अकेलापन बर्दाश्त नहीं होता || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

Acharya Prashant

3 min
49 reads
अकेलापन बर्दाश्त नहीं होता || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

प्रश्नकर्ता: नमन आचार्य श्री, मैं शादी करने जा रहा हूँ। मगर मैं समझ रहा हूँ कि ये अच्छा नहीं हो रहा। मगर दूसरी तरफ़ मुझसे ये अकेलेपन से भरी हुई ज़िन्दगी बर्दाश्त नहीं होती। कृपया मार्ग दिखाएँ।

आचार्य प्रशांत: अब तो मंज़िल ही मिल गई, मार्ग क्या दिखाऊँ?

(श्रोतागण हँसते हैं)

मार्ग तो उनके लिए होता है बेटाजो अब कहीं को जा सकते हों। जिनके लिए आगे बढ़ना, निकलना, यात्रा करना संभव हो, मार्ग उनके लिए होते हैं। जो अपने ऊपर सब दरवाज़े बन्द करने जा रहे हों, उनको मार्ग क्या बताऊँ? मैं मार्ग बता भी दूँगा तो उसपर चलोगे कैसे?

(पास में बैठे श्रोता से) तुम क्यों परेशान हो रहे हो?जवाब इधर दे रहा हूँ, दहशत इधर छा रही है।

(श्रोतागण हँसते हैं)

मैं नहीं कह रहा विवाह गलत है। मैं तुम्हारे ही वक्तव्य का हवाला दे रहा हूँ। तुम कह रहे हो, “मैं शादी करने जा रहा हूँ मगर मैं जान रहा हूँ कि ये मेरे लिए अच्छा नहीं है”। अगर जान रहे होतो क्यों कर रहे हो बेटा? ये जो तुमने अपनी प्रेरणा बताई कि अकेलापन बर्दाश्त नहीं होता। अरे, कुछ और कर लो। अकेलापन मिटाने के बहुत तरीके हैं—मेला-ठेला घूम आओ, दोस्त-यार बना लो, भारत भ्रमण कर लो, कुछ कर लो। एक जगह टिकट कट रहे हैं चाँद पर जाने के, मंगल ग्रह पर जाने के, वहाँ घूम आओ। अकेलेपन का क्या है, वो तो कार्टून चैनल देखकर भी मिट जाता है।

(सभी श्रोतागण हँसते हैं)

उसके लिए तुम ये क्यों कर रहे हो? अब सब श्रोतागण दो हिस्सों में विभाजित हो गए हैं। एक वो जो बहुत ज़ोर-ज़ोर से हँस रहे हैं और एक जो अति गम्भीर और मायूस हो गए हैं। जो हँस रहे हैं, वह वो हैं जिनका अभी नम्बर नहीं लगा। जो अति गम्भीर और मायूस हो गए हैं वह वो हैं जो कह रहे हैं, “उफ! ये पहले क्यों नहीं सुना!” नहीं, बात मज़ाक की नहीं है, मज़ाक से आगे की भी है।

अकेलापन मिटाने के लिए ये करोगे क्या? और जानते नहीं हो क्या कि मूल अकेलापन क्या है? वो है अहमवृत्ति की अपूर्णता। वो किसी से शादी कर लेने से थोड़े ही मिट जाएगी भाई! तुम कर लो विवाह, पर ये उम्मीद मत रखना कि उससे अकेलापन कम हो जाएगा। कर लो! शरीर की वासनाएँ इत्यादि हों, उनकी पूर्ति के लिए तुमको यही ज़रिया दिखता हो कि विवाह करना है तभी जीवन में एक स्त्री देह आएगी तो विवाह कर लो। लेकिन ये मत सोचना कि उस स्त्री देह के आ जाने से तुम्हारा अकेलापन मिट जाएगा, वो नहीं होगा।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
Comments
Categories