ज्ञान, सांख्य, और आत्मज्ञान, संन्यास और कर्मसंन्यास इनको एक पढ़ना है। और योग, कर्मयोग और निष्काम कर्म योग इनको एक पढ़ना है। श्रीकृष्ण कहते हैं इन दोनों में कोई विभाजन नहीं है।
कृष्ण कहते हैं कि कर्मयोग के बिना कर्मसंन्यास दुख देगा। आम संसारी एक स्तर का जीवन जी रहा होता है। बहुत लोग संन्यास का अर्थ यह मानते हैं कि घर गृहस्थी, बीवी बच्चे छोड़ देना ही संन्यास है। कृष्ण साफ कहते हैं कि अगर कर्मयोग के बिना कर्मसंन्यास पकड़ लिया तो आपका जीवन एक संसारी से भी बद्तर हो जाएगा। पुराने ढर्रे को जो छोड़ता है बिना योग में डूबे वह दुख ही पाता है।
अगर आप पुराने को हटाएंगे बिना नए को लाए तो मन खाली स्थान को किसी कचरे से ही भर देगा। जब तक तुम आनंद को अनुमति नहीं दे देते तब तक तुम छोटे सुख नहीं त्याग सकते हो।
तब श्रीकृष्ण हमें समझाते हैं कि त्याग बहुत अच्छी चीज़ है तब जब किया न जाए हो जाए। जीवन में इतना ऊंँचा और सुंदर कुछ आ गया है कि त्याग करना नहीं पड़ता बस हो जाता है।
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