अहंकार परमात्मा को भी लपेट लेता है || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

Acharya Prashant

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अहंकार परमात्मा को भी लपेट लेता है || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

आचार्य प्रशांत: पृथ्वी पर तो जो बड़े-से-बड़ा ज्ञानी होता है, वो मान लो दस हज़ार चीज़ों के बारे में जानता है। इतना भी बड़ा मुश्किल है, पर मान लो। ठीक है? तो उसी बात को आगे बढ़ा कर हम क्या कर देते हैं? हम कहते हैं कि परमात्मा सर्वज्ञ है तो वो दस करोड़ चीज़ों के बारे में जानता होगा। और फिर वही बात प्रतिबिम्बित होती है हमारी प्रार्थनाओं में जब हम कहते हैं, ’हे ईश्वर! तुम तो सब जानते हो न।’

हमें लगता है कि वो वैसे ही है जैसे पड़ोस के गुप्ता जी हैं। वो मोहल्ले के हर घर का हालचाल रखते हैं। तो वो तो अधिक से अधिक क्या हैं? विज्ञ। विज्ञ माने खूब जानने वाला, ज्ञानी। ठीक है? तो विज्ञ हैं, इसलिए पूरे मोहल्ले की ख़बर रखते हैं — किसके यहाँ पर चना सड़ गया, किसके कुत्ते को कब्ज़ हो गया है, किसका बछड़ा किसकी बछिया के साथ भाग गया — यह सब गुप्ता जी को पता होता है।

तो हम सोचते हैं कि जो परमात्मा है चूँकि वो सर्वज्ञ है, इसीलिए वो गुप्ता जी का ही कोई बहुत विस्तृत रूप होगा, जैसे अभी कहा, सुपरलेटिव। तो हमें लगता है कि जैसे गुप्ता जी को सब घरों का हाल पता है, परमात्मा को पूरे ब्रह्मांड में सबके घरों का हाल पता होगा कि क्या चल रहा है, क्या नहीं चल रहा है। और यह मूर्खतापूर्ण अवधारणा हम लेकर के चलते ही जा रहे हैं, चलते ही जा रहे हैं। इसके मूल में क्या है, समझ रहे हो? अहंकार आयामगत परिवर्तन को स्वीकार नहीं करना चाहता। यह है मूल बात।

अहंकार क्या बोल रहा है, समझो। अहंकार बोल रहा है कि मैं हूँ गुप्ता जी और मुझे कितने घरों के बारे में पता है? मान लो पच्चीस घरों के बारे में पता है। और परमात्मा को पच्चीस हज़ार या पच्चीस करोड़ के बारे में पता है। तो यही जो पच्चीस का मेरा अपना आँकड़ा है ज्ञान का, इसको ही अगर मैं बढ़ाता चला जाऊँ, बढ़ाता चला जाऊँ तो एक दिन परमात्मा बन जाऊँगा। मैं जैसा हूँ — मैं अभी कैसा हूँ? मैं हर घर में ताक-झाँक करने वाला हूँ — मैं जैसा हूँ, मैं इसी को और अगर बढ़ा दूँ तो बढ़ाते-बढ़ाते, बढ़ाते-बढ़ाते एक दिन मैं परमात्मा बन जाऊँगा। यह अहंकार का दृष्टिकोण है, ऐसी ही हमने अभिकल्पना कर रखी है परमात्मा की।

अहंकार यह तो मानता है कि परमात्मा बड़ा है, पर यह नहीं मानता कि परमात्मा आयामगत रूप से अलग है। वो मानता है कि मैं जैसा हूँ इसी को अगर बहुत बढ़ा दिया जाए, इसी का संवर्धन कर दिया जाए तो परमात्मा जैसी कोई चीज़ पैदा हो जाएगी। बहुत सारे तो घूम भी रहे हैं। एक पूरा संस्थान है, पूरा एक अभियान है जो कहता है परमात्मा सागर जैसा है, हम बूँद जैसे हैं। यह ज़बरदस्त अहंकार की बात है।

वो कह रहे हैं, ‘देखो, आकार का अन्तर है, गुण का कोई अन्तर नहीं है। हम सब छोटी-छोटी, नन्हीं-नन्हीं जीवात्माएँ हैं जिन्हें जाकर परमात्मा में मिल जाना है। जैसे बहुत सारी बूँदें जाकर सागर में मिल जाती हैं। तो है तो देखो सागर और बूँद एक ही, लेकिन सागर ज़्यादा बड़ा है न। तो वैसे ही जीवात्मा और परमात्मा एक ही हैं, बस परमात्मा ज़्यादा बड़ा है। हमने परमात्मा को अपना ही कोई फुलाया हुआ, फैलाया हुआ संस्करण माना है। गॉड एज एन इन्फ्लेटेड वरजन ऑफ मैन (परमात्मा इन्सान का ही एक बड़ा संस्करण है)। तो हमने ईश्वर को अपने से ऊपर बस एक तरीक़े से माना है, क्या? हमसे बड़ा है, पर साहब, हमसे अलग नहीं है। ‘हो तो तुम भी हमारे ही जैसे, बस फूल ज़्यादा गये हो।’

हम यह मानते रहना चाहते हैं कि हम ठीक-ठाक ही हैं। परमात्मा होने का अर्थ बस यह होता है कि हम जैसे हैं, उसको दस हज़ार से गुणा कर दिया जाए। हमें बदलना नहीं है। हम बस जिस राह जा रहे हैं उस पर और आगे जाना है। परमात्मा इसी राह पर है, बस हमसे ज़रा आगे है। हम उसे अपने से ऊपर नहीं मानते, हम उसे अपने से आगे मानते हैं। ऊपर जाने का तो मतलब यह होगा कि तुम इस राह पर चलना छोड़ो। तुम्हें उठना पड़ेगा।

हम अपनी राह नहीं छोड़ना चाहते। हम जैसे हैं हम वैसे ही रहना चाहते हैं। और उस पर भी धौंसबाज़ी हमारी यह कि हम ऊपर नहीं उठेंगे बल्कि जो ऊपर परमात्मा है, उसको अपने जैसा प्रदर्शित कर देंगे। तो हम दिखा देंगे कि दो देवताओं में ईर्ष्या के मारे लड़ाई हो गयी आपस में। यहाँ तक दिखा देंगे कि एक बार ब्रह्मा और विष्णु में आपस में बहस हो गयी, लड़ाई हो गयी और वो दोनों श्रेष्ठता के लिए होड़ कर रहे थे। क्यों ऐसा दिखा देंगे? क्योंकि हमारे मन में ईर्ष्या रहती है, क्योंकि हम श्रेष्ठता पर मरते हैं। तो हम यह भी दिखा देंगे कि ब्रह्मा और विष्णु में श्रेष्ठता के लिए लड़ाई हो गयी।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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