ़िल्म इंडस्ट्रियों में बड़ी-से-बड़ी है। इसी तरीके से अगर अध्यात्म की भाषा हमारी मिट्टी की भाषाएँ रहेंगी, तो लोगों को मजबूर होकर के हिंदी, तमिल, तेलुगू, बंगाली, पंजाबी सीखनी पड़ेंगी। लोग सीखेंगे। ख़ासतौर पर बंगाल में तो कई उदाहरण रहे हैं जहाँ लोगों ने बंगाली सीखी इसलिए क्योंकि वो बंगाली का कोई उपन्यास पढ़ना चाहते थे। इसी तरीके से चंद्रकांता और चंद्रकांता संतति का उदहारण है। जब यह छपे तो इतने प्रसिद्ध हुए कि लोगों ने इन पुस्तकों को पढ़ने के लिए भाषा सीखी। अब भाषा की उपयोगिता है न, कि तुम्हें यह भाषा आती है तभी तो तुम चंद्रकांता पढ़ पाओगे।

तो ऐसा कुछ करा तो जाए न हिंदी में कि जो इतना उपयोगी हो, कि लोगों को हिंदी की ओर लौटना पड़े या हिंदी सीखनी ही पड़े। हिंदी में कुछ ऐसा होगा तो हिंदी अपने आप आगे बढ़ेगी, सब भाषाएँ बढ़ेंगी।

तो नारे लगाने से कुछ नहीं होगा, हिंदी पखवाड़ा मनाने से कुछ नहीं होगा, बार-बार ये कहने से नहीं होगा कि, "चलो, हिंदी पढ़ें! राष्ट्रभाषा है, कि जनभाषा है, मातृभाषा है।" ये सब बोलने से कुछ नहीं होता, भाषा वही ज़िंदा रहती है जो काम की होती है। (प्रश्नकर्ता तमिल भाषी भी हैं) कुछ हिंदी में या तमिल में ऐसा करके दिखाइये जो मूल्य का हो, जो वज़न, कीमत का हो, फिर लोग अपने आप हिंदी और तमिल की ओर आकर्षित होंगे।

आपने प्रश्न हिंदी में क्यों पूछा? आचार्य जी कुछ ऐसा कर रहे हैं हिंदी में जो हिंदी को मजबूत कर रहा है। ऐसे बनती है बात, नारेबाज़ी से थोड़े ही होगा।

आप कहें, "नहीं, स्कूलों में अनिवार्य कर दो क्षेत्रीय भाषा और हिंदी", तो उससे भी क्या होगा? लोग पढ़ लेंगे। उत्तर भारत में संस्कृत अनिवार्य रहती है छठी तक, आठवीं तक, कई बार दसवीं तक, लोग कुछ-कुछ करके संस्कृत का पर्चा पास कर लेते हैं। फिर संस्कृत क्या उनकी भाषा बन पाती है? इसी तरीके से आप हिंदी को सब तरफ़ अनिवार्य भी कर दीजिए, कोई लाभ नहीं होगा, जब तक वो भाषा लोगों के, दोहरा रहा हूँ, उपयोग की ना हो, काम की ना हो।

हिंदी के प्रचार में, प्रसार में अभी-भी बॉलीवुड का बहुत बड़ा योगदान है। और ये भाषा फैल ही रही है, भारत की लगभग सभी क्षेत्रीय भाषाएँ फैल रही हैं। हालाँकि, जो कुछ बहुत छोटी-छोटी भाषाएँ हैं, उन पर ख़तरा भी है। कुछ बहुत छोटी बोलियाँ, लिपियाँ मिट भी गयी हैं। लेकिन फिर भी तक़रीबन जो ज़्यादा प्रचलित भाषाएँ हैं, वो न सिर्फ़ बची हुई हैं बल्कि फैल रही हैं। भारत से बाहर भी फैल रही हैं, और उसकी बहुत बड़ी वजह सिनेमा है। वो लोगों के काम का है, तो लोग कहते हैं, "भाषा आनी चाहिए।"

हम वो शिक्षा दे रहे हैं लोगों को जो लोगों के काम की है। इस शिक्षा का वाहन हिंदी को रखा है। ये शिक्षा आगे बढ़ेगी, इसका वाहन तो आगे बढ़ेगा ही साथ में।

YouTube Link: https://youtu.be/aD-FOhEqFY4

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