दो शब्द हैं भगवद्गीता के, पहला, तितिक्षस्व। तितिक्षा माने होता है सहने की क़ाबिलियत, झेल पाने का दम। अपनी भाषा में कहें तो सह जाने का जिगरा। जिसके पास वो नहीं है, उसके लिए जीवन ही नहीं है, मुक्ति तो बहुत दूर की बात है। ऐसा इंसान क्या जिएगा?
और जो दूसरा शब्द है गीता का वह है, युद्धयस्व। और ये दोनों एकसाथ चलते हैं। पहला, हमने कहा, तितिक्षस्व। दूसरा, युद्धयस्व। भिड़े रहो, पीछे नहीं हटना है।
अब आपके सामने कुछ सवाल हैं?
किससे भिड़ जाना है?
क्या बाहरी संसार से लड़ाई कर लेनी है?
और कौन सा दर्द सहन करने की बात हो रही है?
क्या वह जो संसार आपको देता है? और क्या संसार ही है आपके कष्ट का कारण?
कहीं दर्द सहना कायरता और दब्बू होने की निशानी तो नहीं?
अगर ऊपर के प्रश्नो को समझना चाहते हैं तो यह कोर्स आपके लिए है। सही संग्राम में उतरें और सही जीवन का अर्थ समझें।
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