आपकी असली ताक़त || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

Acharya Prashant

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आपकी असली ताक़त || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

आचार्य प्रशांत: दुनिया की कुल संपत्ति दो-चार प्रतिशत महिलाओं के पास है, पच्चानवे प्रतिशत पुरुषों के पास है। दुनिया की संसदों में और विधान सभाओं में स्त्रियों का अनुपात पाँच-दस प्रतिशत, नब्बे प्रतिशत कौन हैं? पुरुष हैं। दुनिया की कंपनियों में, शीर्ष पदों पर जो लोग हैं—'सी एक्सओज़' बोलते हैं जिनको, सीईओ, सीओओ, सीटीओ—इनमें महिलाओं की भागीदारी कितनी? पाँच-दस प्रतिशत, नब्बे प्रतिशत पुरुष हैं। लेकिन सुंदरता बढ़ाने वाली चीज़ों में महिलाओं की भागीदारी कितनी? वहाँ नब्बे प्रतिशत; वहाँ पुरुष बस दस प्रतिशत हैं। तुम्हें इन में सीधा-सीधा संबंध नहीं दिखाई पड़ रहा?

ये जो देह की सुंदरता है, जिसकी तुम बात कर रही हो, यही स्त्रियों का बहुत बड़ा बंधन है, और जब तक स्त्री अपनी देह की प्राकृतिक सुंदरता के बंधन से आगे नहीं बढ़ेगी, तब तक वो संसार में अपनी हस्ती, अपना वजूद, अपनी ताकत स्थापित नहीं कर पाएगी। आ रही है बात समझ में?

ज्ञान है आपकी असली ताकत; आपका कौशल आपकी असली ताकत है; आपने दुनिया कितनी देखी है, आपका अनुभव कितना है, ये आपकी असली ताकत है।

ये थोड़े ही कि आपका पुरुष गाड़ी चला रहा है और आप उसकी बगल की सीट में बैठकर के, सामने आईना खोल करके—जो सनशील्ड होती है न ड्राइवर के बगल वाली सीट पर, उसको ऐसे पलटो तो उसमें एक छोटा सा आईना लगा होता है। तो पुरुष महोदय गाड़ी चला रहे हैं और बगल में सुंदर-सुंदर देवी जी बैठी हैं, वो क्या कर रही हैं? वो उसमें बाल संवार रही हैं और ऐसे-ऐसे होठों पर लाली घिस रही हैं। गाड़ी चलाने वाला कौन? और वो गाड़ी है भी किसकी? पुरुष गाड़ी खरीद रहा है, पुरुष गाड़ी चला रहा है, और देवी जी का काम है सुंदरता निहारना।

आप सुंदरता ही निखारती रह जाओगी तो आप जीवन कब निखारोगी अपना? लेकिन मेरी बात के विरुद्ध कुतर्क मत करने लग जाना। जल्दी से कूदकर मेरा विरोध मत करने लग जाना। मेरी बात से अक्सर स्त्रियों को ही बड़ी आपत्ति रहती है। खासतौर पर जो लिबरल स्त्रियाँ हैं उनको। वो कहती हैं - "हमारे ख़िलाफ कुछ बोलो ही मत; हम बिल्कुल सही हैं"। और एक और उनका ज़बरदस्त तर्क रहता है - "तुम स्त्री हो क्या? तो तुम्हें हमारे मन का क्या पता? हाउ इज़ अ मैन टॉकिंग अबाउट वीमेन्स इश्यूज़?" ये तो गज़ब हो गया!

हर तरीके की ताकत अर्जित करो। दूसरे की गाड़ी में बगल में बैठ कर के लिपस्टिक घिसना ना ताकत की बात है ना गौरव की बात है, और इसमें कोई सुंदरता भी नहीं है। गाड़ी तुम्हारी होनी चाहिए। गाड़ी तुम्हारी होनी चाहिए, स्टेरिंग भी तुम्हारे हाथ में होना चाहिए। गाड़ी कहाँ को जानी है, इसका फैसला भी तुम्हें करना चाहिए। ये है सौंदर्य। और गाड़ी कहाँ को ले जानी है, ये फैसला करने का बोध भी तुम्हारे पास होना चाहिए। ये नहीं कि - "मेरी जहाँ मर्जी होगी मैं वहाँ लेकर जाऊँगी। मैं तो आज की नारी हूँ। मुझे कोई रोके नहीं, मुझे कोई टोके नहीं"। नहीं, मन की उच्श्रृंखलता को, मनचले हो जाने को, मनमर्जी चलाने को आज़ादी नहीं कहते।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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