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संसार में रहते हुए भी संसार के लिए अनुपस्थित हो जाओ अर्जुन

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श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 5 श्लोक 10-11 पर आधारित
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2 घंटे 4 मिनट
हिन्दी
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पठन सामग्री
आजीवन वैधता
Contribution: ₹199 ₹500
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परिचय
लाभ
संरचना

योगी की रुचि कर्मफल में नहीं होती वह कर्मफल सौंप देता है ब्रह्म को। जो कर्मफल की आशा लिए होता है उसके लिए कर्मफल हमेशा एक कदम आगे रहता है।
सुख रहता है सामने बस एक आस बनकर। ऐसों का जीवन प्राणहीन और शुष्क हो जाता है और अध्यात्म में ऊबा हुआ होना महापाप है। आध्यात्म है महाभोग जैसे कोई मोमबत्ती आतुर है मशाल बनने को।

तो फिर कर्म कैसा होना चाहिए? सही काम कैसा होना चाहिए? सही काम इतना बड़ा होता है कि वह आपको परिणाम की आश्वस्ति दे नहीं सकता। वह इतना बड़ा है कि उससे प्रेम किया जा सकता है। जैसे तुम उपस्थित हो बस कर्म में, डूबे हुए हो, कर्मफल के लिए एक अनुपस्थिति बनी हुई है क्योंकि काम से ही इतना प्रेम है की अब उपस्थित होना प्रेम में बाधा है। जैसे कमल का पत्ता पानी में होते हुए भी पानी से अस्पर्शित रहता है।

इस कोर्स में श्रीकृष्ण बता रहे हैं की युक्त व्यक्ति, योगी का कर्म ही प्रेम होता है और हम सीखेंगे कि कैसे इस प्रेम को हम जीवन में उतार सकते हैं।

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