यह दुनिया मुझे परेशान क्यों करती है? मेरे अपने मुझे धोख़ा कैसे दे जाते हैं? रिश्तों को लेकर मेरा चुनाव गलत कैसे हो जाता है?
दुनिया की चीज़ें आपको भ्रमित करने, धोखा देने नहीं आतीं; दोष आपकी आँखों का होता है। आपकी आँखें साफ़ हों तो दुनिया में कुछ ऐसा नहीं है जो आपको धोखा दे सकता है, क्योंकि भीतर धोखा खाने के लिए कोई रहेगा ही नहीं। दूसरा कोई तुम्हारा नुक़सान तब करेगा न जब उसे कुछ मिलेगा नुक़सान करने के लिए। कुछ मिला ही नहीं, नष्ट किसको करते; कोई मिला नहीं।
प्रकृति के तत्वों को आप आत्मा का दर्जा दिए देते हैं और फिर सोच रहे हैं, ‘अरे! इनमें ऊँचाई क्यों नहीं है, इनमें स्पष्टता, इनमें सत्यता क्यों नहीं है?’ कैसे होगी! आप अभी भी समझ नहीं पा रहे हैं कि वो बस प्रकृति के जीव-जंतु हैं, आप उन्हें न जाने क्या मान रहे हैं।
जो जितना प्राकृतिक होता है, जो जितना ज़्यादा प्रकृति के तल पर जी रहा होता है, वो उतना ज़्यादा अपने भीतर की अंधी वृत्तियों का ग़ुलाम होता है। उसके भीतर से एक ज़बरदस्त आवेग उठता है और वो उसको बहा ले जाता है। बहना नहीं होता जनाब, जानना और समझना होता है।
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