अधकचरी ज़िन्दगी, अधकचरा क्रोध || आचार्य प्रशांत (2014)

Acharya Prashant

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अधकचरी ज़िन्दगी, अधकचरा क्रोध || आचार्य प्रशांत (2014)

श्रोता : कभी प्रतिक्रिया करना एक साधारण बात होती है और नहीं प्रतिक्रिया करना एक असाधारण बात होती है |

आचार्य प्रशांत : नहीं, इस बात को ध्यान से समझिएगा – नहीं प्रतिक्रिया करने से आपका क्या अर्थ है कि कर्म नहीं करेंगे कोई ?

श्रोता १ : नहीं, मतलब जैसे आपको किसी ने कुछ बोला, आप लेते जा रहें हैं |

आचार्य जी : आप लेते जा रहे हैं ये अपने आप में एक प्रतिक्रिया हो सकती है | ये प्रतिक्रिया क्यों नहीं हो सकता कि मुझे कोई कहता जाएगा और मैं उसको सोखता जाऊंगा | ये भी प्रतिक्रिया हो सकती है | प्रतिक्रिया न करने का ये मतलब नहीं है कि झेलना है |

अब ये भी आम बोलचाल की भाषा में दोनों एक बातें होतीं हैं | जब कहा जाता है कि प्रतिक्रिया न करो तो उसका मतलब होता है झेले जाओ | प्रतिक्रिया न करने का मतलब ये नहीं है कि झेलना है | प्रतिक्रिया न करने का ये मतलब है – सही प्रतिक्रिया |

उस सही प्रतिक्रिया के लिए सही शब्द होता है रेस्पोंस | प्रतिक्रिया नहीं करना है इसका मतलब स्थिति में बेहोशी से प्रतिक्रिया नहीं करना है | आपको किसी ने कुछ कहा, अगर आप होशपूर्वक उसको पलट कर के दो शब्द बोल सकते हो तो जरुर बोलो, क्यों न बोलो? आपसे किसने कह दिया है कि होठ सिल लो ?

प्रतिक्रिया न करने का यह मतलब थोड़ी है कि कर्म को बाधित कर दूंगा | जो उचित कर्म है उसे भी नहीं होने दूंगा, क्यों? भाई, हम प्रतिक्रिया नहीं करते | प्रतिक्रिया न करने का मतलब है कि कर्म बेहोशी में नहीं होगा| होश में रहेंगे | फिर अगर लगेगा कि कुछ करना है तो होने देंगे, लगता है कि कुछ नहीं करना है तो भी कोई बात नहीं | उसमे कोई सिद्धांत नहीं है कि न हाथ चलाने हैं, न पाओं चलाने हैं, न होंठ चलाने हैं |

श्रोता १ : आचार्य जी, अगर उस प्रतिक्रिया में दूसरे को दुःखी हो जाता है |

आचार्य जी : क्या ?

श्रोता : अहंकार, या…

(सभी श्रोता गण हँसने लगे)

आचार्य जी : आप बहुत बड़े दोस्त हैं उसके कि कायम रखना चाहते हैं उसको | किसको ?

श्रोता १ : अहंकार |

आचार्य जी : बड़े शुभचिंतक की तरह पूछ रहे हैं | देखिये वो दुखी नहीं होना चाहिए | उसको तुम कायम रखना चाहते हो ?

श्रोता २ : गुस्सा तो बंदा देख कर आता है | (सभी श्रोता गण हँसने लगे)

ओब्जेक्टिफाइड गुस्सा होता है | पता है ये झेल लेगा, ये सुन लेगा, सिर झुका लेगा थोड़ा |

आचार्य जी : ये सब बातें हैं गुस्से के बारे में, अगर देखने लग जायें..

आचार्य जी : कोई साइकिल वाला आपको छूता हुआ निकल जाए, कितनी ज़ोर का गुस्सा आता है- ऐ बत्तमीज़! और यहीं टैंक पर कोई आ रहा हो ?

(सभी श्रोता गण हँसने लगे)

कितनी ज़ोर का चढ़ता है | आप जा रहे हो, आप कहीं घुसना चाहते हो | मान लो आप ट्रेन में घुसना चाहते हो और वहाँ बिचारे गरीब ज़मीन पर बैठे हैं और उनके कारण आपको घुसने में कठिनाई हो रही है | कितनी जोर का गुस्सा आएगा ? और वहाँ खड़े हों पाँच-सात पहलवान, आता ही नहीं गुस्सा |

(सभी श्रोता गण हँसने लगे)

अरे! हम तो साधवी हैं, गुस्सा कहाँ ?

(सभी श्रोता गण हँसने लगे)

भईया, तुम खड़े रहो | हम अगले दरवाजे से घुस जाएँगे |

श्रोता ३ : एकदम सही बात है |

आचार्य जी : है न? गुस्सा बड़ी नकली चीज़ है |

श्रोता ३ (हँसते हुए) : किसी ने सर इससे पहले पूछ लिया था कि क्या करें प्रतिक्रिया का ?

श्रोता ४ : कभी-कभी ओब्जेक्टिफाइड नहीं भी होता कि जब दिमाग ख़राब हो जाए तो

आचार्य जी : चिल्ला लो, कोई उसका नियम थोड़ी ही है |

श्रोता ३ : चिल्ला लेने के बाद फिर शांति भंग हो जाती है मतलब जिस स्थिति में रहने की कोशिश कर रहे..

आचार्य जी : अगर पता है कि ‘शांति’ भंग हो जाती है और ‘शांति’ की कीमत पता है तो खुश रहो कि अच्छा सौदा कर रहा हूँ | ‘शांति’ ले रहा हूँ, गुस्सा छोड़ रहा हूँ; बहतरीन सौदा किया | खुश रहो फिर, अब उसमें समस्या क्या है? मैं एक मुनाफे का सौदा कर के आया, अब मुझे खुश होना चाहिए या इस बात को एक समस्या की तरह रखना चाहिए? खुश रहो न |

श्रोता ३ : आचार्य जी, यह अभी बोल पा रहे हैं | लेकिन जब कुछ होता है..

आचार्य जी : उसमें आप यह भूल जाते हो कि आपको ‘शांति’ मिली है और बड़ी कीमती है | भूल जाते हो |

श्रोता ३ : समस्या यह है कि सिर्फ शांत रह जाते हैं ऊपर से लेकिन अंदर भी वो हलचल मचा देता है |

आचार्य जी : तब भी मत भूलो कि जिसको खोया वो कितना कीमती है | सारा खेल याद रखने का है | मत भूलो कि बड़ी कीमती चीज़ खो दी | अपने भीतर एक रसायन क्रिया करो जो एक हद्द से ज्यादा परेशान होने से इनकार कर दे कि ठीक है; कर रहे हैं; एक बिंदु पहुँचा नहीं कि हमें नहीं करना | हमें पता है कि इसके आगे अब जो सौदा होगा वो नुक्सान का होगा| मिलेगा कुछ नहीं, गवा सब खुछ देंगे |

हमारी गाड़ियाँ खड़ी हो गयी थीं तीन एक जगह | अभी कैंप से जब आ रहे थे तो उन्होंने सड़क घेर ली थी | अब बस निकल रहीं थीं बगल से | मैं कुछ दूर जाकर लेट गया था| साथ में सब थे | बस उनके बगल से निकल रही थी और बड़ा वहाँ पे जगह कम है | लगे कि बस घिसट ही देगी और में दूर लेटा हुआ देख रहा था | पहले एक बस निकली, फिर देखता हूँ पीछे दो-चार और खड़ी हुई हैं तो मैंने मुँह फेर लिया | अगर पहले को ही निकलते हुए देखने में इतना तनाव हो गया…

(सभी श्रोता गण हँसने लगे)

हमें देखना ही नहीं है | बस जाने और कार का ड्राईवर जाने | मुँह पलट लिया दूसरी दिशा में देखने के लिए | हमें नहीं देखना |

श्रोता २ : आपने तब कहा था नुक्सान जिसका है वो देखे |

आचार्य जी : तो वो एक ट्रिगर रहे कि इससे ज्यादा दबाब नहीं लेना है | हो गया, चलो खत्म करो | किसी से लड़ाई कर रहे हो, ठीक है | हाँ, उसमें भी मज़ा आता है कि चलो एक सीमा तक बात बढ़ा लो| खेल है अगर अहंकार तो चलो खेल लो | फिर देखो अरे फालतू हो रहा है तो खत्म कर भाई, बहुत हो गया | चले जाओ, अपनी ओर से चले जाओ | चुपचाप गले मिलो, बात खत्म करो, वापस आ जाओ | यह खेल तो अब किसी के लिए मुनाफे का नहीं है, न तेरे लिए न मेरे लिए |

श्रोता 5 : आचार्य जी, हम अहंकारी होती हैं, कम्फर्ट ज़ोन के हिसाब से ट्रिगेर बनाएगे |

आचार्य जी : ठीक है, ऐसे ही कर लो | अच्छा है कि कुछ कर नहीं पाओगे | बेटा, अगर शांति कम्फर्ट का नाम है तो तुम क्या खेल रहे हो फिर? कम्फर्ट शांति नहीं होता | कम्फर्ट ज़ोन के भीतर गहरी अशांति होती है |

जो आदमी बार-बार अलार्म बजने के बावजूद उठ नहीं रहा ज़रा उस आदमी से पुछो, वो सोते समय भी कितना अशांत है और यह काम हम सब ने करा है | ध्यान से देखिये, याद करिए | अलार्म बज रहा है | आपको पता है आपको उठाना है | आप उठ नहीं रहे हो | अगर आप सो भी रहे हो तो कितनी हलचल रहती है सोते समय भी, याद करो थोड़ा | रहती है कि नहीं रहती है ? कम्फर्ट जोन में गहरी अशांति है |

श्रोता ३ : अलार्म नहीं बजता तो वो भी अशांति का कारण होता है | ओब्जेक्टिफ़ाय करने कि जो बात हो रही है, अगर ओब्जेक्टिफ़ाय भी करते हैं तो जिसके ऊपर निकाल सकते हैं तो आप निकालिये भड़ास, हो गया काम खत्म | जो नहीं निकाल सकते वो तो और भी बुरा होता है कि फिर आप नहीं निकाल रहे तो वो और ज्यादा समस्या खड़ी कर देता है कि अगर ओब्जेक्टिफ़ाय की बात भी हो रही हो तो |

आचार्य जी : ओब्जेक्टिफ़ाइड से उनका मतलब यह है कि अगर गुस्सा वास्तविक होता तो फिर ऑब्जेक्ट देखकर तो नहीं निकलता | ये तो कोई गन्दा नाटक है और जब नाटक है तो यह सवाल ही गैरवाजिब है कि नाटक कैसे खत्म करें | कोई असली घटना हो तो उसको खत्म करना एक वाह्जिब सवाल हुआ | जो घटना घटती ही सुविधा देखकर के है कि ये हल्का आदमी है, इस पर गुस्सा निकाल लो | जो घटना घटती ही सुविधा देखकर के है उस घटना का क्या इलाज़ किया जाए |

श्रोता ३ : तो फिर तो और भी बुरा है, फिर तो आप अपने को ही धोखा दे रहे हो |

आचार्य जी : बिलकुल, ये सवाल भी तो एक प्रकार का फिर धोखा है न | आप पूछने आये हो कि मुझे दौरे पड़ते हैं | मान लीजिये मिरगी के | आप पूछने आये हो इनका इलाज़ क्या है और सही बात यह है कि आपको दौरे पड़ते ही नहीं है | आप दौरे लाते हो जब उससे आपको फायदा होना होता है | तो कोई डॉक्टर आपका इलाज़ करेगा ? आपकी बीमारी फिर न मिरगी है, न गुस्सा है, आपकी बीमारी है ‘बेईमानी’ | जो आदमी मिरगी के झूठे दौरों का इलाज करने पहुँचा हो उसका कोई एक्स-रे थोड़ी कराना चाहिए, उसका तो लाई-डिटेक्टर में डालना चाहिए न और लाई-डिटेक्टर में डालने कि जगह आप उसका कैट-स्कैन कर रहे हो तो क्या फायदा? तुम झूठ बोल रहे हो, तुम्हें बीमारी है ही नहीं |

श्रोता ३ : ये तो प्रभावित हो जाने वाली बात हो जाती होगी ओब्जेक्टिफ़ाय करने के लिए |

आचार्य जी : ओब्जेक्टिफाइड है | करो नहीं है, सदा है; सदा-सदा है | अगर करो नहीं है तो सदा है | आप औरतों को देखियेगा| एक पार्टी चल रही होगी | वहाँ पाँच-सात लोगों का झुंड खड़ा होगा, उनको गुस्सा आ रहा है, यह हो रहा है, वो हो रहा है; वो सब पे थोड़ी ही न चिल्लायेंगी | वो पहले पति को अलग करेंगी | उसको धीरे से कोने में ले जाएंगी और फिर उसको झाड़ेंगी | अगर तुम्हारा गुस्सा वास्तविक होता तो बाकी सात को कैसे छोड़ देती ? और गुस्सा ज्यादा बाकी सात पर था, मारा वो बेचारा गया | उसने कुछ किया भी नहीं | ये गुस्सा नकली है |

मैं कह रहा हूँ क्रोध करो, पर फिर वो क्रोध ऐसा हो और तभी हो कि जैसे ‘शिव का तांडव’ कि आज यह व्यक्ति देख के नहीं रुकेगा | फिर तुम यह नहीं देखोगे कि सामने कौन है | फिर उस दिन प्रलय होती है और पूरी श्रृष्टि की होती है | वो ऐसी नहीं होती कि अच्छे-अच्छे छोड़ दो और बुरे-बुरे जला दो और वो कई कल्पों में एक बार होती है | वो ऐसे नहीं होती कि हर हफ्ते इनको गुस्सा आता है | शिव हर हफ्ते तांडव करने लगे तो हो गया |

हजार वर्षों में उठे गुस्सा, फिर वो खालिज़ गुस्सा हो | हमें तो खालिज़ गुस्सा करना भी नहीं आता | जब ज़िन्दगी में कुछ भी पूर्ण नहीं है, खालिज़ नहीं है, तो गुस्सा कैसे खालिज़ हो जाएगा ? तो हम तो गुस्सा भी बड़ा अधकचरा सा करते हैं | करों न गुस्सा, दुनिया को ज़रूरत है | अभी भी गुस्सैल लोगों की ज़रूरत है पर गुस्सैल लोग भी कहाँ मिलते हैं ? हमें चहिये वो लोग जो खड़े हों और यह पूरी व्यवस्था तोड़-ताड़ के गिरा दें| ऐसी आग हो उनके भीतर | पर ऐसे लोग मिलते ही नहीं| क्योंकि जब जीवन में कुछ वास्तविक नहीं तो तुम्हारी आग भी वास्तविक नहीं है | उसपे भी ज़रा छींटे डालो सुविधाओं के, तो भुज जाती है |

जो घर में गुस्सा है, जिसकी बात कर रहे हो, आगे बड़ो न | उसी गुस्से का प्रयोग करो और

इस धरती पर अभी बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जिसे ज़रूरत है तुम्हारे गुस्से की | दिखाओ वहाँ जा कर के गुस्सा | बदल दो स्थितियों को | वो गुस्सा बड़ा शुभ होगा | कृष्ण ने भी गुस्सा किया है और राम ने भी किया है | तुम भी करो, तुम्हारा गुस्सा भी फिर दैवीय होगा |

पर वो ऐसा गुस्सा नहीं हो कि घर में धनिया नहीं है इस बात पर गुस्सा आ गया और गाली दे दी |

आमतौर पर जो लोग ज़रा-ज़रा सी बातों में गुस्सा कर देते हैं, वो पाते हैं कि वास्तविक क्षण जब आया है, तब वो नपुंसक हो जाते हैं | सिर्फ एक गहराई से ‘शांत’ व्यक्ति ही ऑथेंटिक गुस्सा कर सकता है और वो करेगा ही नहीं | कहा न मैंने कि

शिव का तांडव कई कल्पों में एक बार होता है | वो आपको हर महीने कुपित नहीं दिखेगा | शायद जीवन में एक-आत दफ़े वो क्रोध करेगा और वो क्रोध ऐसा नहीं होगा कि पाँच मिनट को आग उठी और थम गयी | फिर उसका क्रोध उसकी नस-नस में बहेगा, जीवन बन जाएगा | वो जीयेगा अपने अपने क्रोध को | उसका पूरा जीवन क्रान्ति बन जाएगा | आग बन जाएगा कि मुझे कुछ पसंद नहीं है और उसको जला देना है | मेरा पूरा जीवन ही समर्पित है, गंदगी को जला देने के लिए | एक ही गुस्सा है, वही मेरा ईंधन है, वही मेरी अग्नि है |

वो अपने प्रतिरोध को जीएगा | वो फिर ऐसा नहीं कि जानेमन नाराज़ क्यों हो गयी, तो इतने में शांत हो जाये और फिर उसका गुस्सा आपको ऐसा नहीं है कि चेहरे पे दिखाई देगा कि हर समय कान लाल करके घूम रहा है, नथुने फड़क रहे हैं | खून बन के बहता है गुस्सा | ऊपर-ऊपर से नहीं पता चलेगा, भीतर होगा |

ये कोई संयोग नहीं है कि जो इस धरती पर ज्यादातर जो अवतार चित्रित किये गए हैं उनके हाथों में शस्त्र भी हैं और शस्त्र ज़रूरी हैं, शुभ हैं यदि अवतार के हाथों में हों | काली को देखा है कभी मुस्कुराते, कि माँ है तो स्नेहमयी काली | किसने देखी है? काली माँ के सामने छोटा बच्चा ले आ दो, तो चीख उठता है उसकी शक्ल भर देख कर के और उसकी जीभ देख कर के और नरमुण्ड देख कर के |

तो शिव की शक्ति काली के रूप में भी प्रकट होती है, शुभ है | पर आप काली बन पाते हो क्या कि आज नरमुण्ड की माला पहनूँगी | आप तो उतना भी नहीं कर पाते | करो ऐसा गुस्सा फिर कि जैसे इसकी गर्दन, इसका खोपड़ा लटक रहा है और खून चू रहा है वैसे ही आज तेरा चुएगा और पीयूंगी | फिर तो एक साड़ी ही काफी होती है क्रोध कम कर देने के लिए, या बिछिया, या झुमका, या प्यार की पप्पी | गया क्रोध | कौन काली ? कैसी काली ?

जब जीवन में कुछ सच्चा नहीं तो क्रोध कहाँ से सच्चा होगा

और क्रोध पे कोई वर्जना नहीं है | ये काम से उठने वाला क्रोध नहीं है कि इच्छा पूरी नहीं हुई तो क्रोध उठ रहा है | ये तो प्रकृति के तूफ़ान की तरह है | वहाँ कोई कामना नहीं है, बस है तूफ़ान | तूफ़ान आएगा, जितने सड़े-गले वृक्ष होंगे और जितने सूखे पत्ते होंगे उन्हें हटा के, गिरा के चला जाएगा |

छोटा-मोटा गुस्सा न दिखाया करिए | छोटे मुद्दों में न उलझा करिए कि जरा-जरा सी बात में उलझ रहें हैं | जाने दीजिये, कोई जरुरत नहीं है | शुद्धता कभी अच्छी नहीं होती | इतनी-इतनी सी बात में ? अरे! झेल लो न | तुम क्यों महत्त्व दे रहे हो उसको इतना ? क्यों इतना उसको महत्त्व दे रहे हो कि पराठा थोड़ा कच्चा रह गया तो जाकर के शिकायत करेंगे | अरे छोड़ो! क्या करना है, छोड़ो | फल खरीदे और किसी ने 20 रुपए ज्यादा मांग लिए बिल में तो उससे घंटे भर बहस कर रहे हो | अरे! छोड़ दो, जाने दो | यहाँ उर्जा नष्ट करोगे तो जहाँ उसके प्रभाव की ज़रूरत है तो वहाँ पाओगे कि कम पड़ गयी, है ही नहीं |

दिनभर क्यों छोटे-छोटे मुद्दों पर उलझते हो ? जाने दो | क्रोध की ज़रूरत है ही नहीं, ऐसे मुद्दों पर क्रोध दिखा रहे हो |

श्रोता ३ : कई बार ऐसा होता है कि छोटी-मोटी बातों में गुस्सा कर दिया तो लगता है तो बेकार में ही व्यर्थ का किया |

आचार्य जी : व्यर्थ का ही किया | क्रोध सदा बेकार है | क्रोध की कोई कीमत ही नहीं है | जब भी क्रोध करो तो जान जाओ कि बेकार की बात पे ही कर रहा हूँ | क्रोध उठता ही कामना की अपूर्णता से है | माँगा था सो मिला नहीं, तो गुस्सा आ रहा है बहुत ज्यादा और हम मांगते क्या हैं ? वही छोटा-मोटा, दो-चार रुपए, छोटी सी कोई इज्जत देदे, छोटी सी कोई वासना पूरी हो जाये| वो मिला नहीं तो खुंदक चढ़ रही है | त्याग दो इसको |

श्रोता ३ : सर आपने अभी एक शब्द बोला- इज्जत | यही सबसे बड़ा, कम से कम मेरे लिए तो बहुत ही बड़ी वजहहो जाती है जिससे बहुत मन में एकदम पूरे दिन घेरे रहता है मेरा | तो क्या करें मतलब ? इज्जत जरुरी नहीं है ? आत्मसम्मान या जो भी बोल लीजिये, क्या करें उसका ? इतने समय से तो उसी को सब कुछ माना के सब कुछ करते आये हैं |

आचार्य जी : देखिये जब आपका प्रति क्षण उसकी स्मृति में और उससे अपने रिश्ते के खयाल में बीत रहा होगा तब आप कैसे अनुमति दे पाओगे कि कोई ऐसे ही ऐरा-गैरा आकर के आपकी इज्जत गिरा दे |

श्रोता ३ : यह भी अनुभव कर लिया आज तो मतलब . . .

आचार्य जी : कैसे ? हम सब यहाँ बैठे हुए थे और मैं आपसे बात कर रहा था और मैं कह रहा था सब बिलकुल ‘शांत’ रहें, ज्यादा आवाज़ न करें और खिड़की के बाहर हमारा ‘कोहम’ कुत्ता, वो ‘शांत’ नहीं था | वो कुछ खरोच रहा है | वो शीशे पे चढ़ने की कोशिश कर रहा है | मुझे दिख रहा है यहाँ से और में कह रहा हूँ सब ‘शांत’ रहें | तुम्हारा हिलना इस सत्र का अपमान है और बाहर वो हिल भी रहा है, आवाज़ भी कर रहा है और अशांत भी है | तो मैं क्या कहूँ? हमारे सत्र का अपमान हो गया ? बोलिए ? बात समझ में आ रही है क्या कह रहा हूँ ?

आप जब ध्यान में डूबे हो और बात को समझ रहे हो तो ऐसे कोई आकर के कैसे अपमान कर जाएगा आपका ?

भले ही वो अपनी सारी कोशिशें कर रहा है, वो पूरी कोशिश कर रहा था वहाँ से | हम यहाँ रोना शुरू कर दें कि आज बड़ी बेज्जती हुई| अरे! कुत्ता आकर के बेज्ज़ती कर गया तो सोचो कितनी बेज्ज़ती होगी |

हम अपना काम कर रहें हैं | हम जहाज़ में जा रहे हैं हज़ार फिट की ऊँचाई पर, किलोमीटरों ऊपर उड़ रहें हैं धरती से और नीचे कुछ ऐसे ही बच्चे, जवान, वो गाली दे रहें हैं | बड़ा मज़ा आता है कि जहाज़ जा रहा है, उसके पीछे-पीछे दौड़ो और उसे गाली दो |

(सभी श्रोता गण हँसने लगे)

जितने जहाज़ में बैठे हैं, वहाँ रोना शुरू कर दें कि हमारा बड़ा अपमान हुआ | वो नीचे वहाँ जमीन से हमें गालियाँ दे रहे थे| ऊपर से बम गिरा दें या मिसाइल डाल दें | अरे! तुम कहाँ हो, वो कहाँ है | वो दे भी रहा है गाली तो क्या हो गया, पर उसके लिए पहले तुम्हें स्पष्ट पता होना चाहिए कि तुम कहाँ हो नहीं तो बड़ी अजीब हालत होगी कि तुम जहाज़ की खिड़की तोड़-फोड़ के, नीचे मुँह बाहर निकाल के नीचे गाली दे रहे हो |

(सभी श्रोता गण हँसने लगे)

श्रोता ३ : एक मुहावरा भी है: “*हाथी चले बजार**, कुत्ते भौंकें हजार*” |

श्रोता ४ : कई बार बहुत सी चीज़ें प्रभावित करती हैं, दिमाग पर असर डालती हैं और उस समय पर एक लकीर खींचना बहुत जरुरी हो जाता है |

आचार्य जी :

जो भी कुछ दिमाग पर असर करता है उससे बचो ज़रा सा और कुछ नहीं करना है |

और हम सब जानते हैं, इसीलिए तो कहा गया है कि ये सरलतम काम है क्योंकि ये हमें ही तो पता चल जाता है न तुरंत |

हवा में होता है, गंध में होता है कि इस जगह पर पाओं रखता हूँ, यहाँ की गंध मात्र से दिमाग भारी हो जाता है | इतना सरल है तुम तुरंत जान जाते हो | जैसे ही जान जाओ, बचो | जिस जगह पहुँचते ही मन व्याकुल सा हो जाता हो, उस जगह क्यों कदम धरते हो |

जिसकी संगत में छोटा अनुभव करो, सहम के, डर के, सतर्क होकर रहना पड़े उसकी सांगत क्यों करते हो | जिसके सामने सोच-सोच के बोलना पड़े उससे बातचीत ही क्यों करते हो ? जिसको नकली चेहरा दिखाना पड़े उसका चेहरा ही क्यों देखते हो ?

और अब क्या बोलूं, इतना आसन है और मार्ग सुविधा का है | यही कहा जा रहा है कि जो परेशान करता है, उसको छोड़ दो | यह नहीं कहा जा रहा कि कठिन व्रत करो और दुनियाभर की सारी मुसीबतें अपने ऊपर पर लेलो | कहा जा रहा है कि जहाँ मुसीबत है वहाँ मत जाओ | इतना सरल है,

सरल सही है |

बात खत्म |

जो करने में मन दुखता है वो क्यों करे जा रहे हो ? जान गए एक बार, अब सब जान गए हो कि शांति अच्छी लगती है मन को| जब जान गए हो तो क्यों घुसते हो अशांति के अड्डों में ? जा रहे हो, मिल-जुल रहे हो, संसार यही है | जहाँ देखो कि अब बात अशांति की ओर जा रही है, तुम्हें कोई नहीं रोक रहा खड़े हो जाने से, उठ जाने से; नमस्कार करो और बाहर आ जाओ |

श्रोता 5 : आचार्य जी, कल आप कह रहे थे न कि अभी तो 95% दर्द ही मिलेगा |

आचार्य जी : यही दर्द होगा जब उठ कर बहार आ रहे होगे न तो पुरानी यादें, पुराने झंझट, पुराने ढर्रे वापिस खीचेंगे; वही दर्द है | तुम तो अभी जब उठ के चलोगे तो कदम अकड़ जाएँगे | तुम्हारे लिए इतना आसान नहीं होगा कि उठ कर के चल दो| उसी को कह रहा था कि दर्द हो सकता है, पर यह ‘शुभ’ दर्द है | फिर तुम्हें वही लीचड़ गुस्सा आ रहा होगा और तुम मन को बोलोगे ड्राप इट, तो मन तो चिल्लाएगा | इसने इतना गलत काम किया है मैं ड्रॉप कैसे कर दूँ ? बदला लेना होगा | इसको इसके करे की सजा देनी होगी |

और तुम क्या हो ? परमात्मा ? करे की सजा देने आये हो ऊपर से ? जब समझाओगे अपने आप को ये बात कि सजा देनी है कि नहीं देनी है, मिलनी है कि नहीं मिलनी है; वो अपने आप हो जाएगा तू अपनी फिक्र कर | तो मन चिल्लाएगा, यही दर्द है | इसी को कह रहा था |

श्रोता 5 : आचार्य जी, वो जो कंडीशनिंग है वो उसी में घुमाएगा..

आचार्य जी : हाँ, वही है |

श्रोता 6 : आचार्य जी, तो उस समय दोनों ही तरफ अशांति..

आचार्य जी : बेटा, मन में तो उठेगी गहरी अशांति लेकिन साथ ही साथ यह बोध भी रहेगा कि सौदा मुनाफे का है | अभी तो इतनी ही अशांति भुगत रहे हैं, करेंगे तो पता नहीं कितनी होगी |

श्रोता 6 : वो ही बात है चलो तो जानो |

श्रोता 7 : क्या ऐसा नहीं होगा कि मन ये सब बातें जानकर बहाने खूब मारेगा कि यहाँ से हट जाना चाहिए..

आचार्य जी : बिलकुल, और फिर मन को कहो कि अब तू बहानो से भी हट जा | तुझे वो सब कुछ छोड़ना है न जो तेरे लिए ठीक नहीं है ? तो बहाने ठीक हैं क्या तेरे लिए ? अब चल हट बहानों के सामने से और बहानों के सामने से हटने में फिर मन नाटक करेगा | यही तो खेल है कि जो कुछ ठीक नहीं है, पता ही है| तुम्हीं ने कहा न कि बहाने हैं, जब जान ही गये हो कि बहाने हैं तो अब उनको छोड़ दो, ड्रॉप इट | जब जान ही गये कि बहाने हैं तो छोड़ काहे नहीं देते?

श्रोता 7 : पक्का-पक्का नहीं जाने का|

आचार्य जी : जब पक्का-पक्का नहीं है, तो पकड़ क्यों रखा है ? देखो कैसा बहाना है | तुम कहते हो 50-50, जब 50-50 है तो उसमे से एक 50 को क्यों पकड़ रखा है ? अरे! ज़रा दूसरे को भी तो मौका दो | पर 50-50 छोड़ो, तुम तो कहते हो कि अभी 1 प्रतिशत अनसर्टेनिटी है इसलिए नहीं कर रहा | अब बहाने कि फजीहत देखो: 99 प्रतिशत पक्का है, 1 प्रतिशत अनिश्चित है | उस एक प्रतिशत के साथ तुम बैठे हुए हो, 99 ? 99 की फ़िक्र कौन करेगा |

तुम्हारे ही यहाँ हुआ था न ? मैंने कहा था: चलो, फिर से जाएँगे कैंप में, संवाद में | तो बोले नहीं, मैंने पूछा क्यों, तो बोले मर जाएँगे | मैंने कहा कितने मर जाते हैं जो पहाड़ पर जाते हैं ? तो पहले तो बोले: सर, करीब 50 प्रतिशत मर जाते होंगे (सभी श्रोता गण हंसने लगे) , और यह कोई मज़ाक नहीं चल रहा है, हज़ार में से पाँच सौ तो मर ही जाते होंगे (सभी श्रोता गण हंसने लगे) |

पहाड़ पर जाते हैं तो हज़ार में से पाँच सौ मर जाते होंगे | यह पढ़े-लिखे इंजीनियरिंग के छात्र हैं | फिर समझाते-समझाते, उनको खींच-तान के, समझौता कर के मैं 50 पे लाया, 50 से कम तो राज़ी नहीं हो रहे थे | बोले सर पक्का, 50 तो मरते ही हैं | मैंने कहा: चलो ठीक है, 50 मरते हैं तो 5 प्रतिशत हुआ न 1000 में से ? बाकी 95 को क्यों भूल रहे हो ?

बहाने हैं| देखोगे ध्यान से दिख जाएगा कि बहाने है |

बहानों का बहाना दिखना बड़ी बात नहीं है,

*ध्यान* बहुत बड़ी बात नहीं है; वो उपलब्ध हो जाता है | छोड़ना बड़ी बात है, वो साहस बड़ी बात है | वो सहास श्रद्धा से से आएगा | दिख तो जाता है, ध्यान दिखा देता है पर श्रद्धा की कमी की वजह से ध्यान जो दिखा देता है तुम उस पर अमल नहीं कर पाते |

हम में से कोई ऐसा यहाँ नहीं है जो पूर्णतया अँधा हो | ध्यान सबको उपलब्ध है, जान सब जाते हो | जान ने के बाद चलते नहीं हो क्योंकि श्रद्धाहीन हो |

YouTube Link: https://youtu.be/ez871Hc63hc

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