आज नॉन-वेज खाने का मन है? || नीम लड्डू

Acharya Prashant

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आज नॉन-वेज खाने का मन है?  || नीम लड्डू

“आज ज़रा नॉन-वेज (माँस) खाने का मन था!” अरे! नॉन-वेज क्या होता है? सीधे बोलो, “आज किसी की जान लेने का मन था। आज किसी की गर्दन पर छुरी चलाने का मन था।“ पर ये बात बोलोगे तो तुम्हें ही अच्छा नहीं लगेगा। तो कहते हो, “चलो जी थोड़ा नॉन-वेज खा कर आएँ!” क़त्ल को बड़ी आसानी से छुपा गए। क्या खूबी है।

क़त्ल भी कर डाला और गुनाह भी नहीं हुआ। ये सिर्फ़ इसलिए है क्योंकि ज़िंदगी में प्रेम नहीं है। बहुत कमी है प्रेम की। पशु से क्या, इंसानों से भी कभी प्रेम नहीं हुआ। तुम्हें कभी किसी से भी सच्ची मोहब्बत हो जाए, उसके बाद माँस नहीं खा पाओगे। कभी किसी मुर्गे से या बकरे से दोस्ती कर के देखो। उसके बाद किसी भी मुर्गे को खाना तुम्हारे लिए असंभव हो जाएगा। एक मुर्गे से दोस्ती कर के देखो, उसके बाद मुर्गा हो, बकरी हो, हिरण को, बतख हो, सब एक से लगेंगे, किसी का माँस नहीं खा पाओगे।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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