अहम् वृत्ति, और शरीर || (2018)

Acharya Prashant

7 min
271 reads
अहम् वृत्ति, और शरीर || (2018)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, जैसे वृत्तियाँ अपना काम करती हैं कि क्रोध आ गया, डर आ गया। अब जैसे मैं यहाँ से बाहर निकला और मेरी लड़ाई हो जाए तो शरीर को तो डर लगता है उलझने में, लड़ाई करने में, और साथ-ही-साथ यह तादात्म्य बना रहता है कि यह 'मेरा' शरीर है और 'मुझे' चोट लग रही है, तो मैं डर जाता हूँ। तो ये तादात्म्य कैसे टूटे?

आचार्य प्रशांत: हाथापाई चलती रहे?

प्र: नहीं यदि ऐसा कभी...

आचार्य: नहीं यदि क्यों? तुम कह रहे हो कि, "मैं यहाँ से निकलूँगा, हाथापाई होगी, बस उस हाथापाई में शरीर से तादात्म्य ना रहे।" क्यों ना रहे? "ताकि मैं बिलकुल निर्भय हो कर पीट सकूँ।"

(श्रोतागण हँसते हैं)

ये इनकी गुज़ारिश है। पहला सूत्र तो ये है कि आज इससे बच कर रहो। इस बात को बिलकुल ही पचा गया कि इसकी हाथापाई क्यों हो जाती है। उसकी बात ही नहीं करनी है। कह रहे हो हाथापाई जब होती है तो शरीर में भय उठता है, वृत्तियाँ सक्रिय हो जाती हैं। और हाथापाई बिना वृत्तियों के होती है? हाथापाई के मूल में क्या है? वृत्तियाँ हाथापाई के बाद सक्रिय होती हैं या उससे पहले ही सक्रिय थीं इसीलिए हाथापाई हुई? उसकी बात ही नहीं करना चाहता।

समझो — शरीर है, शरीर की अपनी वृत्तियाँ हैं। शरीर की वृत्तियाँ शरीर की हैं, छोड़ो। साँस लेते रहना किसकी वृत्ति है?

प्र: शरीर की।

आचार्य: हाँ। किसी की नाक दबा दो, अपनी ही दबा लो, मिनट भर को दबाओगे देखो चेहरा लाल हो जाएगा। शरीर जीना चाहता है, ठीक? एक उम्र आती है तुम विपरीत लिंग की ओर आकर्षित होने लगते हो, शरीर दूसरे शरीरों को जन्म देना चाहता है, ये सब शरीर की वृत्तियाँ हैं। एकदम बेहोश आदमी हो, कोई विचार ना कर सकता हो, कोमा में चला गया हो, फिर भी उसकी साँस चलती रहती है, ठीक? कोमा में भी चले जाओ, साँस फिर भी तो चल ही रही है न। तो ये पूरी तरह से शरीरगत बात है, शरीर को ज़िंदा रहना है, शरीर ने ठानी हुई है, "मैं ज़िंदा रहना चाहता हूँ, चाहता हूँ!"

शरीर की वृत्तियों को छोड़ो तुम अपनी वृत्ति की बात करो, तुम अहं हो और तुम्हारी वृत्ति है शरीर से चिपक जाना। वृत्ति, वृत्ति में अंतर समझो। तुम अहं हो और तुम्हारी वृत्ति है कि 'शरीर से चिपकूँगा'। शरीर से चिपकने के बाद भी तुम्हारा चिपकना बंद नहीं होता, तुम किसी और चीज़ से भी चिपकते हो क्योंकि अब तुम शरीर हो गए। शरीर को ये दिवार पसंद आ गई तो अब तुम इससे जा कर चिपक गए, शरीर को कोई लड़की पसंद आ गई, शरीर को चाय पसंद आ गई, शरीर को ये मोबाइल फ़ोन पसंद आ गया। तो चिपकने की पूरी एक श्रृंखला बनती है। क्यों? इसलिए नहीं कि शरीर के पास वृत्तियाँ हैं, इसलिए कि तुम्हारी मूल वृत्ति है चिपकना, तुम गोंद हो।

गोंदो अहं।

(श्रोतागण हँसते हैं)

"मुझे तो चिपकना है।" और चिपकने के लिए तुम्हें जो पहला विषय, पहली वस्तु मिलती है उसका क्या नाम है? शरीर। वो तुम्हारी डिफ़ॉल्ट चिपकन है, कि कहीं भी और चिपकूँ उससे पहले किससे चिपका हुआ हूँ?

प्र: शरीर से।

आचार्य: हाँ, अब शरीर के माध्यम से मैं अब और चीज़ों से चिपकूँगा। "ये मेरी बीवी है मैं इससे चिपका हूँ, ये मेरा पैसा है मैं इससे चिपका हूँ, मेरी गाड़ी है मैं इससे चिपका हूँ, पर इन सबसे चिपकने से पहले मैं किससे चिपका हूँ? शरीर से चिपका हूँ।"

शरीर की वृत्तियाँ ख़तरनाक नहीं हैं, तुम अपनी वृत्ति की बात करो। शरीर का दोष मत बताओ कि शरीर की तो वृत्तियाँ हैं ही, वो हिंसक है, ये है, वो है। शरीर हिंसक इत्यादि नहीं है, शरीर को हिंसा में कोई उत्सुकता नहीं है, अगर वो ज़िंदा रहे बस। शेर का पेट भरा हो वो हिंसक रहता है क्या? शेर को हिंसा में कोई उत्सुकता नहीं है अगर उसको बैठे बिठाए खाना मिल रहा हो तो।

तो शरीर की वृत्तियाँ बस इसलिए हैं कि शरीर चलता रहे। शरीर की वृत्ति ख़तरनाक नहीं है। तुम्हारी वृत्ति ख़तरनाक है, तुम्हरी वृत्ति का नाम है गोंद। तुम्हें कुछ-न-कुछ चाहिए, कैवल्य तुम्हें सुहाता नहीं।

कैवल्य समझते हो? पूर्ण एकांत, ‘हम बस हैं’। उसमें तो तुम कितने परेशान हो जाते हो, "कुछ मिल नहीं रहा चिपकने को, किसको फ़ोन मिलाएँ?"

एक सज्जन मेरे पास आए बोले, "बड़ी आफ़त हो गई है। फ़ेसबुक अब फ़ॉर्वर्डेड मैसेज पर ऊपर लिख देता है *फ़ॉर्वर्डेड*।" मैंने कहा, "तो?" बोले, "पहले जब अकेला होता था एक साथ पचास लोगों को एक ही सन्देश भेज देता था, ‘मिसिंग यू’ , तो कोई-न-कोई तो कॉल बैक करता ही था, अब जान जाते हैं कि ये सबको ही भेज रहा है। एक लिखता था ‘मिसिंग यू’ फिर जो जो सामने आता गया सबको भेज दिया। कोई-न-कोई तो मेरे जैसा पड़ा ही होगा अपने ही गोंद में लथपथ, तो फिर कॉल बैक करेगा। अब एक-एक करके भेजना पड़ता है, ‘*मिसिंग यू’*।"

अकेलेपन से कितना घबराते हो। कोई दूसरा ना मिले तो अपनी ही संगत कर लेते हो। अपनी संगत माने किसकी संगत? विचारों की, सोचने बैठ जाओ, कोई दूसरा नहीं तो दूसरे के ख़याल तो हैं। "आपसे अच्छी आपकी यादें हैं जो तड़पाती नहीं, जो जाती नहीं।" सुनाओ आगे का, "आप तो आकर चले जाते हो, वो जाती नहीं, वो जाती नहीं।" और कुछ नहीं है तो समय बर्बाद करने के लिए सोचो, किसी की संगत तो चाहिए; वो नहीं तो उनका ख़याल सही। आ रही है बात समझ में?

अपनी वृत्ति की परवाह करो। शरीर निर्दोष है, शरीर तो पशु समान है, और जानवर तो मासूम होते हैं। उनके पास क्या वृत्तियाँ होती हैं? यही तो होती हैं, खाओ, आराम करो, पड़े रहो, कोई ख़तरा आए तो भाग लो, कोई मादा दिखे तो पछिया लो। कोई बहुत बड़े गुनाह तो वो करते नहीं। एक जानवर दूसरे जानवर को मारता भी है तो इसीलिए क्योंकि प्रकृति ने ही उसे ऐसा बनाया है। तो शरीर की वृत्तियों को दोष मत दो।

बहुत लोग आते हैं और कहते हैं, "अरे शरीर से बड़ा पाप तो दूसरा कोई हो ही नहीं सकता।" शरीर में क्या पाप है? मेरे ख़रगोश हैं उनमें क्या पाप है? मैं गोलू को उठा कर कहूँ, "तू पापी है तू मेरी रोटी खा गया।" उसके शब्दकोष में 'पाप' जैसा कोई शब्द ही नहीं है, उसके पास बस एक ही शब्द है - 'प्रकृति'। वो वही करेगा जो प्रकृति ने उसको सिखाया। ना वहाँ पाप है, ना पुण्य है, मात्र प्रकृति है।

हाँ पापी तुम हो जब तुम किसी भी चीज़ से चिपक जाते हो, मत चिपको शरीर से इतना। क्रोध की वृत्ति मान लो शरीर की भी है, तुम उस वृत्ति से जा कर क्यों चिपकते हो? तुम उसको हवा क्यों देते हो? तुम उस वृत्ति के दृष्टा क्यों नहीं हो जाते? तुम ज़रा दूर क्यों नहीं रहते?

आदमी खूँखार हो जाता है, आदमी अत्याचारी हो जाता है। जानवर होते हैं कभी? इसका मतलब हमारी जो दरिंदों से बढ़ कर दरिंदगी है उसके पीछे पशु वृत्तियाँ तो नहीं हो सकतीं।

समझना, जब कोई आदमी बड़ा ज़ुल्मी हो जाए, क्रूर हो जाए तो तुम उसको क्या बोलते हो? दरिंदा, पशु। पर पशु तो वो सारे काम करते ही नहीं जो आदमी करता है। इसका मतलब वो सारे काम तुम्हारी पशु प्रकृति नहीं कर रही है, तुम्हारी अहं वृत्ति कर रही है। इस अहं वृत्ति को सम्भालो, शरीर जो करे उसे करने दो, खुला छोड़ो।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories