ये लाज की, धिक्कार की बात है कि छोटे से सुख से ही खरीद लिया गया। अगर मैं छोटा आदमी होऊँगा ज़रूर, जो छोटे से सुख से बिलकुल लार टपका दी मैंने। फिर सवाल पूछते हैं अपने-आप से कि, “तू इतना गिर गया, इतनी बड़ी चीज़ हो गई तेरे लिए एक शाम की खुशी, एक रात का जोश। इतनी बड़ी चीज़ हो गई? तू कितना छोटा आदमी है कि एक छोटी सी चीज़ तुझे खरीद ले गई।“ हर छोटी चीज़ अगर मेरे लिए बड़ी हो जाए, तो मैं कितना छोटा हूँ! आदमी के भीतर अपनी एक ठसक होनी चाहिए। वैसे तुम भले ही विनम्र रह लो लेकिन जिस पल कोई तुम्हारे ज़हन पर छाने की कोशिश करे, तुम्हें लुभाए, उस पल तो तुम्हारी ठसक को बिलकुल जाग्रत हो जाना चाहिए। तुम्हें कहना चाहिए कि, “ऐ छोटे! चुनौती दे रहा है? तूने हमें कितना छोटा समझ लिया कि तूने ऐसा अनुमान अंदाज़ लगाया कि हमें जीत लेगा?”