विद्या और अविद्या का भेद ||आचार्य प्रशांत (2019)

Acharya Prashant

3 min
105 reads
विद्या और अविद्या का भेद ||आचार्य प्रशांत (2019)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी प्रणाम। वसंत पंचमी भारत के अलग-अलग राज्यों में मनाई जाती है और इस दिन हम देवी सरस्वती की पूजा करते हैं। देवी सरस्वती कौन हैं, और वसंत पंचमी के दिन उनकी पूजा का क्या महत्व है?

आचार्य प्रशांत: कल वसंत पंचमी का पर्व है, और ये पर्व देवी सरस्वती को समर्पित रहता है, तो लोग देवी सरस्वती के देवालयों में जाते हैं, वहाँ पर पूजा-अभिषेक करते हैं। पीत वर्ण के वस्त्रों से देवी को सुशोभित किया जाता है, और इस तरह तमाम तरीकों से, प्रतीकों से देवी के प्रति सम्मान व्यक्त किया जाता है। ये सारे प्रतीक अच्छे हैं, इन सब प्रतीकों के द्वारा हम दिखाते हैं कि हमारे मन में देवी सरस्वती के प्रति कितना सम्मान है, लेकिन इन प्रतीकों के वास्तविक अर्थ को भी समझना पड़ेगा। ये सब हम जो करते हैं, उससे थोड़ा आगे भी जाना पड़ेगा।

सरस्वती विद्या की देवी हैं, तो मैं समझता हूँ कि देवी सरस्वती के प्रति सम्मान और श्रद्धांजलि व्यक्त करने का सबसे अच्छा तरीका ये है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था में विद्या को महत्व दिया जाए।

अभी ये सुनकर आपको थोड़ी हैरत होगी, क्योंकि हम तो अपने शिक्षालयों को विद्यालय बोलते ही हैं, हम समझते हैं कि शिक्षा का मतलब ही है विद्या। लेकिन नहीं, अगर आप जो प्राचीन बोध साहित्य है, जो बात हमें बतायी गयी है, उस पर गौर करेंगी तो आपको पता चलेगा कि हर प्रकार का ज्ञान विद्या नहीं है।

सांसारिक ज्ञान जो मिलता है हमें —विज्ञान के माध्यम से, कलाओं के माध्यम से, दुनिया भर की सूचना के माध्यम से — कि कहाँ क्या चल रहा है, कहाँ की अर्थव्यवस्था कैसी है, कहाँ का संविधान, कानून, नियम-कायदे कैसे हैं, ये सब शास्त्रीय दृष्टि से ‘अविद्या’ कहलाता है। इस अविद्या का भी बड़ा महत्व है।

शिक्षा-व्यवस्था में विद्या को इस तरह से महत्व दिया जाना चाहिए कि जो बच्चा है, जो छात्र है, उसे उसके मन के बारे में पता चले — वो कौन है और दुनिया से उसका रिश्ता क्या है — उसे इस बारे में पता चले। उसे पता चले कि अगर वो दुनिया की ओर भागता है, दुनिया से सम्बन्ध रखता है, दुनिया में कुछ हासिल करना चाहता है तो क्यों करना चाहता है।

शिक्षा-व्यवस्था में विद्या को अगर सही स्थान नहीं दिया गया, तो शिक्षा-व्यवस्था लाभ कम देती है, हानि ज़्यादा देती है। तो इस बात को अगर हम ध्यान में रखकर के वसंत पंचमी मनाएँगे, तो बहुत शुभ रहेगा।

प्र: धन्यवाद आचार्य जी।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories