आज के समय में आदर्श (रोल-मॉडल) किन्हें बनाएँ? || आचार्य प्रशांत (2019)

Acharya Prashant

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आज के समय में आदर्श (रोल-मॉडल) किन्हें बनाएँ? || आचार्य प्रशांत (2019)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, आज के समय में हमारे जीवन में रोल-मॉडल (प्रेरणास्रोत) अनुपस्थित हैं। घर में, ऑफिस में, ऐसा कोई नहीं दिखता जिसको मैं अपना रोल-मॉडल मान सकूँ।

आचार्य प्रशांत: रोल-मॉडल (आदर्श) क्यों नहीं हैं? रोल-मॉडल , जैसा युग है वैसे ही हैं। कौन कह रहा है कि रोल-मॉडल नहीं हैं? आज कुछ लोगों के पास जितना पैसा है, उतना कभी रहा है? और वो सारे नाम आप जानते हैं जिनके पास पैसा है। आप को क्या लग रहा है, वो रोल-मॉडल नहीं हैं? इतिहास में कभी किसी के पास इतना पैसा नहीं रहा, जितना आज कुछ लोगों के पास है। तो ये रहे *रोल-मॉडल*।

प्र: धर्म के रास्ते पर कह सकते हैं कि कोई रोल-मॉडल नहीं है।

आचार्य: धर्म के रास्ते पर भी हैं एक-से-एक रोल-मॉडल * । उनके पीछे लाखों नहीं, करोड़ों चल रहे हैं। तो कौन कहता है कि * रोल-मॉडल नहीं हैं वो?

सब हैं, पर वैसे ही हैं, जैसा ये युग है। अँधा ये युग है, अधर्म का ये युग है, तो जितने अधर्मी हैं वही सब रोल-मॉडल बने बैठे हैं। और लोग उनको पूज रहे हैं।

अखबार को उठाईए न, देख लीजिए कि किनका नाम छाया हुआ है। वही रोल-मॉडल हैं सब। कोई भी न्यूज़ वेबसाइट खोल लीजिए, और देख लीजिए कि किनकी खबरें आ रही हैं, और किनकी तस्वीरें छप रही हैं। और क्या होगा उन ख़बरों को पढ़ने वालों का, और उन तस्वीरों को देखने वालों का।

थोड़ा विचार कर लीजिए।

और अब ये भी नहीं है कि आप उन तस्वीरों को तब देखेंगे, जब आप उन तस्वीरों की माँग करेंगे। अब तो वो खबरें, वो तस्वीरें, आपके गले में हाथ डालकर ठूसी जाती हैं कि – “लो, देखो। देखनी पड़ेंगी।” आप पढ़ना चाह रहे होंगे समाचार, और वेबसाइट आपसे पहला सवाल करेगी – ‘इन दोनों में से कौन ज़्यादा कामोत्तेजक है?’ और दो अर्धनग्न कामिनियों के चित्र आपके सामने लटका दिए जाएँगे। हो सकता है आप वहाँ पर यूँ ही कोई साधारण-सी चीज़ पढ़ने गए हों। और ये मुद्दा आपके ज़हन में ठूस दिया गया कि – “बीबा और शीबा में ज़्यादा हॉट कौन है?”

आदर्शों की कहाँ कमी है। जो छोटी बच्चियाँ देख रही होंगी, वो क्या कहेंगी? एक कहेगी, “बीबा बनना है”, एक कहेगी, “शीबा बनना है।” मिल गए न आदर्श।

कितना भारी प्रश्न है, यक्ष प्रश्न है ये। इस युग का सबसे केंद्रीय प्रश्न है ये कि – “बीबा हॉट है, या शीबा?” और आप सही चुनाव कर सकें, इसके लिए आपको दोनों की एक नहीं, चालीस-चालीस तस्वीरें दिखाई जाएँगी। भई बड़ा निर्णय है, बड़ा चुनाव है, कहीं आप गलत निर्णय न कर लें, इसीलिए आपको पूरी सूचना दी जाएगी। एक-एक तथ्य खोलकर बताया जाएगा कि और करीब से देखो – किसकी कमर कैसी है, किसकी जांघें कैसी हैं, किसकी वक्ष कैसा है। और नज़दीक से देखो, ताकि तुम्हारा निर्णय बिलकुल सही रहे। गलत फैसला हो गया, तो कहीं मुक्ति से न चूक जाओ। जीवन-मरण का सवाल है भाई कि – बीबा और शीबा में ज़्यादा हॉट कौन है?

लो आदर्शों की क्या कमी है।

हाँ, पूरे अखबार में, और उन वेबसाइट में, तुम अष्टावक्र का नाम खोजकर दिखा दो। बीबा, शीबा, होलो, लोलो – ये सब छाए हुए हैं। दो-दो कौड़ी के लोग, जिनके पास जिस्म के अलावा कोई औकात नहीं, वो राजा और आदर्श बनकर बैठे हुए हैं। या फिर वो, जो पूँजीपति हैं जिन्होंने रकम इकट्ठा कर ली है। या फिर वो, जो मूर्ख नेता हैं। उन्हीं के वृत्तांत पढ़ते रहो। उन्हीं के बारे में खूब लिखा जाएगा, उन्हीं को आदर्श बनाकर स्थापित कर दिया जाएगा।

कहाँ कमी है आदर्शों की?

इस समय पर स्थिति ये है कि जो इस व्यवस्था के, इस युग के विरोध में नहीं खड़ा है, वो इसके समर्थन में है।

तो अभी निष्पक्ष, या निरपेक्ष हो जाने का कोई विकल्प है नहीं। या तो आप इसके विरोध में हैं, या समर्थन में हैं, क्योंकि विरोध नहीं कर रहे, तो इसमें भागीदार हैं। भगीदार तो हैं ही। इन्हीं का खा रहे हैं, इन्हीं का पी रहे हैं, इन्हीं के बनाए तंत्र पर चल रहे हैं। तो भागीदार तो हैं ही।

बिना कुछ किए ही भागीदार हैं।

विरोध करना है, तो कुछ अलग करना पड़ेगा।

विरोध करना है या नहीं करना है, या भागीदार रहना है, वो आप देखिए।

सबकुछ ठीक ही होता दुनिया में, समाज में, संसार में, तो मुझे क्या पड़ी थी कि मैं इस राह चलता, ये मिशन बनाता। कुछ बहुत-बहुत घातक, और रुग्ण होता देखा है दुनिया में, इसीलिए ये काम कर रहा हूँ। मोक्ष वगैरह के कारण ये राह नहीं पकड़ी है मैंने। इस तबाही के कारण ये राह पकड़ी है मैंने। ये जो बाहर महा-विनाश और अधर्म नाच रहा है, उसके कारण ये राह पकड़ी है मैंने।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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