आदर्श व्यक्ति कैसा होता है? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

8 min
38 reads
आदर्श व्यक्ति कैसा होता है? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

आचार्य प्रशांत: प्रश्नकर्ता का सवाल है कि, "एक अच्छे इंसान का एसेंस कैसा होना चाहिए?"

एसेंस तो अदृश्य है। इस सार को, एसेंस को ना देखा जा सकता है, ना बताया जा सकता है। लेकिन जो सवाल तुम पूछ रहे हो, ये हमेशा ही लोगों ने पूछा है और हमेशा ही लोग पूछते भी रहेंगे कि “आदर्श व्यक्ति कौन है? जीवन जीने का आदर्श तरीका क्या है?”

नतीजा क्या होगा जब तुम ये सवाल पूछोगे? नतीजा ये होगा कि मूल तत्व तुम्हें नहीं बताया जा पाएगा, हाँ, तुम्हें आचरण बता दिया जाएगा और तुम उस आचरण को पकड़ कर रख लोगे। देखो तुमने ख़ुद भी कहा कि ‘एक अच्छा इंसान’ और उसमें तुमने पहले ही दो-तीन व्यवसाय जोड़ दिए, तुमने कहा, ‘कलाकार’, ‘चित्रकार’।

अब होगा क्या कि तुमने पहले तो मन में एक धारणा बना ली कि एक चित्रकार है, कलाकार है, एक लेख़क है या एक वैज्ञानिक है, कुछ भी, तुमने कह दिया कि, "ये एक अच्छा आदमी होता होगा।" तुमने मन में एक छवि बना ली कि इस प्रकार के लोग अच्छे होते हैं। वो छवि तुमने निश्चित रूप से कहीं-न-कहीं से या किसी से सुन ली होगी पर तुमने बना ज़रूर ली है। अब तुम क्या करोगे?

जो उसका अंतस है, जिसको तुमने एसेंस कहा, अंतस, उसको तो तुम कभी जान नहीं सकते क्योंकि वो तुम्हारी आँखों से देखा नहीं जा सकता और तुम्हारे कानों से सुना नहीं जा सकता। तो तुम करोगे क्या? तुम ये करोगे कि तुम उसके आचरण की नक़ल करने की कोशिश करोगे। और दुनिया ने हमेशा नक़ल ही तो की है कि जो आदर्श व्यक्ति है - और वो आइडियल (आदर्श) है ये भी उन्होंने ख़ुद नहीं जाना, ये उनके लिए आईडिया (विचार) ही है, किसी और ने उनसे बीस बोल भर दिया है कि ऐसा होता है एक आदर्श व्यक्ति - तो उन्होंने उसके आचरण की नक़ल करनी शुरू कर दी। तो दुनिया में सब सिर्फ़ नकलची बने हुए हैं, जो किसकी नक़ल कर रहें हैं? आचरण की। क्योंकि अंतस को तो तुम जान नहीं सकते न, आचरण की नक़ल करना शुरू कर देते हो। तुम सोचते हो कि उसके जैसे कपड़े पहन लें, वैसी ही बातें करनी शुरू कर दें, उसके शब्दों को दोहरा दें, वैसे ही चलने लगें, वो जैसे खाता था वैसे खाएँ, वो दाढ़ी रखता था, तो हम भी रखें, अब नक़ल हो जाएगी।

तो पहली बात सवाल ऐसे मत पूछो कि, "एक आदर्श आदमी का अंतस कैसा होता है?" क्योंकि तुम आदर्श को अभी जानते नहीं। सच तो ये है कि आदर्श कह कर तुमने यही दिखाया है कि तुम किसी की नक़ल करना चाहते हो, क्योंकि आदर्श कुछ होता ही नहीं। सवाल ये मत पूछो कि, "वो कैसा है हम कैसे जानें?" मैं सवाल बदल रहा हूँ। सवाल है, "हम कैसे हैं, हम कैसे जानें?" उसको जानने के चक्कर में पड़ोगे तो सिर्फ़ उसकी नक़ल करोगे। उसको जानने के फेर में पड़ोगे तो सिर्फ़ उसके आचरण को दोहराने की कोशिश करोगे, नक़ल करोगे और उससे तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा।

सवाल है, "हम कैसे हैं? ख़ुद को जानें।" और उसमें कोई दिक्कत नहीं है। सुबह से ले कर के शाम तक जो करते हो उसी को ध्यान से देखो, रोज़मर्रा की जो तुम्हारी ज़िन्दगी है, बस उसी को ध्यान से देखो। देखो कि अगर कहीं प्रतीक्षा करते हो तो क्या बाहर खड़े हो कर शोर मचाते हो? और अगर मचाते हो तो इसका अर्थ क्या है? मन कैसा है? भुलाओ मत जल्दी से, ध्यान दो, निग़ाह रखो उस पर। होश कायम रहे कि, "ये जो मैंने किया, ये किया क्या?"

पढ़ते किस वजह से हो? कि किताब से प्यार है, पढ़ने में डूबना चाहते हो या इसलिए कि परीक्षा की तारीख लग गई है, अब डर लग रहा है, फेल न हो जाएँ? ध्यान दो अपनी रोज़ की ज़िन्दगी पर। तुम्हारे संबंधों का आधार क्या है? किस तरह से अपने दोस्त बनाते हो? इन सब बातों पर ध्यान दोगे तो अपने-आप को जान जाओगे और वो कहीं ज़्यादा ज़रूरी है बजाए इसके कि तुम कोई आदर्श बैठा लो और उस आदर्श के पीछे-पीछे चलने की कोशिश करो। उसमें कुछ नहीं रखा है। क्योंकि ऐसा मन जो ख़ुद को नहीं जानता वो किसी और को कैसे जानेगा? तुम कह रहे हो, "उसकी एसेंस कैसे जानें?" मैं कह रहा हूँ उसकी एसेंस , उसका मूल तत्व अदृश्य है। अदृश्य इसलिए नहीं है कि देखा जा ही नहीं सकता, अदृश्य इसलिए है क्योंकि तुम्हारे पास आँखे नहीं हैं। जब व्यक्ति के पास आँखें होती हैं तो सबसे पहले वो ख़ुद को देख पाता है। दूसरों को भी देखोगे तो अपनी ही आँखों से देखोगे न? किसी और को भी साफ़-साफ़ देख पाओ, उसके लिए पहले अपनी आँखों का साफ़ होना आवश्यक है। इनको साफ़ करो, भीतर जाओ, अपनी ज़िन्दगी को देखो। नक़ल के चक्कर में मत पड़ना और तुम लोग अभी जिस अवस्था में हो, जैसे तुम्हारी उम्र है, तुम में नक़ल करने की बड़ी चाह रहती है।

मैं वो परीक्षा में नक़ल करने की बात नहीं कर रहा हूँ, वो तो तुम करते ही होओगे। तुम रोज़ाना नक़ल करते हो, तुम्हारा कुछ भी ऐसा नहीं है जो निजी है, तुम्हारा है, सब कुछ नक़ल पर आधारित है। किसी और ने कर दिया इसलिए तुम भी किए जा रहे हो, किसी और ने बता दिया इसीलिए तुम भी किए जा रहे हो। इसी का नाम नक़ल है।

नक़ल मतलब झूठा। नक़ल का अर्थ सिर्फ़ कॉपी ही नहीं होता, नक़ल का मतलब होता है नकली, झूठा। जो भी तुमने समझा नहीं, सिर्फ़ पकड़ लिया है वो नक़ल है।

तुमने इस बात को बस पकड़ लिया है कि करियर के मायने क्या होते हैं। करियर शब्द के क्या मायने हैं, तुमने इस बात को पकड़ लिया है, इसी वजह से तुम यहाँ पर हो। मैं कह रहा हूँ नकली है, यही नक़ल है। तुमने नहीं जाना कि शिक्षा के क्या मायने हैं, बस बैठे हुए हो, यही नक़ल है। तुमने धर्म को कुछ समझा नहीं पर जबसे पैदा हुए हो तुम्हें बता दिया गया है कि हिंदू हो या मुसलमान हो और तुमने पकड़ लिया है, यही नक़ल है। और उसी नक़ल से तुम्हारे आदर्श भी निकल कर आते हैं और उम्र तुम्हारी ऐसी है कि प्रभावित हुए ही जाते हो, हुए ही जाते हो।

तुम देखो जा कर कि फेसबुक पर तुम्हारी जैसी फ़ोटो रहती हैं, वो क्या हैं? क्या तुम नक़ल नहीं कर रहे वाकई? अगर साफ़ आँख से देखोगे तो तुम्हें उसमें दिखाई देगा कि इसमें मैं कहीं नहीं हूँ, इसमें सिर्फ़ दूसरों की छाया है। ऐसे दूसरे जिनको मैंने बहुत ऊँचा, बहुत उन्नत आदर्श बना लिया है, बस उनकी नक़ल है यहाँ पर। सिर्फ़ हमारे आचरण में ही नक़ल नहीं है, हमारे मन में भी नक़ल घुसी हुई है, बाहर तो नक़ल है ही। ये हर युग में होता है कि तुम बाल कैसे कटा रहे हो और कपड़े कैसे पहन रहे हो, ये सब कुछ इस बात से निर्धारित होता है कि बाहर क्या चल रहा है। मैं कह रहा हूँ कि दुर्गति इतनी ही नहीं हो रही है, मन में क्या चल रहा है, इसमें भी दुर्गति चल रही है। सब इंजिनियर बनना चाहते हैं, तुमने भी नक़ल कर ली, "हम भी बनेंगे!" तुम में से बहुत लोग छोटे शहरों से होंगे, हो सकता है कईं गाँव से भी हों। अब यहाँ पर आते हो और देखते हो कि सब लोग किस तरह से जी रहे हैं और तुम सोचते हो कि, "हम भी यही कर लें।" उसमें तुम्हारी अपनी समझ कहाँ है? अब गाँव में मॉल नहीं होते, गाँव में और बहुत सारी चीज़ें नहीं होतीं, तुमने यहाँ पर आ कर देखी होंगी और तुम चल देते हो उनके पीछे।

ये जो नक़ल से भरा हुआ जीवन है, ये जो नकली, झूठी ज़िन्दगी है, ये तुम्हारे किसी काम की नहीं है। ये क़रीब-क़रीब एक मुर्दा ज़िन्दगी है। तो दूसरों के बारे में नहीं पूछेंगे, अपने-आप को देखेंगे और असली रहेंगे।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories