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श्रीमद्भगवद्गीता भाष्य (भाग 1) [Hardbound]

श्रीमद्भगवद्गीता भाष्य (भाग 1) [Hardbound]

अध्याय 1-4, प्रमुख श्लोकों पर आधारित भाष्य
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Book Details

Language
hindi
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610

Description

श्रीमद्भगवद्गीता कोई शाब्दिक चर्चा या सैद्धान्तिक ज्ञान मात्र नहीं, बल्कि रणक्षेत्र में खड़े एक योद्धा को सम्बोधित शब्द हैं।

गीता का जन्म शान्त मनोरम वन या आश्रम में नहीं, रणक्षेत्र में हुआ है। अर्जुन जीवन से विरक्त शिष्य नहीं जो संसार त्यागकर कृष्ण के पास आए हों। अर्जुन के सामने एक तरफ़ धर्म है तो दूसरी तरफ़ सम्बन्धियों और गुरुजनों का मोह; बड़ा कठिन है निर्णय लेना कि अपनों पर बाण चलाएँ या नहीं। कृष्ण के समक्ष एक ऐसा हठी शिष्य है जो सुन तो रहा है, पर समझने को बहुत तत्पर नहीं। एक दृष्टि से देखें तो भगवद्गीता श्रीकृष्ण के अर्जुन के अज्ञान के प्रति संघर्ष की गाथा है।

इस संघर्ष में श्रीकृष्ण के शस्त्र हैं वेदांत के सूत्र और सिद्धांत। गीता वेदांत की प्रस्थानत्रयी का प्रमुख स्तम्भ है। उपनिषदों के महावाक्य ही गीता में अत्यंत रोचक व व्यावहारिक रूप से उद्भूत होते हैं।

हमारी भी स्थिति अर्जुन से अलग नहीं है; आम पाठक अर्जुन की स्थिति में अपनी छवि देख सकता है। यही बात हमारा एक विशिष्ट नाता जोड़ती है गीता से।

आचार्य प्रशांत का 'श्रीमद्भगवद्गीता भाष्य' गीता का विशुद्ध वेदांतसम्मत अर्थ आप तक ला रहा है। एक-एक श्लोक की व्याख्या में शुद्धता को ही केंद्रीय वरीयता दी गयी है।

प्रस्तुत पुस्तक में श्रीमद्भगवद्गीता के प्रथम चार अध्याय के मुख्य श्लोकों की विस्तृत व्याख्या संकलित है।

Index

1. अर्जुन की असल समस्या का उद्घाटन (अध्याय 1, सभी श्लोक) 2. प्रकृति, अहम् वृत्ति और आत्मा का सम्बन्ध (श्लोक 2.11-2.14) 3. परिवर्तनों के मध्य आत्मामुखी रहे अहम् (श्लोक 2.15-2.24) 4. निष्काम कर्म इतना मुश्किल क्यों? (श्लोक 2.39-2.45) 5. गीता में जाति-प्रथा! (श्लोक 2.46) 6. कर्म नहीं, कर्ता को बदलो (श्लोक 2.47)
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