प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी। अगर श्रीकृष्ण की जगह महावीर या बुद्ध होते तो क्या फिर भी महाभारत होती?
आचार्य प्रशांत: अरे पागल! अगर बुद्ध और महावीर होते कुरुक्षेत्र के मैदान में तो वह श्री कृष्ण जैसे ही होते। सत्य है, जब वह अवतरित होता है किसी कुरुक्षेत्र में तो श्रीकृष्ण का रूप लेता है। जब वह अवतरित होता है लुम्बिनी में तो गौतम बुद्ध का रूप लेता है।
सूरज की ही रौशनी है, जब वह एक समय में तुम्हारी आँखों पर पड़ती है तो सुनहरी दिखती है। तुम कहते हो अभी दोपहर है। सूरज की ही रौशनी है, जब वह एक समय में तुम्हारी आँखों पर पड़ती है तो दूधिया दिखती है, तुम कहते हो आधी रात है।
अब तुम कहो, गजब सवाल पूछते हुए कि आचार्य जी अगर आधी रात को सूरज होता तो भी क्या उसकी रौशनी शीतलता देती? पागल, आधी रात के सूरज को ही तो चाँद कहते हैं। सूरज है आधी रात को।
इसी तरीके से जो महावीर कुरुक्षेत्र के मैदान में मौजूद हैं उन्हें श्रीकृष्ण कहते हैं। बात समझ में आ रही है? और जो श्रीकृष्ण नंगे पाँव उत्तर भारत में भ्रमण कर रहे हैं और विकृत और भ्रष्ट हुए वैदिक धर्म की कमियों की ओर लोगों का ध्यान खींच रहे हैं, उनको बुद्ध और महावीर कहते हैं। कुछ बात समझ में आ रही है?
कोई ऐसा थोड़े ही है कि यह अलग-अलग व्यक्तित्व हैं। वह एक ही सत्य है, वह एक ही आत्मा है। जब उसे कुरुक्षेत्र में अवतरित होना होगा तो उसे कृष्ण ही बनना होगा। उसे आज के समय अवतरित होना होगा तो तुम्हें क्या लगती है बात? कि वह बुद्ध, महावीर या कृष्ण बनकर आएगी? सच अगर आज अवतरित होगा तो क्या बुद्ध, महावीर या कृष्ण बनकर आएगा? वह आज के समय के अनुरूप कुछ बनकर आएगा। वह आज की भाषा बोलेगा। वह आज के सरोकार रखेगा।
पर हमनें ऐसा माना है जैसे कृष्ण हों, क्राइस्ट हों, बुद्ध हों, महावीर हों, नानक हों, यह सब जैसे अलग-अलग सिद्धांतों के प्रतिनिधि हैं। जैसे यह अलग-अलग राजनैतिक पार्टियों के प्रमुख हों। जिनके अलग-अलग मैनिफैस्टो (घोषणा पत्र) हैं (व्यंग करते हुए)। जिनकी अलग-अलग बातें हैं और विचारधाराएँ हैं। नहीं भइया, वह एक ही हैं सब।
अलग-अलग जगहों पर दिखाई देते हैं तो उनकी अलग-अलग शक्लें होती हैं, अलग-अलग बोलियाँ होती हैं। अलग राग-रंग, अलग ताव-तेवर होते हैं। अन्यथा वह एक ही हैं।
कल्पना हमारी विचित्र होती है। हमें लगता है कि कैसा होता, अगर महाभारत के मैदान पर निर्वस्त्र महावीर पहुँच जाते। पागल हो क्या? महावीर की निर्वस्त्रता उनके समय और उनके संदर्भ में थी। युद्ध के मैदान में वह कुछ और बन जाती। ठीक वैसे, जैसे कृष्ण कभी रासलीला करते हैं और कभी युद्ध करते हैं।
अब तुम पूछो कि जो रासलीला वाले कृष्ण थे, क्या वह भी अर्जुन को युद्ध करने का ही उपदेश देते। पागल! क्या सवाल है यह?
रासलीला और रणलीला वाले कृष्ण कोई अलग-अलग हैं? एक ही सत्य है, जब वह गोपियों के साथ है तो तुम्हें लग रहा है कि रास कर रहा है, जब वह अर्जुन के साथ है तो तुम्हें लग रहा है कि रण कर रहा है।
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