मौत और अध्यात्म का करीब का रिश्ता है। कितने ही संत हुए हैं जो मौत पर, काल पर, और ‘आधी मौत’ यानी नींद पर कितना कुछ बोल चुके हैं। ये कोई इक्तेफ़ाक नहीं कि किसी के मरने पर हम राम का ही नाम लेते हैं। राम नाम सत्य है: जहाँ राम और सत्य को बिल्कुल संतुल्य रखा जाता है। यह संतों की ही शिक्षा है जो बतलाती है कि मात्र राम ही सत्य हैं।
राम कौन? वेदांत में राम माने आत्मा।
आत्मा माने क्या? वह जो आपकी इंद्रियों के पकड़ में नहीं है। आप जो कुछ भी देखते हैं वह आपका प्रक्षेपण मात्र है। आपके लिए जगत सत्य नहीं बल्कि एक बदलती हुई चीज़ है। जो कभी कुछ हो जाती है कभी कुछ।
तो जो कुछ भी जगत में है वह बदलेगा। वह सत्य नहीं है।
सोचिए, इस छोटी से वाक्य में ‘राम नाम सत्य है’ कितनी गहरी चीज़ छिपी हुई ही।
मगर आज के समय में ज्ञान और अध्यात्म पीछे हो गया है जबकि लोकधर्म और कर्मकांड का बोलबाला है।
अगर आप इस सीरीज़ तक पहुँच गए हैं और बात जम रही है तो आप समझ गए होंगे कि हम बात मृत्यु से जुड़े रीति रिवाज़ों की कर रहे हैं।
क्या आप भी उनमें से हैं जिन्हें यह रीति रिवाज़ों के अर्थ समझ नहीं आते? क्यों ऐसे रीति रिवाज़ों को हम मनाते हैं? क्या उनके पीछे का ठोस तर्क हमें पता है? क्या सच में आपको लगता है कि इससे आत्मा को शांति मिलेगी? क्या आप जानना चाहते हैं कि मृत्यु के कर्मकांड के पीछे क्या राज़ छिपा है?
अगर इन सवालों के जवाब आप भी ढूंढ रहे हैं तो आप बिल्कुल सही जगह आए हैं। इस वीडियो सीरीज़ में आचार्य जी आपसे इन्हीं मुद्दों पर बात करेंगे। कमर की पेटी कसकर बांध लीजिए, आपका इस ज्ञान विमान में स्वागत है।
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