प्रश्नकर्ता: सर मेरा जैसे क्वेश्चन था कि आप बचपन में जैसे आप इतना पढ़ाई में अच्छे थे। आप हर दृष्टिकोण से अच्छे थे। मतलब स्पोर्ट्स में भी बहुत अच्छे अव्वल दर्जे के थे। तो सर और आपकी मदर को भी कई बार मदर क्वीन के नाम से पुरस्कार कर दिया गया है।
सर जैसे हमारी अभी जो जेनरेशन है उनको कुछ भी छोटी सी एकम्प्लिशमेंट में उनको बहुत घमंड आ जाता है। और सर आप तो हमेशा मेक फॉरवर्ड मेक फॉरवर्ड रहे। मतलब आपने इतना सब कुछ क्लियर करा आई.आई.एम भी क्लियर करा। फिर 28 साल में कॉर्पोरेट दुनिया से आपने रिटायरमेंट ले लिया जब सब लोग अपना करियर बना रहे होते हैं।
तो सर आपको ऐसी क्या चीज मोटिवेटेड रखती है? और सर दूसरा यह है कि अभी आज की पीढ़ी कैसे अपने आपको इस ईगो से दूर रखे कि हम जो है हम ही सब कुछ हैं।
आचार्य प्रशांत: अब बेटा ये किताब है। कभी मैंने कुछ बोला कुछ लिखा उससे यह किताब बन गई। अब मैं आपके सामने आऊं और मैं कहूँ कि मुझे जो करना था पाना था पा लिया। देखो यह रही किताब। यह रही मेरी उपलब्धि एकम्प्लिशमेंट और मैं फिर यहाँ पर खड़ा होकर के 10-15 मिनट हुई कुछ हल्की-फुल्की बकवास करके चला जाऊं। मैं कहूँ मुझे अब कुछ करने की जरूरत क्या है? इतना कुछ तो मैंने कर दिया और मेरे नाम के साथ अब यह लगा हुआ है। वह लगा हुआ है। मेरे पीछे लंबी कतार आप लिख सकते हो। ऐसा किया वैसा किया। कुछ भी नहीं।
मैं जो आज कर रहा हूँ वो शून्य से शुरू कर रहा हूँ ना। तो जैसे आज आप यहाँ शून्य से शुरू कर रहे हो और आपके लिए ज़रूरी है कि आप अच्छे श्रोता होकर के सुनो। वैसे ही मैंने पीछे क्या किया वो आज मेरे काम नहीं आएगा।
आज मेरे लिए ज़रूरी है कि मैं शून्य से शुरू करके एक अच्छा वक्ता बनकर आपसे बात करूं। और क्या आप मुझे माफ करोगे अगर मैं कह दूं कि मैं बड़ा आदमी हूँ? मैंने इतना कुछ कर रखा है। मुझे अब और कुछ करने की क्या जरूरत है? हर दिन नया दिन होता है। हर पारी एक नई पारी होती है। पिछली क्लास में अच्छा रिजल्ट आ गया। क्या फर्क पड़ता है?
अगला एग्जाम सामने है। पिछली क्लास में अच्छा रिजल्ट आ गया तो क्या होता है? और बात एग्जाम की भी नहीं क्योंकि एग्जाम भी होता है 3 महीने 6 महीने में एक बार। हर दिन एक नई चुनौती है जिसमें आपको पुनः नए सिरे से उत्कृष्टता हासिल करनी है।
उत्कृष्टता माने एक्सीलेंस।तो देयर इज नो रेस्टिंग ऑन पास्ट लॉरेल्स कि पीछे मैंने ऐसा कर लिया मैं तो अच्छा हो गया। ऐसे थोड़ी होता है। हम 10th की बात कर रहे थे ना कि बोर्ड टॉप किया उसके बाद 11th में पहुंचा तो शहर बदल गया। लखनऊ से गाजियाबाद आ गया।
वहाँ जो पहला ही एग्जाम था क्वार्टरली। उसमें कुछ डेटशीट देखने में गड़बड़ कर दी तो एक एग्जाम मिस ही कर दिया। जब मिस कर दोगे तो रिजल्ट में क्या लिखा आता है? कुछ भी नहीं। अब आप कहाँ तो दुनिया जीत जात के आ रहे हो, भारत में ही आपकी थर्ड रैंक थी। तो वो रिजल्ट कार्ड आया उसमें कुछ नहीं लिखा हुआ है।
ये माता जी बैठी हैं। उन्होंने रिजल्ट कार्ड लिया मेरी को देखा और रिजल्ट कार्ड फाड़ दिया और अभी यह सब कब हो रहा है? यह हो रहा है सन 93 के अगस्त या सितंबर में और सन 93 के ही अप्रैल में अखबारों पर छाए हुए थे। उनकी क्लिप्स आज भी घर पर रखी हुई हैं। सार्वजनिक अभिनंदन हो रहा था। यूपी के गवर्नर आकर के बड़े स्टेज पर हजारों बैठे हुए हैं। उनके सामने इनको माता जी को एक तरफ फल फूल रखे गए थे तराजू में। और दूसरी तरफ तराजू में इनको बैठाया गया था। यह मदर क्वीन है भाई।
और यह कौन कर रहे हैं? यह गवर्नर ऑफ यूपी कर रहे हैं। और साथ में चीजें दी गई हैं। साइकिल दी जा रही है। एक नहीं तीन-तीन बार साइकिल दी जा रही है। और चीजें ये वो घड़ी घर में एक एकदम पुराना सड़ा सा मैंने कैसरॉल देखा। मैंने कहा इसको क्यों बचा रखा है आपने? बोलती है तुमको दिया था यूपी के गवर्नर ने इसलिए। तो ये सब अप्रैल में चल रहा है। और उसी साल के अगस्त नवंबर में वही खड़े हो मेरा रिजल्ट कार्ड लिया ऐसे फाड़ दिया।
करा होगा तुमने अप्रैल में कुछ। बताओ अगस्त में क्या करा? अप्रैल में जो करा वो अगस्त में काम नहीं आएगा। हर दिन एक नया दिन है। गंदा होने का, हार जाने का, झुक जाने का, भ्रष्ट हो जाने का खतरा हर दिन है। आलस नहीं करना है। बहुत अपने आप पर भरोसा नहीं करना है।
माया बोलते इसको। माया महा ठगिनी हम जानी ठीक। जब तुम्हें लगता है कि तुम जीत गए वो हंस रही होती है और तुम्हें हरा देती है। हार से तो सावधान रहना ही है जीत से और ज़्यादा सावधान रहना है। मेरे लिए आज भी हर दिन एक नया दिन होता है जिस दिन मैं बिल्कुल शून्य पर खड़ा होता हूँ जीरो पर। मुझे नहीं याद होता कि मेरे पास पीछे कुछ है, नहीं है, क्या है मालूम नहीं। तुमसे बात कर रहा हूँ मैं उतनी ही गंभीरता से कर रहा हूँ जितना मैं पिछली रात बात कर रहा था।
कल लंबा चौड़ा भगवद्गीता पर सत्र था। नहीं संत सरिता थी। वहाँ दो-तीन घंटे तक रात में बात चली है। करीब रात १२.३०- १.०० तक चली होगी। मैं ये थोड़ी कह सकता हूँ कि कल मैं इतनी ऊंची बात करके आया हूँ। इतिहास पुरुषों की बात और अभी एक छोटा सा बच्चा आया है। ये दसवीं का है। मुझे यहाँ पर अपने आप को पूरी तरह उड़ेलने की क्या जरूरत है? मैं यहाँ हल्के हाथ से काम चला लेता हूँ। ऐसे ही कोई सतही सा हल्का-फुल्का जवाब दे देता हूँ। बच्चा ही तो है मान जाएगा क्या फर्क पड़ता है?
नहीं। ज़िन्दगी का छोटा काम हो, बड़ा काम हो, कोई भी काम हो, वो काम तुम कर रहे हो ना, तो उस काम में तुम्हारी गरिमा दिखाई देनी चाहिए। हर छोटे-छोटे काम में भी तुम्हें कहना है उत्कृष्टता। छोटा काम भी कर रहा हूँ तो उसमें वो एक्सीलेंस झलकनी चाहिए और हर दिन झलकनी चाहिए। आखिरी सांस तक झलकनी चाहिए। मरेंगे भी शान से। जिए अगर शान से हैं तो ये थोड़ी है कि मरते वक़्त अपनी गरिमा त्याग देंगे। ऐसा नहीं है।
प्रश्नकर्ता: सर बस एक क्वेश्चन और। सर जैसे मैंने आपको एक साल से फॉलो कर रखा है। तो सर आपका जैसे एनजीओ बहुत सारे वीगन लाइफस्टाइल ये सब कि आप एनिमल्स का कंजर्वेशन करते हो। सर जैसे मेरे बहुत सारे फ्रेंड्स हैं और मैं पर्सनली एक वेजिटेरियन हूँ और मेरे जैसे मुस्लिम फ्रेंड्स भी हैं तो वो लोग कहते हैं कि ऐसे क्यों करते हो?
तो उन्होंने कहा कि जैसे हमारे जो पूर्वज रह चुके हैं। उनके वक़्त में ऐसा कुछ था नहीं कि वो खा सके, वेज खा सके। तो उन्हें यह खाना पड़ा मर मतलब फिर तो उनकी डेथ हो जाती। तो इसलिए हम लोगों ने अब ऐसा चले आ रहा है तो हम अभी भी कर रहे हैं। तो सर इसका मतलब इसका कोई उनको मेरे पास कोई रिलाएबल आंसर है नहीं उनके लिए। क्योंकि अब उनको हम कैसे चेंज करें जब इतने समय से आ चुकी है। तो सर आप इसके बारे में कुछ कह दो तो…
आचार्य प्रशांत: पूर्वज तो पेड़ के ऊपर भी रहते थे। पूर्वज तो ब्रश भी नहीं करते थे। पूर्वज तो जंगल से आए हैं। जो जंगल में होता था वो सब करते थे पूर्वज। तुम्हें उन पूर्वजों जैसा ही करना है तो Twitter Facebook क्यों चलाते हो? यह एजुकेशन क्यों ले रहे हो? कार पर क्यों चलते हो? यह मकान क्यों खड़े करे हैं?
माने जितनी अपनी हवस है उसको पूरा करने के लिए पूर्वजों का बहाना उठा लो। जब तुम पूर्वजों जैसा ही होना चाहते हो तो फिर जंगल जाओ ना। वो जंगल से आए हैं। और पूर्वजों को तो कोई वैक्सीन भी नहीं लगती थी। पूर्वजों के पास इतनी दवाइयां भी नहीं थी। अलग ही तरह की व्यवस्था चलती थी। फिर उस व्यवस्था पर भी वापस लौट जाओ। पूर्वजों के पास तो शौचालय भी नहीं होते थे। उनको जहाँ होता था वहीं खड़े हो के।
तुम काहे के लिए कहते हो कि व्हेन विल द रेस्ट रूम बी फ्री? जो बोले कि मैं पूर्वजों जैसा हूँ तो उसको बोलो यहीं पैंट उतारो। यहीं पे। पूर्वजों का तो ऐसे ही चलता था जैसे जंगल के जानवर होते हैं। पूर्वज एक दूसरे से मिलते थे। तो नमस्ते दुआ सलाम थोड़ी करते थे। कभी दो जानवरों को देखना जब वो आपस में मिलते हैं तो क्या करते हैं। वो एक दूसरे को सूंघते हैं। वो सूंघा करो एक दूसरे को और बहुत गड़बड़ तरीके से सूंघते हैं। एक दूसरे को पहचानने के लिए वो।
तो जो कोई बोले कि हम पूर्वज जैसे हैं उसको कहना है कि फिर तू दूर रह और तुम दोनों एक दूसरे को सूंघो। यही तुम्हारा आपसी इंट्रोडक्शन है। और पूर्वजों के पास तो भाषा भी नहीं थी। कि भाषा का भी क्रमशः विकास हुआ है। तो भाषा में भी मत बोलो और कपड़े भी नहीं थे। सबसे पहले तो हम बड़े मायावी लोग होते हैं। जो हमारी कामना होती है ना डिजायर उसको पूरा करने के लिए हम किसी भी तरह का बहाना बना सकते हैं। कोई भी तर्क ला सकते हैं।
बहुत ज़रूरी होता है नजर रखना अपने आप में कि मेरे सारे तर्क आर्गुमेंट्स आ कहाँ से रहे हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि वो बस इस ज़िद से आ रहे हैं कि मुझे तो एक बेजुबान जानवर को मारना है और उसका मांस चबाना है क्योंकि मुझे स्वाद आता है। अपने स्वाद की हवस के लिए, ललक के लिए तुम खून बहाने को तैयार हो। तुम झूठ बोलने को तैयार हो। तुम लड़भड़ जाने को भी तैयार हो। यह इंसानियत का तो नहीं सबूत है।
प्रश्नकर्ता: थैंक यू सर।
आचार्य प्रशांत: यह बात बिल्कुल अधूरी छोड़कर जा रहा हूँ क्योंकि बात कभी पूरी नहीं होती। पूरा तो ज़िन्दगी को ही होना होता है। ज़िन्दगी को आपको पूरा करना है। कभी बिल्कुल आस टूटने लगे, भरोसा मिटने लगे, लगे कि घुटने टेक ही दे और बाकी सब उपाय काम ना आ रहे हो तो एक उपाय ये और कर लीजिएगा याद कर लीजिएगा कि एक व्यक्ति है जो कम से कम अभी घुटने नहीं टेक रहा है।