प्रकृति के गुणों से मोहित लोग त्रिगुण के अर्थात् देहेन्द्रियादि के कर्मों में आसक्त होकर के पड़े रहते हैं, ऐसे अज्ञानियों में बुद्धिभेद मत पैदा करो।3.29
हमने ग़लती कर दी इस श्लोक को अपनी ज़िम्मेदारी से हटने का बहाना बनाकर। श्रीकृष्ण कह रहे हैं, 'उन्हें विचलित मत करो, उन्हें परेशान मत करो। सिर्फ़ उनका कर्म बदलने का प्रयास मत करो, उनके कर्ता को बदलो।’ आचार्य जी के पूरे श्रम के पीछे, पूरे मिशन के पीछे गहरी श्रद्धा है कि समझाया जा सकता है, और वह समझाकर ही मानेंगे।
सच पर क्या किसी का विशेषाधिकार होता है? मोनोपॉली (एकाधिकार) है किसी की? कि फ़लाने समझ सकते हैं, फ़लाने नहीं समझ सकते, ऊँची जात के समझ सकते हैं, नीची जात के नहीं समझ सकते, औरतें नहीं समझ सकतीं, ये नहीं समझ सकते, वो नहीं; ये कौन सी बात है? सब समझ सकते हैं, सबको समझाएँगे।
भारत से कहीं-न-कहीं चूक हुई है। हमने अपने ही बहुत सारे भाइयों को मूढ़ ही घोषित कर दिया; भाइयों को, बहनों को भी, स्त्रियों को तो विशेषकर। कह दिया, 'इनको समझ में ही नहीं आता। इनको समझाने से कोई लाभ नहीं है।' और इक्के-दुक्के प्रयत्न करे गये, वो असफल हो गये, तो उन असफल प्रयत्नों को उदाहरण बना लिया गया।
आप इस मौके से न चूकें, वेदांत के पास आएं, गीता जी के पास आएं। इतनी जल्दी न हार माननी चाहिए और न किसी और को मानने दें।
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