प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, आपने कई बार शादी के खिलाफ़ बोला है।
आचार्य प्रशांत: किसके?
प्रश्नकर्ता: शादी।
आचार्य प्रशांत: शांति?
प्रश्नकर्ता: शादी, शादी।
आचार्य प्रशांत: इनको लग रहा है मैंने सुना नहीं था पहली बार में।
[सब ताली बजाते हैं और हँसते हैं।]
प्रश्नकर्ता: तो आचार्य जी अगर कोई महिला अकेली है और अगर किसी का परिवार नहीं है तो क्या शादी उसके लिए एक सुरक्षा नहीं बनती? मतलब क्या आपको सच में लगता है कि समाज शादी के बिना टिक सकता है?
आचार्य प्रशांत: निर्भर करता है न किस समाज की बात कर रहे हो, जैसा ये है ऐसे ही चलाना है तो इस समाज के जो नियम कायदे हैं वो भी चलाओ। और बेहतर समाज बनाना है तो लोग भी बेहतर चाहिए होंगे, उनके निर्णय, उनके कर्म, उनके संबंध भी बेहतर होंगे सीधी सी बात है। जब आप कहते हो, ‘ऐसे तो समाज ही नहीं चलेगा’ तो पूछता हूँ, ‘कौन-सा समाज, जैसा ये है?’ हाँ, जैसा ये है बिल्कुल नहीं चलेगा, जो बात मैं कह रहा हूँ अगर समझ में आ गई तो अभी जैसा चल रहा है समाज ऐसा नहीं चलेगा।
पर अगर ऐसा नहीं चलेगा इसका मतलब ये नहीं है कि नहीं ही चलेगा, ऐसा नहीं चलेगा। क्या इससे बहुत-बहुत बेहतर एक समाज नहीं हो सकता? जब आप कहते हो कि शादी का मैं विरोध करता हूँ मैं बार-बार बोलता हूँ मुझे शादी वगैरह से कोई लेना-देना सचमुच नहीं है, सचमुच नहीं है। गीता आपको पढ़ाता हूँ और वहाँ बार-बार कहा जाता है न कि कर्म को छोड़ो, पीछे कर्ता की बात करो, शादी तो एक कर्म है फेरे ले लिए, जाकर कहीं साइन कर आए, कह दिया शादी हो गई।
मेरा सवाल ये है कि पहले हम क्या समझते हैं कि आम जवान स्त्री-पुरुष जब शादी करते हैं तो वो घटना क्या घट रही है, कभी हमने पास जाकर देखा भी है कि वो जो घटना है वो क्या है। तुम वो समझ लो उसके बाद हो सकता है, कौन जाने स्त्री-पुरुष संबंधों की कोई बेहतर तस्वीर, बेहतर विकल्प सामने आ जाए। आप इसको ऐसे देखने लग जाते हो कि समाज तो ऐसे ही चलाना है। पर ये आचार्य जी बोलते हैं ऐसा ही समाज रहे शादी न हो उसमें तो फिर तो समाज में अनाचार व्यभिचार फैल जाएगा न, आपकी बात बिल्कुल सही है। लोग वैसे ही रहेंगे जैसे हैं और ऐसा रहते हुए अगर शादी नहीं करेंगे तो बिल्कुल केओस (अराजकता) हो सकता है, बिल्कुल हो सकता है, बिल्कुल मानता हूँ। ये सब ज्वालामुखी बनेंगे फटाफट विस्फोट करेंगे इधर-उधर, मारपीट मचेगी बिल्कुल मानता हूँ। पर आप भूल कर रहे हो, आप सोच रहे हो कि मैं कह रहा हूँ ऐसा ही समाज रहे बिना शादी के, नहीं, मैं ये नहीं कह रहा।
मैं इंसान को बेहतर बनाना चाहता हूँ और मैं कह रहा हूँ इंसान बेहतर हो जाएगा तो उसके सारे कर्म बेहतर हो जाएँगे, सारे संबंध बेहतर हो जाएँगे जिसमें शादी भी सम्मिलित है। आप अगर बेहतर हो तो आपके सब चुनाव बदलेंगे न, सब चुनाव बदलेंगे न? तो ये आप जो साथ बनाने का निर्णय करते हो वो भी बेहतर होगा न? और अगर हर इंसान बेहतर हो रहा तो समाज अपनेआप बेहतर हो गया न? मैं ये कह रहा हूँ आपसे। जो मैं कह रहा हूँ उसके मूल में शादी वगैरह का कोई विरोध नहीं है, उसके मूल में जो चल रहा है उसमें निहित दुख के प्रति आक्रोश है। आप कितने साल के हो?
प्रश्नकर्ता: बाईस।
आचार्य प्रशांत: बाईस साल के हो। आपको क्या आता-जाता है, आपको क्या पता है, आप शादी करने को तैयार बैठे हो। आपको क्या पता है, आप बाईस साल के थे आपको ज़िंदगी के बारे में क्या पता था, आप पच्चीस के भी थे, आप सत्ताईस के भी थे, भारत में लड़कियाँ इससे ज़्यादा नहीं बच पाती हैं। बाईस, पच्चीस, सत्ताईस उसके बाद तो..। आपको क्या पता है बताओ तो!
जब आप न स्वयं को जानते, न ज़िंदगी को जानते आप क्या करने जा रहे हो, ये आप क्या करने जा रहे हो मैं पूछ रहा हूँ। आप मुझसे पूछ रहे हो कि विकल्प क्या है, मैं कह रहा हूँ मैं तो जो बात करूँगा वो तो स्वतः उभरकर आएगी, मैं बस ये कह रहा हूँ कि अभी आप जो कर रहे हो ये देखो न कि वो कैसे हो रहा है। बाईस साल की लड़की, छब्बीस साल, पच्चीस साल का लड़का इनको आता-जाता क्या है? इनके पास सिर्फ़ रासायनिक उत्तेजना है, शरीर में हार्मोन सीक्रेट हो रहे हैं और परिवार का, समाज का और फ़िल्मों का दबाव है और एक बड़ा लालच है कि मैं कैसी भी होऊँ शादी की रात तो राजकुमारी बनूँगी न।
मैरिज तो बाद की बात है पहले तो वेडिंग डे आएगा एंड ऑन द वेडिंग नाइट एवरीबडी इज अ प्रिंसेस कितना अच्छा लगता है न प्रिंसेस बनना, एक रात की प्रिंसेस। भारत की आधी अर्थव्यवस्था ही इसी पर चल रही है लड़कियों को एक रात की प्रिंसेस बनाने में, एक रात की राजरानी उम्र भर की?
कैद। ये तुम क्या करने जा रहे हो बताओ तो!
एक व्यक्ति है एक बात बताओ यार, हॉस्टल में शेयरिंग पर रूम होता है न वहाँ भी, हम गए थे तो एक बिंदु पर आकर विकल्प दिया गया था कि भाई इसके साथ रहना भी है कि नहीं रहना है। जबकि जो शेयरिंग रूम होता है उसमें बीच में छोटा-सा पार्टीशन (बँटवारा) भी कर देते हैं ताकि अपनी-अपनी इधर-इधर प्राइवेसी रहे। एक ही गेट होता है एक ही गेट से एंटर करते हैं, उसके बाद इसका इधर, इसका इधर और वो दो चार साल की बात होती है तब भी वहाँ पर बहुत सतर्कता रखी जाती है कि मैं किसके साथ जा रहा हूँ।
आपकी ज़िंदगी में कोई अजनबी आएगा और आप कह रहे हो कि अब वो उम्र भर आपके साथ रहेगा, वो आपके बिस्तर पर घुसकर सोएगा, वो आपके शरीर में घुसकर सोएगा। या तो आप पागल हो या मैं पागल हूँ। मैं कल्पना में भी ये बात बर्दाश्त नहीं कर सकता। और आपसे कहा गया है कि एक ह्यूज एग्जिट बैरियर है इतनी आसानी से तुम एक बार संबंध बन गया तो उसको नलीफ़ाई नहीं कर सकते। ठीक है न?
भारत में हर चीज़ के लिए हम एग्जिट बैरियर (निकास विरोध) बहुत ऊँचे-ऊँचे बनाते हैं। उदाहरण के लिए आप कोई कंपनी या कॉर्पोरेट कर दो, कंपनी बनाना आसान है कंपनी बंद करना बहुत मुश्किल है, हज़ार तरीके के लॉज (कानून) हैं, कंपनी नहीं बंद होती। वैसे ही इसको लेकर, दोनों जब मियाँ-बीवी जाकर अदालत के सामने बिल्कुल नाक माथा सब रगड़ देते हैं कि हम दोनों पूरी सहमति से बोल रहे हैं हमें तलाक लेने दो तब जाकर अदालत दोनों पर कृपा करती है, ‘ओके ठीक है।’ उसमें बीच में थोड़ा भी किसी ने कुछ ऊँच-नीच कर दी, ज़रा सा आक्षेप कर दिया, आप बीस साल घूमती रहिए आपको मिलेगा ही नहीं तलाक और तलाक से न जाने और कितनी चीज़ें जुड़ी होती हैं, बच्चों की कस्टडी कहाँ जाएगी, एलिमनी का क्या रहेगा सबकुछ, प्रॉपर्टी, साझे बैंक अकाउंट है, साझी प्रॉपर्टीज हैं इनका क्या होना है।
आप इसमें प्रवेश करने जा रहे हो बाईस साल की उम्र में, आप इतने बड़े झंझट में घुस रहे हो और आप कुछ नहीं जानते, आपको कोई समझ नहीं है, आपने ज़रा सी दुनिया नहीं देखी है और आप इतनी बड़ी चीज़ ज़िंदगी में कानूनन तौर पर प्रविष्ट करा रहे हो, ये आप क्या करने जा रहे हो और आपकी पूरी ज़िंदगी अब इसी की गुलाम हो जाएगी, ये आपकी ज़िंदगी का सेंटर बन जाना है। पच्चीस के बाद, तीस के बाद आप और क्या करते हो मुझे बताओ, आपकी ज़िंदगी का सेंटर क्या होता है, यही तो? ज़िंदगी इसी काम के लिए है? बेहोशी में अनजाने में रिश्ता बना लो और फिर उम्र भर उसकी खिदमत करो। और खासकर अगर महिला हो तो बच्चे पैदा हो जाएँगे और फिर कहो, ‘अब मैं क्या कर सकती हूँ। ये भी आ गया, ये भी आ गया एक इधर भी है, मैं क्या कर सकती हूँ।’ अरे तुमने ही कुछ करा होगा तभी ये सब है, तब काहे नहीं बोला मैं क्या कर सकती हूँ! मैं रोज़-रोज़ इसका भोक्ता हूँ इसलिए जानता हूँ न, न जाने लाचारगी के कितने किस्से रोज़ मेरे पास आते हैं, रोज़ और मुझे नहीं समझ में आता कि अब इनकी मदद कैसे करूँ, अब कुछ नहीं कर पाता मैं, मना कर देता हूँ, मैं कई बार तो ऐसे करता हूँ, ‘हाँ, ठीक है, ठीक है, जाइए, सांत्वना देकर।
एक समय था आज से दस-पंद्रह साल पहले मैं इन चीज़ों से लड़ना चाहता था, मुझे लगता था कुछ हो सकता था, आज मेरे पास सिर्फ़ बेबसी है कुछ नहीं हो सकता। कुछ करना भी चाहो, उसकी मदद करना चाहो वो स्वयं इस हालत में नहीं होती कि अब वो मदद स्वीकार भी कर सके। ये एक बहुत-बहुत विचित्र और अबनॉर्मल (असामान्य) बात है जो आपको नॉर्मल (सामान्य) सिर्फ़ इसलिए लगती है क्योंकि हर कोई कर रहा है, सिर्फ़ इसलिए आपको नॉर्मल लगती है। दोस्त आप आसानी से बना नहीं लेते, दोस्त बना भी लेते हो तो कई दोस्त छः महीने, सालभर दो साल बाद छूट जाते हैं, आप ऐसे कैसे किसी के साथ ज़िंदगी भर के लिए बंध रहे हो मुझे ये बताओ, आप क्या जानते हो, आप क्या समझते हो?
मेरा बार-बार फोकस इसी पर है आप जानते क्या हो, आप समझते क्या हो। मैं इंसान की बात कर रहा हूँ, आपने चेतना के एक तल से शादी का निर्णय किया, आपकी चेतना का वो तल ही बहुत नीचे का है तो आपका निर्णय अच्छा कैसे हो सकता है! मैं कह रहा हूँ जिस बिंदु से, जिस तल से शादी का निर्णय कर रहे हो, तल उठा दो उसके बाद तुम जो भी निर्णय करो, अच्छा करनी है शादी, शौक से करो, मौज में करो।
कर दो शिक्षा व्यवस्था ऐसी कि मुझे भरोसा आ जाए कि पच्चीस साल का होते होते हमारे लड़के-लड़कियाँ भीतरी तौर पर बिल्कुल परिपक्व हो चुके हैं, उसके बाद वो करें शादी अच्छी बात है। तुम नासमझ हो तुम्हारी सारी शादियाँ, सारी गलतियाँ, सारे निर्णय, सब नासमझी में हो रहे हैं पर तुम्हें जल्दी बहुत पड़ी हुई है कि गाँठ बाँध लूँ बस, ‘बोले चूड़ियाँ, बोले घाघरा, हाय मैं हो गई तेरी साजना।’ क्या मुस्कुराहट छूटती है! हाय मैं शर्म से लाल हुई! मैं कुछ विचित्र बात बोल रहा हूँ या हमारी दुनिया विचित्र है?
और जैसे ये दुनिया चल रही है अगर ये दुनिया बिल्कुल ठीक है तो मैं पागल हूँ पर अगर मैं पागल हूँ भी तो मुझे रहना है पागल, मुझे ऐसा तो बिल्कुल नहीं होना है। क्या कर रहे हो, बाईस साल! एक तरफ़ तो तुम बोलते हो बाईस साल का लड़का, चौबीस साल की लड़की, ऐसे ही बोलते हो न? अभी उनसे मिला मैंने उनकी उम्र पूछी एक जगह पर, उम्र बता रहें छब्बीस-अट्ठाईस खुद ही बोल रहे हैं, ‘अब तो छब्बीस, अट्ठाईस में भी हम निब्बे ही कहलाते हैं।’ एक तरफ़ तो तुम्हारा ये है कि हम छब्बीस-अट्ठाईस के हो गए तब भी हम निब्बे हैं, निब्बा माने मतलब ऐसे ही अभी टीनेज कैरेक्टरिस्टिक (विशेषता) दिखाने वाला, लोकभाषा में उसका यही मतलब होता है, इमेच्योर।
तो एक तरफ़ तो तुम ये कहते हो कि छब्बीस-अट्ठाईस के होकर भी तुम अभी तीस-तीस साल वाले ऐसे रहते हैं जैसे बॉयिश गर्लिश। एक तरफ़ तो तुम अट्ठाईस , तीस के भी होकर बॉयिश और गर्लिश हो दूसरी ओर तुम इतना बड़ा फैसला और इतना इरिवर्सिबल (अपरिवर्तनीय) फैसला और इतने बड़े रेमिफिकेशन (असर) वाला, परिणामों वाला फैसला तुम बाईस, चौबीस, पच्चीस में कर लेना चाहते हो तुम इसका मतलब बताओ। ये मत बोलो, ‘ऐं! पच्चीस में नहीं तो क्या पैंतालीस में करें, बुड्ढे!’ ऐसे ही आता है।
ये मत बताओ कि पच्चीस में नहीं तो पैंतालीस में, मैं तुमसे कह रहा हूँ तुम जो कर रहे हो तुम देखो कि तुम क्या कर रहे हो। एजुकेशन तुमसे पूरी हो नहीं रही है, तुमसे दुनिया के बारे में चार बातें पूँछू तुम्हें कुछ पता नहीं है, सामान्य ज्ञान के नाम पर तुमने रील्स देखी हैं, साइंस की एजुकेशन तुम पॉडकास्ट से लेते हो, हिस्ट्री किससे पढ़नी है, एक्सप्लेनर वीडियोस आते हैं यूट्यूब पर, ये तुम्हारी जानकारी का, शिक्षा का, चेतना का स्तर है, रोल मॉडल कौन हैं तुम्हारे, सेलिब्रिटीज हैं और उसके बाद तुम्हें क्या करनी है!
ये बहुत ऊपर तक नहीं जाना है, ये ऐसे गिरेगा प्लेसिड पन इंटेंडेड। बाईस में तुम वही हो जो बारह में थी, बारह वाली बार्बी आज भी खेलती हो? बारह में अगर शादी कर दी गई होती तो बाईस में कैसा लग रहा होता? तो बत्तीस की क्या तुम वही रहोगी जो बाईस में हो? अगर बारह वाली शादी बाईस में अस्वीकार्य होती तो ये बाईस वाली शादी बत्तीस तक कैसे निभ जाएगी, बताओ। बताता हूँ कैसे निभ जाएगी, अपना गला घोंट-घोंट के निभती है।
मुझे पता है आपमें क्या तर्क आ रहे होंगे, ‘ऐसे तो फिर क्या कभी करें ही नहीं?’ एक तो हिंदुस्तान की बहुत बड़ी समस्या ये है यहाँ लड़का लड़की को छूना तो छोड़ दो देख भी नहीं पाता ठीक से अगर उसकी शादी न कराए तो। एकदम ही नालायक बिल्कुल बददिमाग बदतमीज लड़का होगा लेकिन एक काम के लिए वो ज़रूर आता है घरवालों के पास, दादा-दादी के पास, क्या? शादी करा दो। ये यूटिलिटी (उपयोगिता) तो रहती है फैमिली सिस्टम की। क्योंकि ये जिस औकात का लड़का है इसे कभी कोई लड़की छूने नहीं देगी अगर इसकी अरेंज मैरिज न कराई जाए। तो इसलिए जल्दबाजी रहती है क्योंकि भीतर से तो सब कुछ गुलगुल गुल गुलगुल हो ही रहा है और उसको मिटाने का एक ही तरीका है कि अब एक्सट्रीम स्टेप (चरम कदम) ही ले लो, शादी ही करा दो।
भाई इतना एक्सट्रीम क्यों लेना है, डेटिंग कर ले। ये आचार्य होकर के देखो वेस्टर्न सिविलाइजेशन (पश्चिमी सभ्यता) की बात कर रहा है, वामपंथी, वामाचार्य! ये विदेशियों का एजेंट है जॉर्ज सोरोज से पैसे लेता है, ये भारतीय संस्कृति को तबाह करने के लिए प्लांट किया गया है, सुना तुमने अभी-अभी इसने क्या बोला, डेटिंग! कैसे बचाऊँ मैं अपने राष्ट्र को! तुम लड़कियों का तो मैं जानता नहीं पर पुरुष की देह है इसलिए पुरुषों का जानता हूँ, जब तुम बाईस, चौबीस की उम्र तक भी कमसिन कली, कुँवारे रहते हो तो भीतर जो दाह प्रज्वलित होता है न, कहते हो और तो कोई तरीका नहीं है मुझे कोई नहीं मिलने वाली, कुछ नहीं होने वाला, दादी शादी! तो दादी की मरने से पहले एक आखिरी यूटिलिटी ये होती है कि वो शादी कराकर मरती है। इतने सारे तो स्कूल है जहाँ बहुत गर्व से बोला जाता है, ‘मात्र बालकों के लिए, राजकीय बालिका इंटर कॉलेज।’ अरे भाई, बात कर लेने दो उन्हें! ये देखिए ये अनाचार को प्रोत्साहन दे रहा है, ऐसे तो सब लड़के लड़कियाँ आपस में व्यभिचार करेंगे, वेस्ट में देखा है टीनएज प्रेगनेंसी कितनी होती हैं। वेस्ट की बुराई बेटा सिर्फ़ वही लोग करते हैं हिंदुस्तान में जिन्हें वेस्ट वाले कभी वीजा नहीं देने वाले।
ये जितने लोग बोल रहे होते हैं न अमेरिका, वेस्ट तो नरक की जगह हैं ये सारे वही हैं जिनको कभी वेस्ट की ज़मीन पर पांव रखने की इजाज़त नहीं मिलने वाली इतने ये नालायक किस्म के लोग हैं यही वेस्ट बुराई करते रहते हैं। इनके हिसाब से वेस्ट क्या है, ड्रग्स का अड्डा है, टीनेज प्रेगनेंसी का अड्डा है, उन्होंने सारा ज्ञान हमारे शास्त्रों से चुराया है और उनकी सारी संपदा हमें लूट-लूटकर आई है, जितनी बुराइयाँ हो सकती हैं वो सब वेस्ट में हैं, ये वो लोग हैं जिन्हें भारत की असली अच्छाइयाँ भी नहीं पता। न इन्हें भारत की असली अच्छाइयाँ पता है, न इन्हें वेस्ट की असली बुराइयाँ पता है। भारत की अच्छाइयों के नाम पर ये काल्पनिक अच्छाइयाँ बताएँगे कि वेदों में तो न्यूक्लियर रिएक्शन की बातें हैं और वेस्ट की बुराइयों के नाम पर नकली बुराइयाँ बताएँगे, वेस्ट में न सब-के-सब ड्रग एडिक्ट है। अच्छा, ठीक!
स्वस्थ चित्त से एक लड़का एक लड़की आपस में बैठकर बात कर रहे हैं तो इसमें क्या बुराई है। उन्हें एक-दूसरे को जानने दो, सहज संबंध विकसित होने दो, आगे चलकर के वो हमेशा के लिए साथ रहने का निर्णय कर लेते हैं तो उस निर्णय को विवाह का नाम दे दो। विवाह में कोई बुराई नहीं है पर वो निर्णय यकायक नहीं आ सकता क्योंकि आपने जो परिभाषा दी है शादी की वो बड़ी कड़ी परिभाषा है, इतनी कड़ी चीज़ में, इतनी बंधी चीज़ में किसी को ऐसे उठाकर नहीं फेंका जा सकता। आ रही है बात समझ में?
एक ओर तो कहते हो, ‘नो नो नो नो आई विल नॉट बी एन एंप्लॉई, आई विल बी फ्रीलांसर’ अच्छा फ्रीलांसर क्यों होना है? क्योंकि मैं जो एक रेगुलर जॉब की बॉंडजेस होती हैं वो मैं बर्दाश्त नहीं करना चाहता ‘आई वांट टू वर्क ऑन माय ओन टर्म्स, कभी इसके लिए काम करूँगा कभी उसके लिए काम करूँगा,’ अच्छा ओके, सो कैन यू स्टार्ट वर्किंग फॉर मी एस अ फ्रीलांसर, ‘नो नो नो नॉट राइट नाउ आफ्टर वन मंथ क्योंकि मैं शादी करने जा रहा है।’ तू जॉब में बंधना स्वीकार नहीं कर रहा है पर ज़िंदगी भर में एक व्यक्ति के साथ बंधना स्वीकार कर रहा है, तुझे दिखाई नहीं दे रहा तू क्या कर रहा है और उम्र है तेरी चौबीस।
ये चल रहा है, अब बता दो ये ठीक चल रहा हो तो ठीक हो। ये ठीक चल रहा हो तो बता दीजिए, फ्रस्ट्रेटेड वाइफ, हेनपेक्ड हस्बैंड दोनों एक-दूसरे का भेजा खा रहे हैं, बच्चे ऐसे पिल्लों की तरह पें-पें-पें-पें कर रहे हैं। हम झुन्नू-धनिया के ही चुटकुले क्यों बनाते हैं? कभी सोचा आपने इसके पीछे का मनोविज्ञान क्या है? क्योंकि हमें पता है ये चीज़ ही चुटकुले की है। सबसे ज़्यादा चुटकुले हस्बैंड वाइफ के ही तो होते हैं, वाइफ टू हस्बैंड ‘सुनो सब्जी ले आना’ हस्बैंड टू वाइफ ‘हा हा हा,’ चुटकुला, क्योंकि इनका रिश्ता ही चुटकुला है, कुछ भी करो चुटकुला ही है। चुटकुले का मतलब होता है कुछ विसंगत है, कुछ बेमेल है, कुछ एब्सर्ड (बेतुका) है, ये जो आपने रिश्ता बना दिया है न ये रिश्ता ही एब्सर्ड है तो इसलिए इस पर इतने चुटकुले बनते हैं। नहीं, पर वो फिर यू नो वो सेक्सुअल नीड्स भी तो होती हैं! इंसान हो जानवर नहीं हो, सही परवरिश हो सही शिक्षा हो तो आदमी को पता होता है कि अपने शरीर को कैसे कैरी (संभालना) करना है। आपको क्यों डर लग रहा है कि अगर लड़के-लड़कियों को आज़ादी दे देंगे तो हर गली नुक्कड़ चौराहे पर ऑरजी चल रही होगी।
ये सब संस्कृति वादियों का सबसे बड़ा डर यही है कि अगर मैंने लड़की को आज़ादी दे दी फिर ये ऐसे आँख बंद करते हैं और अपनी बेटी-बहन वगैरह की कल्पना करते हैं कि वो घर के बाहर सड़क पर नंगी लेटी हुई संभोग कर रही है और ये बिल्कुल ऐसे, मार दो इस आचार्य को! ऐसा नहीं होने वाला है, मैंने अपने मरने की बात नहीं कर रहा, मैं आपकी बेटी की बात कर रहा हूँ। वो ऐसा नहीं करने वाली क्योंकि हम जानवर नहीं है, हम मनुष्य हैं और मनुष्य को अगर सही शिक्षा दोगे तो वो काम कुत्तों वाले नहीं करने वाला।
बहुतों को लगता है कि अगर ये सब हटा दिए नियम कायदे तो इंसान तो कुत्ता-बिल्ली बन जाएगा, नहीं बनेगा। तुम्हें क्या मनुष्यता पर भरोसा नहीं है? हमारे पास जब उच्चतम हो पाने की संभावना है तो तुम्हें क्यों डर लग रहा है कि हम कुत्ता-बिल्ली बन जाएँगे, क्यों डर लग रहा है? शिक्षा दो न उन्हें कि वो अपनी चेतना को बढ़ा पाएँ, उसी चेतना के बढ़ने से कृष्ण कहते हैं कि जो नहीं होना चाहिए फिर नहीं होता, संन्यास संयम सब आ जाते हैं जब आत्मज्ञान आ जाता है। है न? तो तुम्हें क्यों लग रहा है कि लड़के-लड़कियाँ बिल्कुल वाहियात हो जाएँगे पागल हो जाएँगे हर जगह बस सेक्सुअल वायलेंस चल रहा होगा ये वो, यही कल्पना रहती है। नहीं होता ऐसा बाबा, नहीं होता, नहीं होगा।
आपका प्रश्न पहले तो इनवैलिड (अमान्य) था, मुझे शादी से समस्या नहीं है मुझे उस व्यक्ति से समस्या है जो बिल्कुल नासमझ है लेकिन एक बहुत बड़ी चीज़ अपनी ज़िंदगी में घुसेड़ रहा है, मुझे उस व्यक्ति से समस्या है। बंदा समझदार हो तो शादी करे, न करे, हम होते कौन हैं आपत्ति करने वाले! मुझे बंदे की नासमझी से समस्या है और शादी अकेली चीज़ नहीं है, अगर आपको इस 'इंस्टिट्यूशन' को 'द इंस्टिट्यूशन ऑफ मैरिज' इसको ठीक करना है तो उसके लिए पहले 'इंस्टिट्यूशन ऑफ एजुकेशन' को भी ठीक करना पड़ेगा।
अभी जैसा हमारा समाज है, जैसी शिक्षा, जैसा परिवार है उसमें इसी तरह की शादियाँ होंगी जैसे अभी हो रही हैं और ऐसे ही समाज रहेगा जैसा है, जब बदलेगा तो सबकुछ एकसाथ बदलेगा। बच्चे जैसे दिखते हो यार, इतने छोटे-छोटे हो दूहा-दुल्हन बन रहे हो, ‘बेटा कंचे खेल लो पहले मेरे साथ, फेरे बाद में लेना, आओ कंचे खेले।’ कई तो उसमें सचमुच ऐसे होते हैं कि वहाँ बैठे हो अग्नि के सामने उनको बोलो ‘पोकेमोन’ तो सच में वो उठकर आ जाएगा, तुम ब्याह करा रहे हो उसका, बाल विवाह कोई खत्म थोड़ी हो गए हैं। बाल विवाह हम मानते हैं कि आठ-दस साल का हो बारह का हो तभी कर दिया तो बाल विवाह है, अरे अंदर से तो तुम अभी भी आठ ही साल के हो चाहे उम्र बाहर से छब्बीस की है। सब बाल विवाह करते हैं, सबको सज़ा होनी चाहिए। कुछ नहीं हो सकता, मैं किसी दिन अचानक गायब हो जाऊँगा और कोई तरीका नहीं है। बोलो बोलो बोलो।
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी वैसे तो जो हमारे बड़े बुजुर्ग लोग होते हैं वो बहुत जल्दी हमें सलाह देने आ जाते हैं कुछ भी कि हमने जीवन देखा है और तो अगर हम कुछ भी कर रहे होते लेकिन जब उन्होंने शादी करके देख लिया और उन्हें पता है कि ये बंधन है और इसमें सिर्फ़ दुख और तकलीफ़ है और तो हम घर में भी देखते ही हैं, तो इसमें परिवार का क्या स्वार्थ होता है कि वो रोकते नहीं अपने बच्चों को?
आचार्य प्रशांत: क्या करते हैं इसमें?
प्रश्नकर्ता: इसमें परिवार वालों का क्या स्वार्थ होता है कि इस मामले में वो सही सलाह नहीं देते अपने बच्चों को।
आचार्य प्रशांत: उन्होने ज़िंदगी में कभी कोई विकल्प देखा ही नहीं है, उनको लगता है यही है, यही करो। भाई आपकी ज़िंदगी वही होती है जो आपकी चेतना का स्तर होता है, चेतना सेंटर है उसके चारों ओर आपका यूनिवर्स होता है अगर सेंटर इस लेवल पर है तो यूनिवर्स भी इसी लेवल पर होगा। वो यहाँ पर हैं तो उनको लगता है ये यूनिवर्स होता है उसके ऊपर कुछ हो सकता है और जब ऊपर कुछ होगा तो उसका यूनिवर्स भी अलग होगा। उसके ऊपर कुछ हो सकता है ये उनके खयाल में आ ही नहीं सकता, उनकी गलती नहीं है उनके नहीं आएगा खयाल में, उनके नहीं आएगा। और मैं कह रहा हूँ ये भी बड़ी अश्लील बात है किसी लड़की से आकर बार-बार बोलना ‘शादी कर ले, शादी कर ले।’ ये कितनी वल्गर (अशिष्ट) बात है! हम अच्छे से जानते हैं कि शादी क्या है, उसके सेंटर में सेक्स है। इस पर भी बहुत लोगों को बड़ी आपत्ति रहती है, ये आचार्य खुद सेक्स मैनियेक है बार-बार बोलता है- शादी माने सेक्स। अरे, शादी में और भी चीज़ें होती हैं- एक-दूसरे का साथ देना, जीवनभर का सहारा, बुढ़ापे की लाठी, इमोशनल अटैचमेंट।
भाई, एक कार होती है उसमें एसी भी होता है, म्यूजिक प्लेयर भी होता है तो म्यूजिक प्लेयर और एसी से थोड़ी कार डिफाइन होती है! कार की डेफिनेशन (परिभाषा) यही है कि जो चले, व्हील्स (पहियें) उसी तरीके से शादी में और दो-चार चीज़ें हो सकती हैं पर वो एक्सेसरीज (सामान) हैं, शादी में सेंट्रल चीज़ सेक्स होती है। और जो ये बोलते हैं, ‘नहीं, नहीं सेक्स के लिए नहीं शादी करी’ उनको बोलो जिससे शादी करने जा रहे हो लड़की पता चले लड़का है तो करोगे? तुम्हें पता चल जाए कि वो लड़की अनपढ़ है तब भी कर लो क्योंकि वो एक्सेसरीज है, एजुकेशन भी तुम्हारे लिए एक्सरी है तो तुम्हें पता लग जाए कि वो लड़की अपना जो और रुपया-पैसा बता रही थी उतना उसके पास नहीं है तुम तब भी कर लोगे।
लेकिन इनवायलेबल कंडीशन क्या है, अलंघ्य शर्त कौनसी है कि लड़की तो होनी चाहिए न, तुम उसके साथ बैठे हो फेरे लेने को तभी पता चले लड़की है ही नहीं लड़का है तो शादी टूट जाएगी। इसका मतलब शादी में सेंट्रल क्या होता है? जैसे गाड़ी में सेंट्रल होता है मूवमेंट, गाड़ी में और चीज़ें भी होती है म्यूजिक प्लेयर, एसी, पेसी, और पचास चीज़ें एक्सेसरीज में लगवा लो पर वो गाड़ी को डिफाइन नहीं करती, उसी तरीके से शादी में सेंट्रल चीज़ सेक्स होती है तो मैं कह रहा हूँ ये वल्गर है किसी से बार-बार पूछना शादी कब कर रहे हो, इट इज़ इक्विवेलेंट टू आस्किंग तुम सेक्स कब कर रहे हो।
क्यों पूछ रहे हो? इसी से संबंधित है? आप करोगे वही जो आपको करना है मुझको बस परेशान कर लो, दे दो भाई वहाँ बहुत सारा मामला है।
प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी, मैं बरोड़ा से हूँ और मेरा वहाँ एक ग्रुप है वीगन दोस्त हैं सारे उनको पता है कि मैं आपको फॉलो करती हूँ। वो हमेशा मुझे कहीं-न-कहीं अलग-अलग तरीके से टीज (चिढ़ाना) भी करते हैं बट दे डू रिस्पेक्ट यू तो रिसेंटली वो मुझे ऐसे टीज कर रहे थे कि आप शादी के खिलाफ़ हैं।
आचार्य प्रशांत: मैं भोला-भाला मासूम आदमी, मैंने कुछ बोला कभी शादी को लेकर, कभी नहीं।
प्रश्नकर्ता: ये मिसकनसेप्शन (गलतफ़हमी) रहा है क्योंकि शायद मुझे लग रहा है कि वो आधा-अधूरा सुनते हैं या फिर शॉर्ट से ही सुनते हैं। तो मैंने एज यूजुअल मैंने एस अ प्रोटेक्टर मैंने आकर बोला है कि ऐसा कुछ है नहीं, आपने हमेशा से ऐसे फ्री छोड़ा है कि आपको करना है तो करो, नहीं करना है तो नहीं करो, ये टोटली आपके ऊपर डिपेंड (निर्भर) करता है। एंड यू आर आल्सो ओपन फॉर लिविन रिलेशनशिप तो उनका कहना है कि आप ऐसे कैसे बोल सकते हैं क्योंकि लोग तो आजकल कैसे भी हो सकते हैं। एक इंसान अच्छा हो दूसरा नहीं हो तो फिर कैसे पता चलेगा और आप ऐसा इनकरेज कर रहे हैं तो फिर सोसाइटी में क्या ही हो सकता है, दे डू रिस्पेक्ट यू बट एट द सेम साइड दे हैव दिस कंसर्न तो मैं उनके बिहाफ़ पर ..।
आचार्य प्रशांत: वो कंसर्न रहेगी, बोला तो जो जहाँ पर होता है न उसकी कंसर्न्स भी उसी के आसपास की होती हैं। बारिश हो रही होती है तो बिल्ली को क्या कंसर्न होती है? ये थोड़ी होती है कि छत चुएगी, उसको ये कंसर्न होती है कि चूहे कहाँ गए। जो जैसा होता है उसकी चिंताएँ भी उसी के इर्द-गिर्द होती हैं तो ये तो रहेंगी।
प्रश्नकर्ता: तो इसका कुछ नहीं हो सकता?
आचार्य प्रशांत: “प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो।” ज़बरदस्ती एक नाम दे देते हो और घबरा जाते हो, लिविन लिविन लिविन, लिविन क्या होता है, लिविन माने क्या होता है?
प्रश्नकर्ता: मुझे लगता है कोई फ़र्क नहीं है। एक शादी तो सोशल एक्सेप्टेंस (सामाजिक स्वीकृति) है न। मैंने ऐसा उनको बोला है, आई मीन..।
आचार्य प्रशांत: इतना अभी बोल दिया, मैं इससे आगे क्या बोलूँ बेटा, क्या बोलूँ? दो लोग अपनी ऊँचाई से, अपनी समझदारी से दो मनुष्य संबंधित हैं, इसमें कोई तीसरा क्यों मुँह डाल रहा है? तुम्हारा लोकस स्टैंड आई क्या है, हू द हेल आर यू! हाँ, तुम आकर ये कह सकते हो कि उसके साथ-साथ मैं भी तुमसे किसी रूप में संबंधित होना चाहता हूँ। वो समझ में आता है। पर इस रिश्ते को निर्धारित करने वाले या इस पर आपत्ति करने वाले तुम कौन होते हो, फ्रीडम हमें इतना डराती क्यों है?
और मैं उश्रृंखला, उद्दंडता, उपद्रव की बात नहीं कर रहा हूँ, मैं उस स्वतंत्रता की बात कर रहा हूँ जो समझदारी के साथ आती है। पर हमें समझदारी नहीं चाहिए, समझदारी हमें डराती है तो समझदारी का जो पुरस्कार मिलता है हम उस पुरस्कार से भी वंचित रह जाने को तैयार रहते हैं। समझदारी के साथ क्या आती है? स्वतंत्रता। लेकिन समझदारी अहंकार के लिए खतरनाक होती है। तो हम कहते हैं स्वतंत्रता भले न मिले पर समझदार तो नहीं बनूँगा, मैं स्वतंत्रता को बेच खाने को तैयार हूँ पर समझ से बहुत घबराता हूँ, समझ खतरनाक है।
हम कैसे लोग हैं, क्या बोलूँ! हम डरे हुए लोग हैं और कोई बात नहीं है। बहुत ज़्यादा थप्पड़ पड़े हैं बचपन में, डर एकदम मन को विकृत कर गया है, हमारे सपने भी घबराए हुए रहते हैं।