ऐसा कारोबार करो जो कृष्ण तक पहुँचा दे || श्रीमद्भगवद्गीता पर (2020)

Acharya Prashant

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ऐसा कारोबार करो जो कृष्ण तक पहुँचा दे || श्रीमद्भगवद्गीता पर (2020)

पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति। तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मन:।।

जो कोई भक्त मेरे लिए प्रेम से पत्र, पुष्प, फल, जल आदि अर्पण करता है, उस शुद्धबुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ वह पत्र-पुष्पादि मैं सगुणरूप से प्रकट होकर प्रीतिसहित खाता हूँ। —श्रीमद्भागवत गीता, अध्याय ९, श्लोक २६

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, इस श्लोक का क्या अर्थ है?

आचार्य प्रशांत: उस समय औद्योगिक अर्थव्यवस्था तो थी नहीं, तो आप अगर किसी को भी कुछ भी अर्पण करते थे तो क्या अर्पण करोगे? प्रकृति के जो उत्पाद हैं, वही अर्पण करोगे न? अच्छा, अभी भी देखो आप, आपमें से जिन लोगों का अभी पुराने गाँवों से कुछ संबंध वग़ैरह हो, ख़ासतौर पर गाँव अगर थोड़ी पिछड़ी जगह पर हो, और गाँव से कोई वृद्ध इत्यादि आपसे मिलने आते हैं तो आज भी वो आपके लिए क्या लेकर आते हैं? गाँव से आए हैं तो आपके लिए क्या लेकर आएँगे? दूध लाएँगे, फल लाएँगे और बोरा भरकर गेहूँ उठा लाएँगे कि अपने खेत का है, कुछ गुड़ ले लो, सब्ज़ी ले लो, यही सब तो लाते हैं।

आज भी ये हालत है। तो उस समय पर तो कोई भी किसी से भी मिलता होगा तो क्या देता होगा? यही तो देगा – पत्रं, पुष्पं, फलं। पत्ता देगा, फूल देगा, फल देगा, और क्या देगा? श्रीकृष्ण कह रहे हैं कि सही कर्म करो और जो कुछ भी दे रहे हो, उसको दो जिसको देने से कृष्ण तक पहुँच सको। पढ़ने वालों ने यह बात समझी नहीं, तो उन्होंने समझा कि कृष्ण की प्रतिमा पर जाकर पत्रं, पुष्पं, फलं अर्पित कर देना है।

श्रीकृष्ण कह रहे हैं कि तुम चीज़ों का आदान-प्रदान तो करते ही हो न, कुछ देते हो, कुछ लेते हो। तो उस ज़माने में कोई भी किसी को क्या लेता-देता था? यही फल-फूल। उस ज़माने में कोई भी किसी को भी दे रहा है तो क्या देगा? तुम राजा से भी मिलने जा रहे हो तो क्या लेकर जाओगे? टेलीविज़न तो लेकर जाओगे नहीं। क्या दोगे उसको? कोई तुमको अगर बहुत प्यारा है तो उसको तुम क्या अर्पित करोगे, आज से तीन हज़ार साल पहले? लैपटॉप ? क्या दोगे? कुछ खाने-पीने की ही तो चीज़ें दोगे। यही सब कुछ दोगे। या कुछ लकड़ी का बना हुआ दे दोगे। यही सब तो करोगे? श्रीकृष्ण कह रहे हैं कि यह सब कुछ जो कृष्णमय पात्र है, उसको दो। वही कृष्ण का साकार रूप है।

इसका यह अर्थ बिलकुल भी नहीं है कि कृष्ण की प्रतिमा पर पुष्प चढ़ाने से, पत्र चढ़ाने से या फल चढ़ाने से तुमको मोक्ष की या मुक्ति की प्राप्ति हो जाएगी। बिलकुल भी नहीं! वो बात का बड़ा स्थूल अर्थ है, उसमें अटक मत जाना। लोगों ने यही किया है, वो कहते हैं कि शिव जी को बेलपत्र बहुत प्यारा है तो जाकर बेल का पत्ता या बेल का पत्थर शिव जी को चढ़ाते रहते हैं। शिव को, अंतर्यामी शिव को, निराकार शिव को, कूटस्थ शिव को तुम बेल का पत्र (पत्ता) दिखा रहे हो? तुम पगलाए हुए हो? हम सोचते हैं कि यह सब धर्म है। यह धर्म है? तुम गणेश जी को जाकर लड्डू खिला रहे हो। वैसे ही यहाँ पर पत्रं पुष्पं फलं। अर्थ स्पष्ट हो रहा है?

जो भी लेन-देन करते हो, वो उसके साथ करो जिसके साथ लेन-देन करने से कृष्ण की प्राप्ति सरल और सहज हो जाएगी। ग़लत जगह संबंध मत बनाओ। ग़लत जगह लेन-देन, कारोबार मत चलाओ।

न फ़िर यह उम्मीद ही कर लो कि श्री कृष्ण कह गए हैं कि "मैं तो स्वयं प्रकट हो करके अपने भक्त द्वारा अर्पित चीज़ों को ग्रहण करता हूँ, तो मैं यह सब अगर अर्पित करता ही रहूँगा तो एक दिन साकार रुप में सशरीर श्रीकृष्ण स्वयं प्रकट होंगे और मेरे द्वारा अर्पित किया गया केला और सेब खाएँगे।"

कइयों को इस तरह की ग़लतफ़हमियाँ भी रहती हैं, कहते हैं कि, "उन्होंने खाया था, यह रहा छिलका!" आदमी के फ़ितूर का कोई ठिकाना नहीं है। फ़िर वह अपनी बात के समर्थन में गीता को उद्धृत करेंगे, कहेंगे, "देखो गीता में लिखा है न, श्रीकृष्ण ने कहा है न कि अगर कोई मेरा भक्त अनन्य भाव से मुझे फल इत्यादि भेंट करता है तो मैं उसे ज़रूर ही ग्रहण करता हूँ, पार्थ। तो मैंने भी ऐसे ही करा था। मैं ही वह भक्त हूँ जिसके लिए गीता में संकेत दिया था उन्होंने। मैं ही तो हूँ वो! तो मैंने अनन्य भाव से अर्पित किया। वो आए थे, केला खाया और छिलका मेरे लिए छोड़ा।" उनसे अगर कहो कि, "भाई, नशा उतारने का अस्पताल उधर है" तो बड़ा बुरा मानते हैं। कहते हैं, "नास्तिक, तू नर्क में सड़ेगा! तुझे मेरी भक्ति पर संदेह है!" पता नहीं क्या सड़ेगा, फिलहाल तो छिलका सड़ रहा है। दूर रखो, चचा, बदबू मार रहा है। अर्थ का अनर्थ!

फ्रिज में लड्डू रखे थे। धोखे से बाहर छूट गए, उसको आकर चूहे ले गए तो अगले दिन बोल रहे हैं, “गणपति बप्पा मोरया! गणेश भगवान हम पर प्रसन्न हैं, देखो, चूहा आया था, लड्डू लेकर गया है।” और अभी भी मेरी बात बहुत लोगों को बुरी लग रही होगी। यही कह रहे होंगे कि, "चूहा माने गणेश जी ने मँगवाया था, वही भेजते हैं।"

अध्यात्म में शुद्धतम बात होती है, उसको अंधविश्वास के तल पर मत घसीट लाया कीजिए। किस्से-कहानियाँ अपनी जगह हैं, यथार्थ अपनी जगह है। अध्यात्म यथार्थ में गहरे उतरने का विज्ञान है। किस्से-कहानियों का मनोरंजन नहीं है कि दिवाली की रात अगर उल्लू बोला तो बोले कि इस बार पैसा खूब आएगा, लक्ष्मी जी का शोफर (चालक) आया है, इशारा कर रहा है। अब नहीं होता, आज से तीस साल पहले, चालीस साल पहले जब बच्चा था मैं, तब होता था। कई सूरमा ऐसे भी होते थे, वो दिवाली की रात को, घर के दरवाज़े, ताले-वाले खोलकर सोते थे, कहते थे कि माल आएगा। और आता तो कुछ नहीं था पर, या उलटा कह लो, आता था लेकिन तुम्हारे नहीं, चोरों के घर आता था।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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