प्रश्नकर्ता: अब आया है प्रश्न कि, वास्तव में दो प्रश्न हैं अलग-अलग, मैं दोनों को एक में ले ले रहा हूँ, (दोनों) एक ही हैं। पहला प्रश्न है अँगूठी से सम्बन्धित, और दूसरा प्रश्न है मंगलसूत्र से सम्बन्धित। तो पूछा गया है कि अँगूठियों का विज्ञान क्या है। इतनी बात विस्तार में बतायी जाती है कि कौनसी अँगूठी किस उँगली में पहनें, कब पहनें, कौनसा रत्न कैसे धारण करें, तो कुछ तो बात होगी न!
और इसी धारा में एक दूसरा प्रश्न आया था कि ये मंगलसूत्र क्या चीज़ होती है और क्या वाकई इसका वैवाहिक जीवन पर और सौभाग्य पर कुछ प्रभाव पड़ता है।
आचार्य प्रशांत: उत्तर क्या दूँ?, क्या दूँ उत्तर? ये है उत्तर (अपनी दोनों हाथों की दसों उँगलियाँ दिखाते हुए, जिनमें कोई अँगूठी नहीं है) क्या है ये? क्या है? (अपने गले को दिखाते हैं) बस यही उत्तर है। जो समझ सकते हों उनके लिए बहुत है, और जो नहीं समझ सकते उनके लिए अब बोलूँगा। समझेंगे वो तब भी नहीं, कितना भी बोल लूँ।
बड़ी वाहियात चीज़ है ‘वहम’। वो डर की ज़मीन पर पैदा होता है, आसानी से जाता नहीं, खासतौर पर जब उसको खाद-पानी देने वाले गुरु लोग भी बहुत घूम रहे हों।
आत्मा हो तुम वास्तव में, सच्चाई है ये अपनी। ये शरीर भी एक आवरण भर है। तुम्हारी भलाई होती है ये जान लेने में कि शरीर भी आवरण भर है, तुम्हारी सच्चाई नहीं। और तुम इस आवरण के ऊपर भी और बहुत सारे आवरण डालना चाहते हो? और तुम्हें लग रहा है कि उससे तुम्हें कुछ मिल जाएगा।
तुम उँगलियों में क्या, तुम गले में, माथे पर, कान में, हर जगह अँगूठी डाल लो। तुम कमर में अँगूठी डाल लो। उससे तुम्हें क्या मिल जाना है? जब तुमने अँगूठी नहीं पहनी थी तब तुम मूर्ख थे। अँगूठी पहनकर के तुम अँगूठीधारी मूर्ख हो जाओगे, मूर्खता थोड़ी ही बदल जाएगी। धातु मेटल, मेटल, मेटल को तुम अपने शरीर से छुआ रहे हो, उसको तुमने ऐसे गोल-गोल बनाकर के ऐसे अँगूठी में डाल लिया है उँगली में। तुमको वाकई, थोड़ी तो बुद्धि चला लो। तुम्हें वाकई लगता है कि इससे तुम्हें कोई लाभ हो जाएगा? हैं भई? फँस और जाती है, फिर तेल लगाते हो।
मुन्नी और चुन्नी आकर के चाची की उँगली से अँगूठी निकाल रही हैं। आधे दिन तक ये कार्यक्रम चला है। और फँस काहे को गयी? क्योंकि चाची खा-खाकर दूनी हो गयी है। अँगूठी तब मिली थी जब छरहरी थी, कि जल्दी से शादी हो जाए। शादी की अँगूठी है, वो डाल ली है। और शादी हुई नहीं कि (दोनों हाथों को फैलाकर मोटा होना बताते हुए) ऐसी हो गई। अब वो अँगूठी गई है फँस, और मुन्नी और चुन्नी ज़ोर लगा रही हैं, तेल लगाया, साबुन लगाया।
मुझे बड़ा मज़ा आता है। मैं कहता हूँ, ‘फँस ही जाए।’ और उतारी भी क्यों जा रही है? क्योंकि अभी गुरुजी ने बताया अंग्रेज़ी में कि अब तुम दूसरा वाला रत्न धारण करो। गुरुजी स्पॉन्सर्ड बाय द जेम्स एंड ज्वैलरी इंडस्ट्री (गुरुजी रत्न और आभूषण उद्योग द्वारा प्रायोजित)। बड़ा घाटा हो जाएगा इस पूरे उद्योग का अगर ये अन्धविश्वास तुम्हारे मन से निकल गये तो। क्या-क्या होता है? प्रेशियस मेटल्स (कीमती धातु) जेम्स, ज्वेल्स (जवाहरात, गहने)। एक साधारण पत्थर को तुमने लाखों का बना दिया। अध्यात्म का ये अँगूठी और मंगलसूत्र से क्या लेना देना है भाई? तुम कहाँ फँस गये? कैसी बातें? और पूछ रहे हैं, अँगूठियों का विज्ञान बताओ। क्या अलग-अलग विज्ञान होते हैं?
एक विज्ञान होता है। आत्मा सत्य है, बाकी सब वहम है — यही विज्ञान है। और अगर भौतिक विज्ञान की बात कर रहे हो, तो पीरियॉडिक टेबल (आवर्त सारणी) जाकर पढ़ लो। न तो अध्यात्मिक विज्ञान में अँगूठी जैसी कोई चीज़ हो सकती है, न भौतिक विज्ञान में अँगूठी, मंगलसूत्र जैसी कोई चीज़ हो सकती है। पर पूछ रहे हो, ‘अँगूठियों का विज्ञान बताइए। और मंगलसूत्र से क्या सौभाग्य बढ़ता है?'
सौभाग्य बढ़ेगा क्या, दुर्भाग्य तो तभी चालू हो गया था जब तुम अन्धविश्वास में फँसे थे।
गीता के सूत्र पढ़ लो, उपनिषदों के सूत्र पढ़ लो। वो है मंगलसूत्र, उसी से मंगल होगा और किसी सूत्र से मंगल नहीं होगा।
गले में अगर एक जंजीर डालने से मंगल हो सकता, तो मैं कहता कि तुम जंजीर ही जंजीर पहन लो ऊपर से लेकर नीचे तक, दाँतों के बीच में भी जंजीर फँसा लो, जबान पर भी जंजीर बाँध लो। मंगल होता हो तो जो भी करना पड़े मंगल के लिए वही कम है।
इससे कोई मंगल नहीं हो जाना है। और यही चीज़ है न, धार्मिक हम हैं नहीं। धर्म की शुरुआत होती है धर्मग्रन्थ से, उससे हमें कोई मतलब नहीं। तो हमने धर्म का एक सस्ता विकल्प निकाल लिया है। क्या? ये सब करना — अँगूठियाँ, कंगन।
मन्दिर काहे को जाते हो? गहनों की दुकान में जाकर बैठ जाओ, तुम्हारा मन्दिर तो वही है। तुम्हारी सब धार्मिक चीज़ें तो वहीं मिलती हैं। धर्म के नाम पर तो तुम्हें इन्हीं चीज़ों से मतलब है: अँगूठी, कंगन, झुमके, पायल, हार, मंगलसूत्र। तो मन्दिर क्यों जाना है? सुनार की दुकान ही तुम्हारा मन्दिर है।
कोई फलाना गंडा-ताबीज़ डाल रहा है, कोई कह रहा है ये देखिए, ये मैने विशुद्ध फल मँगवाया है हिमालय से। इसको आप धारण करिये, इससे फलानी चीज़ हो जाएगी। रंग-बिरंगे पत्थर! लोग घूम रहे होते हैं दस उँगलियों में अठारह अँगूठियाँ पहनकर। उनको तो पता ही नहीं चलता होगा दो-चार ऊपर-नीचे को जाती होंगी तो।
एक बार ऐसे ही जब सामने बैठे थे बहुत सारे लोग, मैंने अँगूठियों पर बोलना शुरू किया; मेरी तो पुरानी आदत है ऐसे ही। तो देख रहा हूँ कि जो लोग (अपने गाल पर हाथ रखते हुए) ऐसे बैठकर के सुन रहे थे मुझे, वो ऐसे (अपने हाथ की उँगलियाँ छुपाते हुए) हो रहे हैं। दीदियों ने ऐसे करके ऐसे (हाथ सिर के ऊपर से घुमाते हुए) पल्लू डालने शुरू कर दिए, ऐसे करके ऐसे कि गले का जो सारा माल है वो छुप जाए। कोई यूँ (हाथ पीछे ले जाकर) करके बैठ रहा है, पीछे हाथ।
अब क्या बोलूँ इस पर? कितना भी बोलता रह सकता हूँ, पर ये अँगूठीबाज़ी तुम्हें कहीं का नहीं छोड़ेगी।