ज्ञानी व्यक्ति कर्म में आसक्त अज्ञानियों में बुद्धिभेद उत्पन्न न करें, बल्कि वे लगन से सारे कर्मों का अनुष्ठान करके अज्ञानियों को कर्म में नियुक्त रखें।
इसका ये अर्थ मत कर लीजिएगा कि अर्जुन! ये सब कर्मासक्त लोग हैं, इनमें बुद्धिभेद मत पैदा करो, माने ये जो कुछ भी कर रहे हैं इन्हें करने दो। आरम्भ में ही कहा है कि अज्ञानी हैं ये सब और कर्मासक्त हैं — चूँकि ये सब अज्ञानी हैं इसीलिए ये वो करेंगे ही जो ये कर रहे हैं। और जब ये अभी अज्ञानी हैं, तो तुम इन्हें निष्काम कर्म की अपेक्षा दे ही क्यों रहे हो? जो अज्ञानी है, वो सकाम कर्म ही करेगा न? तो जो अज्ञानी है उसके भीतर तुम निष्कामता की उम्मीद पैदा ही क्यों कर रहे हो? मत करो।
कोई सकाम कर्म भी कर रहा हो न, तो भी उसका कर्म नहीं छुड़ाओ उससे। बस ये कर दो कि कर्म बेहतर हो जाए। तो तुम कर्म से कैसे भाग रहे हो?’
जैसे हो, वैसे जियो। जैसे हो, वैसे जियोगे तो जो हो वो सामने आ जाएगा। जब वो सामने आ जाएगा तो बेहतर हो पाओगे।
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